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मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

प्रैक्टिकल नॉलेज



प्रैक्टिकल नॉलेज

'अरे, आज ये महाशय ऑटो में', मन ही मन आश्चर्यचकित होते हुए मैं भी उसी ऑटो में बैठ गई|

वो सज्जन मेरी कॉलनी के थे| रइसों में गिनती होती थी उनकी| काम पर जाने का उनका समय भी सुबह नौ बजे ही होगा तभी लगभग हर दिन रास्ते में बड़े गेट से निकलती बड़ी सी गाड़ी में उन्हें देख देखकर पहचान गई थी| वे मुझे नहीं जानते थे|


ऑटो तेजी से गंतव्य की ओर बढ़ रहा था| जगह पर पहुँच कर वे उतरे और ड्राइवर की ओर पाँच सौ का नोट बढ़ाया|

' साहब जी, आपको सिर्फ आठ रुपए देने हैं| इतनी सुबह मैं पाँच सौ के छुट्टे न दे पाऊँगा|'

'आज ऐन वक्त पर मेरी गाड़ी खराब हो गई| समय नहीं था तो ऑटो पर आ गया|छुट्टे रखने की आदत नहीं और वॉलेट में सारे नोट पाँच सौ के ही हैं', उन्होंने ऑटो से आने की मजबूरी बताई|

' जाइए साहब जी, कोई बात नहीं| कभी कभी आम पब्लिक की तरह सफर करेंगे तभी प्रैक्टिकल नॉलेज होगी न| हर तरह की सवारी के अपने कायदे होते हैं,'मुस्कुराते हुए ड्राइवर ने कहा|

वे बेबस से खड़े थे|

'सर, वो नोट इधर दीजिए', तब तक मैं सौ सौ के पाँच नोट निकाल चुकी थी|
उन्होंने धन्यवाद कहते हुए सारे नोट लिए और एक नोट ऑटो वाले को दिया|
वापसी में पचास , बीस और दस के नोट के साथ दो का सिक्का भी था|

सिक्के ने अपना महत्व बताते हुए अमीर वॉलेट में जगह बना लिया|

--ऋता शेखर 'मधु'

रविवार, 25 दिसंबर 2016

मरियम

मरियम
गिरजाघर की रौनक देखते ही बन रही थी| चारों तरफ क्रिसमस ट्री पर सजे रंग बिरंगे बल्ब जुगनू की तरह टिमटिमा रहे थे| दुधिया रौशनी से नहाया गिरजाघर का घंटा, अतिथियों के आने जाने का ताँता, हर्षपूर्ण वातावरण, तितलियों की तरह उड़ती फिरती परियों सी नन्हीं बच्चियाँ, इशारों ही इशारों में प्यार का इजहार करने वाले नौजवानों की टोलियों ने त्योहार में इंद्रधनुषी रंग बिखेर दिए थे| ‘मेरी क्रिसमस’ के उल्लसित स्वर बरबस ही बता रहे थे कि आज के पावन दिन पर किसी देवदूत ने अवतार लिया था जिसने अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध जंग लड़ी और जनमानस के जीवन में छाए तम को हटाकर सूर्य की उज्जवलता भर दी| सूली पर कीलों से ठोके गए पर उफ्फ न की|
निश्चित समय पर गिरजाघर के पादरी ने अतिथियों को सम्बोधित कर बधाइयाँ देते हुए कहा-
‘ धरती पर आने वाले हर नवजात में यीशु है| उनका दिल से स्वागत करो| कौन हमारी मुश्किलों से हमें निकालने वाला है यह भविष्य की तिजोरी में कैद है| हम नन्हें यीशु का स्वागत करेंगे तो माँ मरियम की ममता का अस्तित्व रहेगा|’
पादरी के सम्भाषण के बाद लोग कतारों में आकर मरियम और यीशु मूर्ति को देखते और सम्मान में सिर झुकाते| इसके बाद देर रात तक पार्टी चलती रही| नाच गाना से हॉल थिरक रहा था|
उसी हॉल में एक कोने में टेबल पर बैठी स्टेला गोद में एक शिशु को लिए बार बार ढक कर उसे कड़ाके की ठंड से बचाने की कोशिश कर रही थी| उसकी आँखें किसी को ढूँढ रही थीं| पादरी भी इधर उधर घूमते हुए कई बार स्टेला के पास से गुजरे, ठिठके, फिर बिना कुछ कहे आगे बढ़ गए| स्टेला निर्विकार आँखों से उन्हें ताकती रही|
धीरे धीरे रात गहराने लगी| माहौल थमने लगा| अचानक एक बड़ी सी गाड़ी गिरजाघर के सामने आकर रुकी| पादरी के साथ साथ स्टेला की नजर भी उठी| गाड़ी से शहर के बड़े उद्योगपियों में एक मिस्टर अल्वा अपने बेटे जॉन के साथ उतरे|उन्होंने सीधे जाकर मरियम-यीशु के पास जाकर सिर झुकाया फिर पादरी के पास गए| पादरी ने देखा कि स्टेला भी धीरे धीरे चलकर उधर ही आ रही थी|
‘जॉन ये देखो, हमारा बेटा’ स्टेला ने रुक रुक कर कहा|
‘व्हाट रबिश, ये क्या कह रही,’ हड़बड़ा गया था जॉन| पादरी और मिस्टर अल्वा चौंक गए|

‘मैं चाहती तो दुनिया में इसे नहीं लाती, मगर मैंने ऐसा नहीं किया| फ़ादर हमेशा कहते हैं कि हर नवजात में यीशु है| मैं यीशु को आने से कैसे रोक सकती थी| इसे अपना लो जॉन|’ स्टेला के स्वर में आग्रह था|
‘नही लड़की, इस बात का जिक्र कहीं नहीं करना| तुम भी चाहो तो अनाथालय में इसे रखकर आजाद हो सकती हो|’ मिस्तर अल्वा ने कड़े स्वर में कहा|
‘नहीं, मैं भी मरियम हूँ| यह शिशु मेरा यीशु है| मैं पालूँगी इसे|’ पादरी पर गहरी नजर डालते हुए स्टेला ने कहा|
धीरे धीरे स्टेला के कदम गिरजाघर से बाहर निकल रहे थे| पादरी कभी मरियम की मूर्ति को देखते और कभी स्टेला को, परन्तु वे स्टेला को आगे बढ़कर रोक न सके| उन्होंने मिस्टर अल्वा के सामने हाथ जोड़ दिया-
‘ मरियम तो चली गई, अब कैसा क्रिसमस !! गिरजाघर बन्द करना चाहता हूँ| इजाजत दीजिए|’
---ऋता शेखर ‘मधु’

