नया वर्ष तम सारे हर ले
ऐसा है उपहार कहाँ
चले संग जो सदा हमारे
वह जीवन का सार कहाँ
धरती की ज्वाला ठंडी हो
नदिया में वह धार कहाँ
बिन डगमग जो पार उतारे
वैसी है पतवार कहाँ
उठे हाथ जो सदा क्षमा को
ऐसे रहे विचार कहाँ
एक बात जो सर्वम्मत हो
वह सबको स्वीकार कहाँ
बिन बोले जो समझे सबकुछ
बहता है वह प्यार कहाँ
कोई न भूखा सो पाए
जग में वह भंडार कहाँ
अहसास हृदय को छू जाए
लेखन में व्यापार कहाँ
सिर्फ प्रीत के शब्द मिलें
होता ऐसा हर बार कहाँ
मन बन जाये रमता जोगी
मनु, सुन्दर संसार यहाँ।
-ऋता शेखर मधु
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 06/01/2019 की बुलेटिन, " सच्चे भारतीय और ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (07-01-2019) को "मुहब्बत और इश्क में अंतर" (चर्चा अंक-3209) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बिल्कुल सत्य लिखा है आपने। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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