सखी री..........
भ्रमर ने गीत जब गाया
पपीहा प्रीत ले आया
शिखी के भी कदम थिरके
सखी री, फाग अब आया |
बजी जो धुन मनोहर सी
थिरक जाए यमुन जल भी
विकल हो गा रही राधा
सखी री मोहना आया|
कली चटखी गुलाबों की
जगे अरमान ख़्वाबों के
उड़ी खुशबू फ़िजाओं में
सखी ऋतुराज है आया|
गिरे थे शूल राहों में
खिले थे फूल बाहों में
ख़ता उसकी न तेरी थी
सखी बिखराव क्यूँ आया|
झुके से थे नयन उसके
रुके से थे कदम उसके
किया उसने इबादत भी
सखी री काम ना आया|
मिला जो वह बहारों में
लगा अपना हजारों में
जहाँ देखे वहाँ वो था
सखी ढूँढे नजारों में|
....ऋता शेखर 'मधु'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (29-11-2014) को "अच्छे दिन कैसे होते हैं?" (चर्चा-1812) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार सर !!
हटाएंक्या खूब लिखा है आपने ............आपके ब्लॉग पर पहली बार आया .........अच्छा लगा आपसे यहाँ मिलकर ! सधन्यवाद
जवाब देंहटाएंहमें भी अच्छा लगा...सादर धन्यवाद !!
हटाएंहर बार क्या तारीफ करूँ, मन ही मन प्रसन्न होती जाती हूँ
जवाब देंहटाएंआभार रश्मि दी !!
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति ,समय से पहले वसंत आ गया
जवाब देंहटाएंजी....जब मन खुश तभी बसंतः)
हटाएंझुके से थे नयन उसके
जवाब देंहटाएंरुके से थे कदम उसके
किया उसने इबादत भी
सखी री काम ना आया|
मिला जो वह बहारों में
लगा अपना हजारों में
जहाँ देखे वहाँ वो था
bahut khoob
badhai
rachana