सोमवार, 19 दिसंबर 2016

रोला छंद

रोला छंद
1
देखो आई रात, चाँद भी नभ में आया
झरते हरसिंगार, भ्रमर ने राग सुनाया
फूले सरसो खेत, पंक ने कमल खिलाये
दे बासंती भाव, फूल गेंदा हरषाये
2
हरे हुए हर पात, दूब की बात निराली
झूल रही है ओस, पवन बनती मतवाली
हौले हौले सूर्य, गरम होता जाता है
शिशिर शरद के बाद, ग्रीष्म ही मन भाता है
3
चाह रहे बदलाव, तनिक धीरज से रहना
यह तो है संग्राम, जिसे मिलकर के सहना
मन में रखकर आस, जहाँ में सूरज भरना
गम को पीछे छोड़, कालिमा हर क्षण हरना
--ऋता शेखर 'मधु'

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

जमाना हर किसी को तोलता है


शराफ़त से सभी को जोड़ता है
किसी खुदग़र्ज से वो भी अड़ा है

न कोई बच सका है आइने से
जमाना हर किसी को तोलता है

नदी को बाँध लेते हैं किनारे
यही तहज़ीब की परिकल्पना है

बिखरती पत्तियाँ भी पतझरों में
दुखों के सिलसिले में क्या नया है

नजरअंदाज ना करना कभी भी
बड़ों में अनुभवों का मशवरा है

दिलों में है नहीं बाकी मुहब्बत
*कोई आहट न कोई बोलता है*

--ऋता शेखर 'मधु'

1222/ 1222/ 122

काफ़िया- आ

रदीफ़-है

मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

तोटक छंद

तोटक छंद (वर्णवृत छंद)
वर्णिक मापनी - 112 112 112 112

मनु के मन में जब आस रही
हर बात तभी कुछ खास रही
उर में बहती नित प्रेम सुधा
जग में हर भोर प्रभास रही

प्रिय है जिनका ब्रजधाम सखी
मन में रहते वह श्याम सखी
मुरली धुन से हरसी यमुना
जपती रहती नित नाम सखी

पथ के सब भीषण घात कहो
मिलती रहती वह मात कहो
बहती नदिया खिलती कलियाँ
मनभावन सी तुम बात कहो

लिखना कविता रसधार सखे
उतरे दिल के उस पार सखे
मिलते जब कंटक जीवन में
बन औषध दे यह सार सखे

रहता जिनके मन खोट नहीं
उनको सच से कुछ ओट नहीं
समभाव रहे सुख या दुख में
दिल को लगती फिर चोट नहीं
---ऋता

बुधवार, 30 नवंबर 2016

वंश - लघुकथा

वंश
पूरा घर नन्हे रौशन के पहले जन्मदिन की तैयारी में व्यस्त था| किन्तु रौशन की माँ कमला निर्विकार भाव से बैठी थी| दो वर्ष पहले की बात उसे परेशान कर रही थी|
'बहुरिया, चल तैयार हो जा| बहुत पहुँचे हुए बाबा आए हैं| सायद कोनो किरपा हो जाए तब यहाँ भी बाल गोपाल की किलकारी गूँजे|'
'ना अम्मा जी, हम नहीं जाएँगे| हमरी अम्मा कहती थी कि जवान बेटी बहु को कोई बाबा उबा के पास नहीं जाना चाहिए|'
'काहे नहीं जाना चाहिए| अब जादे सिखाओ मत अउर चुपचाप तैयार हो जाओ|'
'अरे , काहे बहस लड़ाती है| अम्मा कह रही है तो जाओ न|'
पति की बात सुनकर बड़े बेमन से कमला तैयार हो गई|
'शुभ मुहुरत में बहुरिया को झाड़ फूँक देंगे| उसको यहीं छोड़ जाओ| मुहुरत आधी रात को है' बाबा ने कमला के चेहरे को पढ़ते हुए कहा|
'नहीं अम्मा, हमको छोड़ के मत जाओ|'
''छोड़ के जाने कौन कह रहा है| तुम्हारी अम्मा भी रहेगी|''
यह सुन कमला आश्वस्त हो गई| मुहुर्त देखकर बाबा ने कुछ जड़ी बूटी पीने को दिया| उसे पीकर कब वह बेहोश हो गई पता ही नहीं चला| जब होश आया तो सास के पास ही थी|
'बहुरिया, उठ कर रौशन को नए कपड़े पहनाओ| हमरा वंश बढ़ाने वाला वही तो है| '
सास की बात से कमला की तन्द्रा टूटी|
वह उस हरकत को महसूस कर रही थी जो अचानक होश आ जाने पर उसने महसूस किया था|
''हुँह,काहे का वंश...'घृणा से मु़ब बनाती कमला रौशन के पास चली गई|
ऋता शेखर 'मधु'

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

वक्त की झुर्रियाँ-लघुकथा



वक्त की झुर्रियाँ

आज फेसबुक पर सर्फिंग करते हुए अरुण बाबू अचानक लालिमा जी की प्रोफाइल पर पहुँच गए| उसने प्रोफाइल पर वही पिक लगा के रखा था जो चालीस साल पहले कॉलेज के पहचान पत्र पर था इसलिए नजर पड़ते ही अरुण बाबू पहचान गए| जल्दी जल्दी पूरी प्रोफाइल खंगाल डाले पर सिर्फ वही तस्वीर देख पाए| शायद प्राइवेसी सेटिंग थी या फिर वह कोई पोस्ट नहीं डालती थी|

