गुनगुनी सी धूप आई
शरद बैठा खाट लेकर
मूँगफलियों को चटकता
मिर्च नींबू चाट लेकर
फुनगियों से हैं उतरती
हौले झूमती रश्मियाँ
फुदक रहीं डाल डाल पर
चपल चंचला गिलहरियाँ
चौपालों पर सजी बजीं
तरकारियाँ, हाट लेकर
गुनगुनाती हैं गोरियाँ
गेहुँएँ औ' पाट लेकर
छिल गईं फलियाँ मटर की
चढ़ी चुल्हे पर घुघनियाँ
क्यूँ होरियों से चल रहीं
ये पूस की बलजोरियाँ
बंधने लगीं लटाइयाँ
मँझे धागे काट लेकर
समेट रहीं परछाइयाँ
आगमन की बाट लेकर
गुनगुनी सी धूप आई
शरद बैठा खाट लेकर
*ऋता शेखर 'मधु'*
------------------------------
Bahut sundar
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंफिर कमाल टीचर बहन :)
जवाब देंहटाएंपूरे दृश्य को सजीव कर गयी आपकी कविता.....,
जवाब देंहटाएंapne gun guni dhup me bin di achchi kavita badhai svikar ho
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-11-2014) को "नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795 पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मुँह में पानी ला दिया ! सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंप्रेम !
तुझे मना लूँ प्यार से !
Sharad ka pura khaka khich gya ankho ke age..badhai
जवाब देंहटाएंवाह कमाल की कविता कमाल की गुनगुनी धूप।
जवाब देंहटाएंchitr ne lalchuwa diya....prastuti kamaaal ki...lajawaab
जवाब देंहटाएंBahut hi khubsurat geet -----.
जवाब देंहटाएंक्या बात है .... बहुत ही बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले