शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

उम्मीदों के नए सफर में



नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ...

नवगीतों की पुरवाई

नवगीतों की पुरवाई में
नवल आस की कलियाँ चटकी |


किसलय आने को है आतुर
पेड़ों ने झाड़ी है डाली
नव खुश्बू की आशा लेकर
बगिया सजा रहा है माली
फूलों के काँधे चढ़ आई
खुशियों की सोंधी सी मटकी |


बीते वर्षों में बातों की
कहीं नुकीली फाँस लगी हो
नवल गगन में वही चाँदनी
शायद मधुरिम और सगी हो
नीलकंठ ने अमृत देने
नन्ही गरल- बूँद है गटकी |


कर्मों के जो वीर बने हैं
तम भी उनसे घबराता है
उमंगों भरी हर चौखट को
गम दूर से हाथ हिलाता है
छल प्रपंच की झूठी पटरी
प्रीत दिवानों को है खटकी |


उम्मीदों के नए सफर पर
हर्ष भरा जो झोला टाँगे
छींट चले हैं स्वप्न-बीज को
झिलमिल जुगनू ने जब माँगे
द्वार- द्वार भी थिरक उठे हैं
तोरण में जूही है लटकी |


आएँगे अब रंग बसंती
फूलों की चौपाल सजेगी
मटकेगी सरसों दुल्हनिया
नए वर्ष के गीत बजेंगे
उठ चुकी डोली बहार की
हौले से फुनगी पर अटकी |
—-ऋता शेखर ‘मधु’

रविवार, 12 दिसंबर 2021

दोहे



दोहे
1.
सुदामा संग कृष्ण ने, खींचा ऐसा चित्र |
बिना बोले समझ सके, वह है सच्चा मित्र ||
2.
एक ही खान में रहें, कोयला- कोहिनूर |
एक जलकर राख हुआ, एक न खोए नूर ||
3.
भवसागर में जब कभी, मिल जाए मझधार |
हर मा़ँझी को चाहिए, हिम्मत की पतवार ||
4.
प्राची में हो लालिमा , खग चहके चहुँ ओर |
वेद ऋचाओं से भरे, वह सिन्दूरी भोर ||
5.
आँखों में सपने भरे, पंखों में विस्तार |
सबके मन को जीतकर, जाती खुद को हार ||
6.
होता है हर बात में , समझ- समझ का फेर |
समझ सके न प्रीत लखन | राम चख लिये बेर ||
7.
मन पूरा ब्रह्मांड है, मन है विस्तृत व्योम |
बस थोड़ा सा ध्यान हो, गूँज उठेगा ओम ||
8.
मन मंदिर में जब बसे, रघुनंदन श्रीराम |
सारी चिंता त्याग कर, मन पाता विश्राम ||
9.
अंतर-आत्मा से सदा, निकले सच्ची बात |
मिलावट है दिमाग में, करे घात-प्रतिघात ||
10.
कड़े दन्त से जो भ्रमर, करे काष्ठ में छेद|
शतदल में कैदी बने, कैसा है यह भेद ||
--ऋता शेखर 'मधु'