अरुण बाबू ने मेसेज में लिखा,’ यदि मैं गलत नहीं हूँ तो तुम लालिमा ही हो न| इस तरह अचानक कॉलेज छोड़कर क्यों चली गई थी|” मेसेज भेजकर पुरानी यादों में खो गए जब लालिमा की खूबसूरती दोस्तों के बीच चर्चा का विषय थी| लालिमा मेसेज देखेगी भी या नहीं इसमें संदेह था कि अचानक मेसेज देख लेने का संकेत दिखा| अरुण बाबू उत्तर का इन्तेजार करने लगे|

‘आप कौन’ अचानक मेसेज बॉक्स की लाल बत्ती जल गई|

‘मैं अरुण जिसके नोट्स तुम्हें बहुत पसंद थे’|

कुछ देर बातें होती रहीं| अरुण बाबू ने लालिमा जी को हैंग आउट पर आने को कहा| उनकी कल्पना में वही बाइस साल की लालिमा की तस्वीर घूम रही थी| तभी लालिमा जी टैबलेट पर दिखने लगीं| दोनों दोस्तों ने एक दूसरे को देखा| कुछ देर देखते रहे फिर ठठाकर हँस पड़े|

‘’उम्र के इस पड़ाव पर भी कल्पना पुरानी है मगर झुर्रियाँ भी सुखद हैं’’ अरुण बाबू ने हँसते हुए कहा|

--ऋता शेखर "मधु"

फेसबुक की प्रतिक्रियाएँ

१ वाह, वाह।खूब बढ़िया लिखा आपने।मनभावन कथा।बधाई हो सुन्दर लेखन हेतु।–गीता सिंह

२. Behad sundar ehsaso ki mala Piro di aap nai-कुलविंदर सिंह

३. अत्यंत लुभावनी कथा ,हार्दिक बधाई ऋता शेखर 'मधु' जी-अर्चना त्रिपाठी

४. समय के साथ चेहरा बदल गया लेकिन मन के भाव नहीं, बहुत बढ़िया| बधाई इस सुंदर रचना के लिए-विनय कुमार

५. फेसबुक में झुर्रीदार सुखद मिलन, नये कलेवर में अच्छी रचना। बधाई।रूपेंन्द्र सामंत

६. वाह ख्वाबों की तस्वीर सदा जवांरहती है समय का प्रभाव नही पडता है यादों पर सुन्दर भाव वाली रचना बधाई ऋता जी-जितेंद्र गुप्ता

७. बहुत बढ़िया रचना बनी है चित्र के भाव को देखते हुए, कही भी ऐसा नहीं लगता कि रचना को जबरन लिखा गया हो ....... बधाई स्वीकार करे ऋता शेखर जी—वीरेंद्र वीर मेहता

८. बहुत सुंदर अंत के साथ एक बढ़िया कथा-जानकी वाही

९. अक्सर पुराना कोई दोस्त मिलता है तो ज़ेहन में उसका वही बरसों पुराना रूप समाया रहता है, अरसे बाद मिले मित्र में आये परिवर्तन खुद को भी उम्रदराज़ होने का अहसास करा जातें ,, बेहद सुन्दर रचना चित्र पर,----महिमा वर्मा

बुधवार, 23 नवंबर 2016

अंतर्देशीय



अंतर्देशीय--

इमेल, एसएमएस, व्हाट्स एप के जमाने में ऑफिस के लिफाफों के ढेर में एक अन्तर्देशीय देखकर अविनाश चौंक गया| लिखने वाले ने अन्तर्देशीय के पीछे अपना नाम नहीं लिखा था| उत्सुकता से अविनाश ने सबसे पहले वही खोला|

''सॉरी भइया, तुमसे बात करने का कोई रास्ता नहीं था| इसलिए यह खत लिखा|
याद है बचपन में हम कितना लड़ा करते थे| मैं ही ज्यादा बदमाश थी और तुम हमेशा चुप लगाकर झगड़ा शात कर देते थे| तुम्हें याद है न, होमवर्क नहीं करने पर मैं स्कूल न जाने के कई बहाने ढूँढती थी और तुम चुपके से मेरा होमवर्क पूरा कर दिया करते थे| भाई, तुम्हें याद है एक बार कॉलेज से जाने वाले एजुकेश्नल ट्रिप पर जाने देने के लिए पापा राजी नहीं थे तब तुमने ही तो मेरी सिफारिश की थी और पापा तैयार हो गए थे| एक बार एक प्रोजेक्ट बनाने के लिए सैंड कलर नहीं मिल रहा था तो तुमने कई दुकानों के चक्कर लगाए थे और लाकर दिए थे|
माना कि तुम्हें बहुत आगे तक जाने की महत्वाकांक्षा थी| एम बी बी एस के बाद आगे की पढ़ाई विदेश में पढ़ना चाहते थे तुम| इसके लिए तुमने भाभी के पापा के दबाव में आकर उनके घर में ही रहना स्वीकार कर लिया| हमें या मम्मी पापा को इससे कोई एतराज नहीं था लेकिन तुम धीरे धीरे हमसे दूर होते चले गए| मैं चाह कर भी तुमसे बात नहीं कर पा रही थी| मुझे मालूम था कि तुम्हारे फोन, मेल सब कुछ भाभी देखती हैं इसलिए कोई बात न बढ़ जाए मैंने भी दूरी बना ली थी|
भइया, मेरे इंगेजमेंट में भी तुम मेहमान बन कर आए और चले गए| अब मैं भी तो घर से जा रही हूँ| लोग कहते हैं कि बेटियाँ परायी होती हैं| तुम तो बेटा हो न| मम्मी पापा बिल्कुल टूट जाएँगे भाई|
भइया, दूसरे घर जाने से पहले मैं तुम्हें अपने हाथों से वो सभी राखियाँ बाँधना चाहती हूँ जिसे हर रक्षाबंधन पर मैंने खरीदे पर तुम्हारे पास जाने की हिम्मत न कर सकी| मुझे एक दिन के लिए मेरा भाई लौटा दो भइया| फिर आगे कुछ नहीं माँगूँगी | भइया प्लीज़, आशा है बचपन की प्यारी बहन का मान रख लोगे|
अनु
आँखें पोंछते हुए अविनाश टेबल पर पड़े सभी कागजों को समेट उठ गया|
''सर, आज की डील फाइनल नहीं हुई तो देर हो जाएगी| "
'' अगर आज नहीं गया तो मेरी बहन खो जाएगी'', कहता हुआ अविनाश बाहर निकल गया|
--ऋता शेखर 'मधु'

