मंगलवार, 31 मई 2016

हो जाएगा न -- लघुकथा

हो जाएगा न
''उत्कर्ष, उठो बेटा| एयरपोर्ट पर कम से कम एक घंटा पहले पहुँचना होता है| यहाँ से वहाँ जाने में ही एक घंटा लगता है| हमें तीन घंटा पहले निकलना चाहिेए| रास्ते में कोई भी अड़चन आ सकती है|''
''हो जाएगा न माँ|'' अलसाते हुए उत्कर्ष ने कहा|
उत्कर्ष बिल्कुल ही दो घंटे पहले निकला|
हवाईअड्डा जाने के तीन रास्ते थे| सबसे छोटा रास्ता बाई पास से था| उत्कर्ष ने वही लिया| पर यह क्या! वहाँ मरम्मत का काम चल रहा था| उधर से कार ले जाने का रास्ता नहीं था| झट से गाडी़ को दूसरे रास्ते पर ले आया उत्कर्ष जिसमें पन्द्रह मिनट लग गए| वह हड़ताली मोड़ था जहाँ अपनी माँगों को लेकर हजारों की संख्या में हड़तालकर्मी मौजूद थे और आवागमन पूरी तरह से बाधित था|
अब घबराहट से उत्कर्ष के पसीने आने लगे| उसने गाड़ी को पीछे किया और तीसरे रास्ते पर ले गया जिसमें दस मिनट लग गए| चूँकि अन्य दो रास्ते बन्द थे तो तीसरे को जाम होना ही था| पैंतीस मिनट पहले ही देर चुकी थी| जाम में फँसे उत्कर्ष के चेहरे पर माँ की बात नहीं मानने का पछतावा झलक रहा था| माँ भी चुप थी| किसी तरह सरकते हुए वे आगे बढ़े| हवाईअड्डा पहुँचने के बाद सिर्फ तीस मिनट बचे थे| भाग दौड़कर उत्कर्ष काउंटर पर गया| लाख मिन्नतों के बाद भी उसे जाने की अनुमति नहीं मिली|
लौट कर वापस आया उत्कर्ष और अपराधी की तरह माँ के सामने खड़ा हो गया|
माँ खुश थी कि उसने समय की कीमत पहचान ली थी|
---ऋता शेखर 'मधु'...

शुक्रवार, 27 मई 2016

रसोईघर-2-भेज कटलेट

रविवारी डिश...वेज कटलेट
दो व्यक्तियों के लिए
सामग्री
200 ग्राम लाल चना फुलाया हुआ
एक बड़ा प्याज महीन कटा हुआ
2 या 3 हरी मिर्च बारीक़ कटी हुई
एक बड़ा चम्मच सूजी
4 हरी इलाइची
नमक स्वादानुसार
एक छोटी चम्मच हल्दी
विधि...
फूले हुए लाल चने को मिक्सर में दरदरा पीस लें। उसमें उपरोक्त सारी सामग्री मिला दें। अब कटलेट का मनचाहा आकर देकर तवे पर तल ले। तेल थोडा अधिक डालें और आंच धीमी रखें।ब्राउन होने पर प्लेट में निकल लें और हरी चटनी या कच्चे आम की चटनी और प्याज के छल्लों के साथ परोसे। मेहमान अवश्य पूछेंगे कि यह किस चीज़ से बनी है।
नॉन वेज वालों को यह कीमा कटलेट लगेगा।




