1.
2121/ 2121/ 2121/ 212
आन बान शान से जवान
तुम बढ़े चलो
विघ्न से डरो नहीं
हिमाद्रि पर चढ़े चलो
वीर तुम तिरंग के
हजार गीत गा सको
शानदार जीत के
प्रसंग यूँ गढ़े चलो
2212/ 2212/ 2212/ 2212
सरगम हवाओं की
मुहब्बत से भरी सुन लो जरा
महकी फ़िजा से फूल
की तासीर को गुन लो जरा
हर ओर हैं उसके
नजारे जो नजर आता नहीं
उस प्रीत की तस्वीर
से बस श्याम को चुन लो जरा
2222/ 2222/ 2222/ 2222
अम्बर प्यासा धरती
प्यासी राहें मेघों की भटकी हैं
तरुवर प्यासे
चिड़िया प्यासी कलियाँ सूखी सी लटकी हैं
खेतों की वीरानी में
कोलाहल सूखे
का गूँज रहा
अपनी करनी पर पछताती
मानव की साँसें अटकी हैं
4.
2122 2122 2122
आपके जो ख्वाब में
पलते रहेंगे
चाँदनी बन रात में
चलते रहेंगे
आँधियों में दीप को
तुम देख लेना
प्रेरणा बन कर सदा
जलते रहेंगे
------------ऋता
शेखर ‘मधु’----------------------
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-05-2016) को "अबके बरस बरसात न बरसी" (चर्चा अंक-2345) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री सर !
हटाएंआज की बुलेटिन विश्व दूरसंचार दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया हर्षवर्धन जी !
हटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
शुक्रिया !
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
आभार आपका !
हटाएंबहुत सुंदर रचना.;बधाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रश्मि जी !
हटाएंशुक्रिया यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
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