रविवार, 20 नवंबर 2016

मूक बनोगे आज जब, हो जाएगी चूक

दो पहलू हर बात के, सहमति और विरोध
कह दो मन के भाव को,नहीं कहीं अवरोध


मूक बनोगे आज जब, हो जाएगी चूक
होंगे कल के बोल तब, वीराने की कूक


चुप रहने से जिंदगी, बदले अपनी चाल
क्यों पूछे उस वक्त में, कोई तुम्हारा हाल


नित नित लिखते मित्र जो, बनते थे चर्वाक
चुप रहकर के वो बने, बड़े चतुर चालाक


रुक जाए जो लेखनी, कौन बने आवाज
खंगालो इतिहास को, कवि बदलो अंदाज


--ऋता शेखर 'मधु'

मंगलवार, 15 नवंबर 2016

हैप्पी बर्थडे - लघुकथा

हैप्पी बर्थडे
‘आज माँ को क्या हो गया है’, पत्नी शिप्रा ने आते ही अभिनव से कहा|
“क्या किया माँ ने”, अभिनव सोचते हुए बोला|
“माँ ने मिठाई मँगवाई है और सजधज कर बैठी हैं|”
“देखता हूँ,” कहकर अभिनव माँ के कमरे की ओर गया|
अन्दर से कुछ आवाज आ रही थी| अभिनव बाहर ही रुककर सुनने लगा|
“अभिनव के पापा, याद है न वह गाना जो तुम अक्सर गाया करते थे....
मैं जब हूँगा साठ साल का और तुम होगी पचपन की...
...बोलो प्रीत निभाओगी न|
देखो जी, आज मैं पचपन की हो गई मगर तुम साठ के न हो सके|
मुझे देखो, बुढ़ापा चेहरे पर आने लगा है किन्तु तुम तो अब भी युवा दिखते हो|
तुम्हें साठ की देखने की मेरी ख्वाहिश पूरी न हो सकी|...अच्छा छोड़ो ये बातें, मिठाई खाओ|’’
इसके बाद माँ के हँसने की आवाज आई|
मात्र पाँच साल की उम्र में अपने पिता को खो चुका अभिनव कमरे में घुसकर
अपने पिता की उसी युवा तस्वीर देखते हुए आँखें पोंछ रहा था जिससे  माँ बातें कर रही थी|
‘हैप्पी बर्थडे माँ’’, कहते हुए उसने माँ के प्लेट से मिठाई उठाकर खा ली|
ऋता शेखर ‘मधु’

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

भली लगे सबके कानों को, बोलो ऐसी बोली

११
जीवन जीने के कौशल में, होती कई परीक्षा
वो ही अव्वल आ पाते जो, पाते नैतिक शिक्षा
१२.
सावन भादो के मौसम में, करता है खुदगर्जी
बादल को अब आने भी दे, नभ को भेजो अर्जी
१३.
बासंती मौसम में आईं, कलियाँ नई नवेली
मनभावन खुश्बू से देखो, सबकी बनीं सहेली
१४.
भली लगे सबके कानों को, बोलो ऐसी बोली
कूक कूक कर अमराई में, कोयल शरबत घोली
१५.
मन माटी की हर क्यारी में, बीज प्रेम के बोना
सद्भावों से महक उठेगा, घर का कोना कोना
१६.
देशप्रेम की स्वच्छ सोच में, कैसी नफरत जागी
जात धर्म की उग्र हवा में, फूल हुए हैं बागी
१७.
स्वस्थ बीज अच्छी सिंचन से, आती है हरियाली
गेहूँ की बाली के संग संग, आएगी खुशहाली
१८.
इंद्रधनुष के सप्तवर्ण में, हमें तीन है प्यारा
प्रगतिशील झंडे में सजकर, चक्र लगे है न्यारा
१९.
निर्निमेष व्याकुल अँखियों से, ताक रहा है चातक
मिलती ना बूँदें स्वाती की, प्यास बनी है घातक
२०.
नई राह पर नए कदम की, दुनिया है अनजानी
मायावी बातों में आकर, ना करना नादानी
२१.
पवन मेघ अरु धूप रूप में, आया है वनमाली
उसकी अगवानी करने को, झुकी फूल की डाली
२२.
अथक परिश्रम अटल आस से, दूर करो हर बाधा
खुशियों से खुशियाँ मिलती हैं, गम होता है आधा
२३.
कंकड़ पाथर के ऊपर से, निर्मल सरि सा बहना
सदा पहन कर सुन्दर दिखना, निश्छलता का गहना
२४.