गुरुवार, 26 मई 2016

चुप रहो

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चुप रहो

‘’ममा, आप आधे घंटे से रसोई में हो और टीवी यूँ ही चल रहा है| आप बन्द करके जाया करो|’’
‘’चुप रहो’’
‘’पापा जी, बिना पंखा बन्द किए आप बाहर चले गए| मैम ने कहा है बिजली बचाना चाहिए|’’
‘’चुप रहो’’
‘’अंकल, बाल्टी में पानी भर कर बाहर बह रहा, हर बूँद पानी की बचाना चाहिए|’’
‘’चुप रहो’’
‘’आंटी, आप पाइप लगाकर ऐसे नहीं छोड़ा कीजिए| जब समय हो आपके पास तभी गमलों में और फूल में पानी डालिए|’’
‘’चुप रहो’’
‘’भइया, सड़क पर चिप्स के रैपर नहीं फेंको|’’
‘’चुप रहो’’
सात साल की नंदिता चुप हो गई| मगर वह खुद यह सब नहीं करती|
----ऋता---

सोमवार, 23 मई 2016

रसोईघर-1-धुसका

रविवारी डिश...
धुसका
200 ग्राम बासमती चावल और 150 ग्राम( चावल की तीन चौथाई) चना दाल को एक घंटा पानी में भिगो दें। उसे थोडा पानी डालकर मिक्सी में महीन पीस कर गाढ़ा घोल बना लें। 
एक बड़ा महीन कटा प्याज, 2या3 कटी हरी मिर्च, 8 या दस दाना कुटी हुई काली मिर्च, थोड़ी किशमिश ,स्वादानुसार नमक को घोल में मिला लें।
इसे डीप फ्राई करें। सुनहला होने पर निकाल लें और खट्टी चटनी या नारियल बादाम की चटनी के साथ खाये और मेहमानों को खिलाएं।




सौहार्द्र - लघुकथा

साझा अनुशासन- लघुकथा

उस शहर में मंदिर और मस्जिद अगल बगल थे| ईद में दोपहर एक बजे नमाजियों की कतार मंदिर के गेट तक आ जाती और रामनवमी में हनुमान जी को ध्वाजारोहण के लिए भक्तों की पंक्ति मस्जिद के सामने तक पहुँच जाती| 

इस बार प्रशासन को चिन्ता हो रही थी कि भीड़ को कैसे नियंत्रित किया जाएगा क्योंकि ईद और रामनवमी एक ही दिन थे और पूजा का मुहुर्त भी दोपहर बारह बजे से था| पुलिस अधिकारी सुरक्षा का इंन्तेजाम देखने वहाँ पर मौजूद थे| तभी अधिकारी ने देखा कि मंदिर के मुख्य पुजारी तथा मस्जिद के संचालक मौलवी जी एक साथ मुस्कुराते हुए सामने से आ रहे थे मानो कुछ निर्णय ले लिया था दोनों ने| 

सुबह से ही पुलिस की तैनाती थी| धीरे धीरे समय खिसकने लगा| भीड़ बढ़ रही थी| मंदिर के मुख्य द्वार पर पंडित जी खड़े थे और मस्जिद के द्वार पर मौलवी साहब| आँखों ही आँखों में दोनों की बातें हो रही थीं| बारह बजे से ध्वजा की पूजा आरम्भ हुई| पक्का पौने एक बजे पंडित जी मस्जिद के द्वार पर जा पहुँचे| उन्होंने भक्तों की पंक्ति को दो भागों में बाँटकर बीच में नमाजियों के लिए जगह बनाई| पूजा का काम आधे घंटे के लिए रोक दिया गया| शांतिपूर्ण माहौल में नमाज अता की गई| उसके बाद मौलवी साहब मंदिर के गेट पर गए और ईद मना रहे लोगों को शांति से हट जाने को कहा| प्रशासन इस सौहार्द्र को देखकर दोनों के सामने नतमस्तक हो गई|

----ऋता शेख ‘मधु’--------

मंगलवार, 17 मई 2016

अम्बर प्यासा धरती प्यासी

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1.
2121/ 2121/ 2121/ 212
आन बान शान से जवान तुम बढ़े चलो
विघ्न से डरो नहीं हिमाद्रि पर चढ़े चलो
वीर तुम तिरंग के हजार गीत गा सको
शानदार जीत के प्रसंग यूँ गढ़े चलो
 2.
2212/ 2212/ 2212/ 2212
सरगम हवाओं की मुहब्बत से भरी सुन लो जरा
महकी फ़िजा से फूल की तासीर को गुन लो जरा
हर ओर हैं उसके नजारे जो नजर आता नहीं
उस प्रीत की तस्वीर से बस श्याम को चुन लो जरा
 3.
2222/ 2222/ 2222/ 2222
अम्बर प्यासा धरती प्यासी राहें मेघों की भटकी हैं
तरुवर प्यासे चिड़िया प्यासी कलियाँ सूखी सी लटकी हैं
खेतों की वीरानी में कोलाहल सूखे का गूँज रहा
अपनी करनी पर पछताती मानव की साँसें अटकी हैं
4.
2122 2122 2122
आपके जो ख्वाब में पलते रहेंगे
चाँदनी बन रात में चलते रहेंगे
आँधियों में दीप को तुम देख लेना
प्रेरणा बन कर सदा जलते रहेंगे

------------ऋता शेखर ‘मधु’----------------------

शनिवार, 14 मई 2016

सुप्रभाती दोहे-3









हरी दूब की ओस पर, बिछा स्वर्ण कालीन

कोमल तलवों ने छुआ, नयन हुए शालीन 30

छँट जाती है कालिमा, जम जाता विश्वास
जब आती है लालिमा, पूरी करने आस

ज्यों ज्यों बढ़ता सूर्य का, धरती से अनुराग
झरता हरसिंगार है, उड़ते पीत पराग

पहन लालिमा भोर की, अरुण हुआ है लाल
चार पहर को नापकर, होता रहा निहाल 

सूर्य कभी न चाँद बना, चाँद न बनता सूर्य
निज गुण के सब हैं धनी, बंसी हो या तूर्य

पर अवलम्बन स्वार्थ की, कभी न थामो डोर
निष्ठा निश्चय अरु लगन, चले गगन की ओर

सुबह धूप सहला गई, चुप से मेरे बाल
जाने क्यों ऐसा लगा, माँ ने पूछा हाल

हवा लुटाती है महक, मगर फूल है मौन
श्रम सूर्य के साथ चला, उससे जीता कौन

प्रेमी तारा भोर का, गाता स्वागत गान
उतरीं रथ से रश्मियाँ, लिए मृदुल मुस्कान

शुष्क दरारों से सुनी, मन की करुण पुकार
रवि नीरद की ओट से, देने लगे फुहार

मंगलवार, 3 मई 2016

सुप्रभाती दोहे-2










प्रतिपल स्वर्णिम रश्मियाँ, छेड़ रहीं खग गान
आकुल व्याकुल सी धरा, झटपट करे विहान२०

ध्यानमग्न प्राची रचे, अरुणाचल में श्लोक
मन की खिड़की खोल मनु, फैलेगा आलोक१९

सूरज भइया आज तो, कर लो तुम आराम
मई दिवस है मन रहा, फिर क्यों करना काम१८


तीखी तीखी धूप जब,पहुँचाए आघात
तब मेघो के नृत्य की, होती है शुरुआत१७


नित नवल शक्ति भक्ति का, दे जाता आयाम
उस ऊर्जा के स्रोत को, शत शत करें प्रणाम१६

ये भूमण्डल गोल है, सूरज भी है गोल
होंतीं बातें गोल जब, बज जाती है ढोल१५

ज्यों सूरज सजने लगा, आसमान के भाल
चलती कलछी देखकर, हँसे बाल गोपाल14

शनै शनै होने लगा, अर्द्धवृत्त से गोल
दिनकर जी को देखकर, अब तो आँखें खोल13

नव प्रभात की नव किरण, करे अँधेरा दूर
गहरी काली रात का, दर्प हुआ है चूर12

सप्त अशव की पीठ पर, सूर्य लगाता पंख
द्रुतगति से रश्मियाँ, चलीं बजाती शंख11
-ऋता शेखर 'मधु'