ताकधिना धिन ताकधिना धिन, जमकर बरसा सावन
पुलकित बूँदों के नर्तन से, पात बने हैं पावन
२५.
रातों को जल्दी सो जाओ, सुबह सवेरे जागो
लाख टके की हवा मिलेगी, प्रातभ्रमण को भागो
२६.
बड़े दिनों पर पोते के घर, दादी अम्मा आई
बालक मन के गुलमोहर पर, डोली है पुरवाई
२७.
अरुणाचल की लाली में अब, जागी है अरुणाई
कोयल कूकी, बैल चले हैं, फैल रही तरुणाई
२८.
लम्बे चौड़े वादे मुकरे , उम्मीदें हैं भूखी
जबसे उनको वोट मिला है, बातें करते रूखी
२९.
मँहगाई के डंडे से वे, छीन रहे हैं रोटी
जाने किस किस हथकंडे से, जेब हुई है मोटी
३०.
हहराती बलखाती गंगा, धरती पर मुड़ जाती
फसलों की जड़ तक वह जाए, ऐसी जुगत लगाती
३१.
इस नश्वर दुनिया में मानव, जोड़ के रखो कड़ियाँ
जाने कब कौन कहाँ छूटे, बोल रही हैं घड़ियाँ
३२.
धरती की बढ़ती गरमी से, घबराती है बरखा
सत्य अहिंसा के दामन से, किसने छीना चरखा

---------ऋता शेखर मधु

शनिवार, 5 नवंबर 2016

प्रतिकार-लघुकथा

प्रतिकार
चिता पर पत्नी के शव के अंतिम संस्कार के लिए शिवशंकर बाबू के हाथों में अग्नि थमाई जा चुकी थी| अचानक तेज आँधी आई| बगल की चिता से चिंगारी उड़ी और शिवशंकर बाबू की पत्नी की चिता से जा लगी| धू धू कर जलने लगी चिता और अग्नि को हाथ में पकड़े पति को दग्ध करने लगी|
 “आज उस मौन बर्फ ने आपकी अग्नि को नकार दिया जीजा| जो काम वह जीते जी नहीं कर सकी, मरकर कर दिया उसने,” रोष फूट पड़ा भाई संजीव का|
 अवाक् खड़ी अपनों की भीड़ की ओर मुखातिब होकर संजीव कहने लगा, “ तीन बेटियों के लिए जीजा और उनके घरवालों से प्रताड़ित होती रही थी हमारी बहन| बाद में बेटे की चाह में अबॉर्शन पर अबॉर्शन ने उसके शरीर को खोखला कर दिया| क्षीण कमजोर शरीर पर लकवा का प्रकोप हुआ| उसकी शिथिल आँखें भाई को देखते ही बह जाने को आतुर दिखती थी| हम चाह कर भी कुछ न कर सके क्योंकि वह रोक देती थी हमें| ”
 संजीव ने अपनी बात जारी रखी, “ उसकी तीनों बेटियों को खरोंच भी आई तो देख लेना आप| संस्कारों का हवाला देकर हमें रोकने वाली बहन जा चुकी है| ”
 “उफ्फ, सज्जन दिखने वाले इस इंसान की इतनी क्रूर मानसिकता कि प्रकृति भी मरने वाली के मौन चीत्कार को अनदेखा न कर सकी,”भीड़ में से आई आवाज ने एकबारगी सबको दहला दिया|

--ऋता शेखर ‘मधु’

शनिवार, 29 अक्टूबर 2016

जगमग दीप जले

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नवगीत
नए नए दीपों की माला
पथ में रोज सजाना प्रियवर
अँधियारी रातों के साथी
जगमग कर बन जाना प्रियवर

जिनके दृग की ज्योति छिन गई
उनके मन को रौशन करना
द्वार रंगोली जहाँ मिटी है
तँह रंगों की छिटकन भरना

ख्वाबों से मोती चुन चुन कर
तोरण एक बनाना प्रियवर

तारों की अवली से अवनी
अपनी माँग सजाती जाती
गहन बादलों के पीछे से
चपल दामिनी रूप दिखाती

सूरज के तपते कदमों पर
शबनम बन झर जाना प्रियवर

निश्छल मन पर हुए वार से
जग में लाखों दर्पण टूटे
मंदिर की सीढ़ी पर चढ़कर
जाने कितने अर्पण छूटे

नन्हे दीपक की बाती में
आस बिम्ब लहराना प्रियवर

सबके चैन अमन की खातिर
ओढ़ तिरंगा सरहद से आये
कोमल मन की सूनी बगिया
पारिजात फिर कहाँ से पाये

मुर्छित होते घर के ऊपर
विटप वृक्ष बन जाना प्रियवर

--ऋता शेखर ‘मधु’

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

हम उन्हें आफ़ताब कहते हैं-ग़ज़ल

हम तो दिल की किताब कहते हैं
आप जिसको गुलाब कहते हैं

जो उलझते रहे अँधेरों से
हम उन्हें आफ़ताब कहते हैं

धर्म के नाम पर मिटेंगे हम
उस गली के जनाब कहते हैं

हुक्म की फ़ेहरिस्त लम्बी है
शौहरों को नवाब कहते हैं

तोड़ दो नफरतों की दीवारें
उल्फतों का हिसाब कहते हैं

मुस्कुराके नजर मिलाते हैं
क्या इसी को नकाब कहते हैं

--ऋता शेखर ‘मधु’

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

भूख-लघुकथा


“अरे ओ रामू, उठ रे, उत्तर से पानी बढ़ता ही जा रहा है| हमारी मकई खराब हो जाएगी रे| अब का होगा”
“चिन्ता ना कर कलुआ, जो भगवान पेट दिया है वोही अनाज भी देगा|”
“भगवान का करेगा| बाढ़ लाकर वोही तो तबाह करता है| हमरे माई बापू मेहरारु लइका सब का खाएँगे| चल, जो बोरी शहर भेजे खातिर रखे हैं वोही निकालते हैं| वैसे भी भीगी बोरी किस काम की|”
रामू और कलुआ ने बोरी खोली|थोड़ी सड़ाँध आ चुकी थी| कलुआ ने वही चावल पकाने के लिए ले लिया|
“ना रे कलुआ, हम तो इसका भात नाहिं खाएँगे|”
“तब इ का शहर वाले खाएँगे| वहाँ तो सब अच्छा अच्छा जाएगा| हमारा पेट सब पचा लेता है रे रामू|”

--ऋता

शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

कृषक कवि घाघ की कहावतें

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भारत एक कृषि प्रधान देश है|
आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान किसान कवि घाघ व भड्डरी की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से पथप्रदर्शन करते आयी हैं। हिन्दी के लोक कवियों में कृषक कवि घाघ का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
बिहार व उत्तेरप्रदेश के गांवों में ये कहावतें आज भी काफी लोकप्रिय हैं। जहां वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत हो जाते हैं, ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ की कहावतें प्राय: सत्य साबित होती हैं।
घाघ का जीवन वृत्त
हिन्दी के लोक कवियों में घाघ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। घाघ लोक जीवन में अपनी कहावतों के लिए प्रसिद्ध हैं। जिस प्रकार ग्राम्य समाज में इसुरीअपनी फागके लिए, विसराम अपने बिरहोंके लिए प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार घाघ अपनी कृषि संबंधी कहावतों के लिए विख्यात हैं।
हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रंथों में घाघ के सम्बन्ध में सर्वप्रथम शिवसिंह सरोजमें उल्लेख मिलता है। इसमें कान्यकुब्ज अंतर्वेद वालेकवि के रूप में उनकी चर्चा है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने घाघ का केवल नामोल्लेख किया है।हिन्दी शब्द सागरके अनुसार घाघ गोंडे के रहने वाले एक बड़े चतुर और अनुभवी व्यक्ति का नाम है जिसकी कही हुई बहुत सी कहावतें उत्तरी भारत में प्रसिद्ध हैं। खेती-बारी, ऋतु-काल तथा लग्न-मुहूर्त आदि के सम्बन्ध में इनकी विलक्षण उक्तियाँ किसान तथा साधारण लोग बहुत कहते हैं।
श्रीयुत पीर मुहम्मद यूनिस ने घाघ की कहावतों की भाषा के आधार पर उन्हें चम्पारन (बिहार) और मुजफ्फरपुर जिले की उत्तरी सीमा पर स्थित औरेयागढ़ अथवा बैरगनिया अथवा कुड़वा चैनपुर के समीप के किसी गाँव में उत्पन्न माना है।
राय बहादुर मुकुन्द लाल गुप्त विशारदने कृषि रत्नावलीमें उन्हें कानपुर जिला अन्तर्गत किसी ग्राम का निवासी ठहराया है।
श्री दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह ने घाघ का जन्म छपरा जिले में माना है।
पं. राम नरेश त्रिपाठी ने कविता कौमुदीभाग एक और घाघ’ और ‘घाघ और भड्डरीनामक पुस्तक में उन्हें कन्नौज का निवासी माना है।
घाघ की अधिकांश कहावतों की भाषा भोजपुरी है। डॉ. ग्रियर्सन ने भी पीजेन्ट लाइफ आफ बिहारमें घाघ की कविताओं का भोजपुरी पाठ प्रस्तुत किया है। इस आधार पर इस धारणा को बल मिलता है कि घाघ का जन्म स्थान बिहार का छपरा था। ऐसा अनुमान है कि घाघ जीविकोपार्जन के लिए छपरा छोड़कर अपनी ससुराल कन्नौज गये होंगे और वहीं बस गये होंगे।
जन्म काल एवं निवास स्थान
घाघ का जन्मकाल भी निर्विवाद नहीं है। शिवसिंह सेंगर ने उनकी स्थिति सं. 1753 वि. के उपरान्त माना है। इसी आधार पर मिश्रबन्धुओं ने उनका जन्म सं. 1753 वि. और कविता काल सं. 1780 वि. माना है।भारतीय चरिताम्बुधिमें इनका जन्म सन् 1696 ई. बताया जाता है। पं. राम नरेश त्रिपाठी ने घाघ का जन्म सं. 1753 वि. माना है। यही मत आज सर्वाधिक मान्य है|
घाघ के नाम के विषय में भी निश्चित रूप से कुछ ज्ञात नहीं है। घाघ उनका मूल नाम था या उपनाम था इसका पता नहीं चलता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र-बिहार, बंगाल एवं असम प्रदेश में डाक नामक कवि की कृषि सम्बन्धी कहावतें मिलती हैं जिनके आधार पर विद्वानों का अनुमान है कि डाक और घाघ एक ही थे। घाघ की जाति के विषय में भी विद्वानों में मतभेद है। कतिपय विद्वानों ने इन्हें ग्वालामाना है। किन्तु श्री रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी खोज के आधार पर इन्हें ब्राह्मण (देवकली दुबे) माना है। उनके अनुसार घाघ कन्नौज के चौधरी सराय के निवासी थे। कहा जाता है कि घाघ हुमायूँ के दरबार में भी गये थे। हुमायूँ के बाद उनका सम्बन्ध अकबर से भी रहा। अकबर गुणज्ञ था और विभिन्न क्षेत्रों के लब्धप्रतिष्ठि विद्वानों का सम्मान करता था। घाघ की प्रतिभा से अकबर भी प्रभावित हुआ था और उपहार स्वरूप उसने उन्हें प्रचुर धनराशि और कन्नौज के पास की भूमि दी थी, जिस पर उन्होंने गाँव बसाया था जिसका नाम रखा अकबराबाद सराय घाघ। सरकारी कागजों में आज भी उस गाँव का नाम सराय घाघहै। यह कन्नौज स्टेशन से लगभग एक मील पश्चिम में है। अकबर ने घाघ को चौधरीकी भी उपाधि दी थी। इसीलिए घाघ के कुटुम्बी अभी तक अपने को चौधरी कहते हैं। सराय घाघका दूसरा नाम चौधरी सरायभी है।घाघ की पत्नी का नाम किसी भी स्रोत से ज्ञात नहीं है| किन्तु उनकी कविताओं में'कहै घाघ सुन घाघिनी' जैसे उल्‍लेख आए हैं।
प्राचीन महापुरूषों की भांति घाघ के सम्बन्ध में भी अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि घाघ बचपन से ही कृषि विषयकसमस्याओं के निदान में दक्ष थे। छोटी उम्र में ही उनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ गयी थी कि दूर-दूर से लोग अपनी खेती सम्बन्धी समस्याओं को लेकर उनका समाधान निकालने के लिए घाघ के पास आया करते थे। किंवदन्ती है कि एक व्यक्ति जिसके पास कृषि कार्य के लिए पर्याप्त भूमि थी किन्तु उसमें उपज इतनी कम होती थी कि उसका परिवार भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर रहता था, घाघ की गुणज्ञता को सुनकर वह उनके पास आया। उस समय घाघ हमउम्र के बच्चों के साथ खेल रहे थे। जब उस व्यक्ति ने अपनी समस्या सुनाई तो घाघ सहज ही बोल उठे-
आधा खेत बटैया देके, ऊँची दीह किआरी।
जो तोर लइका भूखे मरिहें, घघवे दीह गारी।।
कहा जाता है कि घाघ के कथनानुसार कार्य करने पर वह किसान धन-धान्य से पूर्ण हो गया।
घाघ कृषि पंडित एवं व्यावहारिक पुरुष थे। उनका नाम भारतवर्ष के, विशेषत: उत्तरी भारत के, कृषकों के जिह्वाग्र पर रहता है। चाहे बैल खरीदना हो या खेत जोतना, बीज बोना हो अथवा फसल काटना, घाघ की कहावतें उनका पथ प्रदर्शन करती हैं। ये कहावतें मौखिक रूप में भारत भर में प्रचलित हैं।
घाघ और भड्डरी की कहावतें नामक पुस्‍तक में देवनारायण द्विवेदी लिखते हैं, ''कुछ लोगों का मत है कि घाघ का जन्म संवत् 1753 में कानपुर जिले में हुआ था। मिश्रबंधु ने इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण माना है, पर यह बात केवल कल्पना-प्रसूत है। यह कब तक जीवित रहे, इसका ठीक-ठाक पता नहीं चलता।''
अभी तक घाघ की लिखी हुई कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं हुई। उनकी वाणी कहावतों के रूप में बिखरी हुई है, जिसे अनेक लोगों ने संग्रहीत किया है। इनमें रामनरेश त्रिपाठी कृत 'घाघ और भड्डरी' (हिंदुस्तानी एकेडेमी, 1931 ई.) अत्यंत महत्वपूर्ण संकलन है।
कवि घाघ की कहावतें एवं उनका वर्गीकरण
घाघ के कृषिज्ञान का पूरा-पूरा परिचय उनकी कहावतों से मिलता है।
उनका यह ज्ञान निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत विभाजित किया जा सकता है।
1.कृषि के लिए कवि घाघ का अभिमत
2.खादों के विभिन्न रूपों
3. गहरी जोत
4. मेंड़ बाँधना
5. फसलों को बोने के लिए बीज की मात्रा
6. बीजों के बीच की दूरी
7. दालों की खेती के महत्व
8.ज्योतिष ज्ञान
1.कृषि के लिए कवि घाघ का अभिमत
घाघ का अभिमत था कि कृषि सबसे उत्तम व्यवसाय है, जिसमें किसान भूमि को स्वयं जोतता है :
उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान। 1
खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै। 2
उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो सँग रहा। 3
जो हल जोतै खेती वाकी और नहीं तो जाकी ताकी। 4
2.खादों के विभिन्न रूप
खादों के संबंध में घाघ के विचार अत्यंत पुष्ट थे। उन्होंने गोबर, कूड़ा, हड्डी, नील, सनई, आदि की खादों को कृषि में प्रयुक्त किए जाने के लिये वैसा ही सराहनीय प्रयास किया जैसा कि 1840 ई. के आसपास जर्मनी के सप्रसिद्ध वैज्ञानिक लिबिग ने यूराप में कृत्रिम उर्वरकों के संबंध में किया था। घाघ की निम्नलिखित कहावतें अत्यंत सारगर्भित हैं,जैसे:-
खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।
गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै।
सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै।
गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।
वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा।
3. गहरी जोत
घाघ ने गहरी जुताई को सर्वश्रेष्ठ जुताई बताया। यदि खाद छोड़कर गहरी जोत कर दी जाय तो खेती को बड़ा लाभ पहुँचता है :
छोड़ै खाद जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई।
4. मेंड़ बाँधना
कवि घाघ का कहना है कि बांध न बाँधने से भूमि के आवश्यक तत्व घुल जाते और उपज घट जाती है। इसलिये किसानों को चाहिए कि खेतों में बाँध अथवा मेंड़ बाँधे
सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी
जो पचास का सौ न तुलै, देव घाघ को गारी।
5. फसलों के बोने के लिए बीज की मात्रा
घाघ ने फसलों के बोने का उचित काल एवं बीज की मात्रा का भी निर्देश किया है।
उनके अनुसार प्रति बीघे में---
पाँच पसेरी गेहूँ तथा जौ,
छ: पसेरी मटर,
तीन पसेरी चना,
दो सेर मोथी, अरहर और मास,
डेढ़ सेर कपास, बजरा बजरी, साँवाँ कोदों
अंजुली भर सरसों बोकर किसान दूना लाभ उठा सकते हैं।
6. बीजों के बीच की दूरी
यही नहीं, उन्होंने बीज बोते समय बीजों के बीच की दूरी का भी उल्लेख किया है, जैसे--
घना-घना सन,
मेंढ़क की छलांग पर ज्वार,
पग पग पर बाजरा और कपास,
हिरन की छलाँग पर ककड़ी और
पास पास ऊख को बोना चाहिए।
कच्चे खेत को नहीं जोतना चाहिए, नहीं तो बीज में अंकुर नहीं आते।
यदि खेत में ढेले हों, तो उन्हें तोड़ देना चाहिए।
7. दालों की खेती के महत्व
घाघ ने सनई, नील, उर्द, मोथी आदि द्विदलों को खेत में जोतकर खेतों की उर्वरता बढ़ाने का स्पष्ट उल्लेख किया है। खेतों की उचित समय पर सिंचाई की ओर भी उनका ध्यान था।
आजकल दालों की खेती पर विशेष बल दिया जाता है, क्योंकि उनसे खेतों में नाइट्रोजन की वृद्धि होती है। घाघ की जानकारी आज के सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण मानी जा सकती है|
8.ज्योतिष ज्ञान
I.सुकाल और अकाल -
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।

सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।
अर्थात् यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।
पूस मास दसमी अंधियारी।बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
यदि वैशाख में अक्षय तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।
यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।
असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत।
नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत।।
आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।
II.वर्षा
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।
यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।
उत्तर नक्षत्र ने जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया। चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि प्रजा को बसा लेता है। अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है।
खनिके काटै घनै मोरावै।
तव बरदा के दाम सुलावै।।
ऊंख की जड़ से खोदकर काटने और खूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है। तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है।
हस्त बरस चित्रा मंडराय।
घर बैठे किसान सुख पाए।।
हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं।
हथिया पोछि ढोलावै।
घर बैठे गेहूं पावै।।
यदि इस नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है।
जब बरखा चित्रा में होय।
सगरी खेती जावै खोय।।
चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है।
जो बरसे पुनर्वसु स्वाती।
चरखा चलै न बोलै तांती।
पुनर्वसु और स्वाती नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती।
जो कहुं मग्घा बरसै जल।
सब नाजों में होगा फल।।
मघा में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं।
जब बरसेगा उत्तरा।
नाज न खावै कुत्तरा।।
यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे।
दसै असाढ़ी कृष्ण की, मंगल रोहिनी होय।
सस्ता धान बिकाइ हैं, हाथ न छुइहै कोय।।
यदि असाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी को मंगलवार और रोहिणी पड़े तो धान इतना सस्ता बिकेगा कि कोई हाथ से भी न छुएगा।
असाढ़ मास आठें अंधियारी।जो निकले बादर जल धारी।।
चन्दा निकले बादर फोड़।साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
यदि असाढ़ बदी अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी।
असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
यदि आसाढ़ी पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढंका रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा।
III.पैदावार
रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर।
एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।।
यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न (जौ, गेहूं, और चना) अच्छा होगा।
IV.जोत
गहिर न जोतै बोवै धान।
सो घर कोठिला भरै किसान।।
गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।
गेहूं भवा काहें।असाढ़ के दुइ बाहें।।
गेहूं भवा काहें।सोलह बाहें नौ गाहें।।
गेहूं भवा काहें। सोलह दायं बाहें।।
गेहूं भवा काहें। कातिक के चौबाहें।।
गेहूं पैदावार अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से।
गेहूं बाहें। धान बिदाहें।।
गेहूं की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान का बीज बोने के अगले दिन जोतवा देने से,यदि धान के पौधों की रोपाई की जाती है तो विदाहने का काम नहीं करते, यह काम तभी किया जाता है जब आप खेत में सीधे धान का बीज बोते हैं) से अच्छी होती है।
गेहूं मटर सरसी।
औ जौ कुरसी।।
गेहूं और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।
गेहूं गाहा, धान विदाहा।
ऊख गोड़ाई से है आहा।।
जौ-गेहूं कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है।
गेहूं बाहें, चना दलाये।
धान गाहें, मक्का निराये।
ऊख कसाये।
खूब बांह करने से गेहूं, खोंटने से चना, बार-बार पानी मिलने से धान, निराने से मक्का और पानी में छोड़कर बाद में बोने से उसकी फसल अच्छी होती है।
पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।
पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा पैया (छूछ) पैदा होता है।
पुरुवा में जिनि रोपो भैया।
एक धान में सोलह पैया।।
पूर्वा नक्षत्र में धान न रोपो नहीं तो धान के एक पेड़ में सोलह पैया पैदा होगा।
V. बोवाई
कन्या धान मीनै जौ।
जहां चाहै तहंवै लौ।।
कन्या की संक्रान्ति होने पर धान (कुमारी) और मीन की संक्रान्ति होने पर जौ की फसल काटनी चाहिए।
कुलिहर भदई बोओ यार।
तब चिउरा की होय बहार।।
कुलिहर (पूस-माघ में जोते हुए) खेत में भादों में पकने वाला धान बोने से चिउड़े का आनन्द आता है-अर्थात् वह धान उपजता है।
आंक से कोदो, नीम जवा।
गाड़र गेहूं बेर चना।।
यदि मदार खूब फूलता है तो कोदो की फसल अच्छी है। नीम के पेड़ में अधिक फूल-फल लगते है तो जौ की फसल, यदि गाड़र (एक घास जिसे खस भी कहते हैं) की वृद्धि होती है तो गेहूं बेर और चने की फसल अच्छी होती है।
आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।
जो किसान आद्रा में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
आद्रा बरसे पुनर्वसुजाय, दीन अन्न कोऊ न खाय।।
यदि आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में पानी न बरसे तो ऐसी फसल होगी कि कोई दिया हुआ अन्न भी नहीं खाएगा।
आस-पास रबी बीच में खरीफ।
नोन-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।।
खरीफ की फसल के बीच में रबी की फसल अच्छी नहीं होती।
निष्कर्ष
दरअसल कृषक कवि घाघ ने अपने अनुभवों से जो निष्‍कर्ष निकाले हैं, वे किसी भी मायने में आधुनिक मौसम विज्ञान की निष्‍पत्तियों से कम उपयोगी नहीं हैं।

घाघ और भड्डरी की कहावतें लोक जीवन में प्रसिद्ध है। ग्राम्य अंचल में रोजमर्रा की खेती एवं सामाजिक समस्याओं का निदान व्यक्ति इन्हीं कहावतों के आधार पर कर लेता है। इनकी कहावतें किसानों के लिए गुरुमंत्र हैं। अवधी और भोजपुरी क्षेत्रों में इनका प्रचार-प्रसार कुछ अधिक ही दिखाई पड़ता है। घाघ और भड्डरी की कहावतें आज भी प्रासंगिक हैं। उनमें ज्ञान विज्ञान सम्बन्धी प्रचुर सामग्री है। आज शस्य विज्ञान, पादप प्रजनन, पर्यावरण विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान आदि की दृष्टि से इन कहावतों के अध्ययन की आवश्यकता है।
संदर्भ सूत्र--इंटरनेट, विकिपिडिया