रविवार, 14 मार्च 2021

लंच बॉक्स- लघुकथा

 लघुकथा- 

लंच बॉक्स

दसवीं कक्षा की क्लास लेते हुए अचानक सुधा मैम ने पूछा," बच्चों, यह बताओ कि आज सुबह का नाश्ता किये बगैर कौन कौन आया है।"

एक छात्रा ने हाथ उठाया।

" क्या घर में कुछ बन नहीं पाया था"

"बना था, पर उसे छोटी बहन के लंच बॉक्स में मम्मी ने देकर भेजा।"

"ऐसा क्यों, तुम्हें क्यों न मिला।"

"वह अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ती है न।मम्मी उसे अच्छा लंच देती है और उसके ड्रेस भी कड़क होते है।"

सुधा मैम ने ध्यान दिया कि उसने स्कूल शूज़ न पहन कर चप्पल पहन रखी था।

"सुनो, मम्मी को कहना कि वह तुम्हें भी साफ कपड़े दे और टिफिन भी"

"पर वह हमेशा कहती हैं कि सरकारी स्कूल में सब चलता है।"

सुधा मैम ने स्कूल के समापन सभा के समय कड़ाई से कहा," कल से सभी को पूरे स्कूल ड्रेस में आना है और सभी के साथ लंच बॉक्स और पानी की बोतल होनी चाहिए।"

सभा विसर्जित होने के बाद सुधा मैम की कुलीग ने पूछा, " यह अचानक इतनी कड़ाई क्यों"

" इसी कड़ाई की कमी है, तभी तो सरकारी उपेक्षित है। इसके लिए सरकार क्या करेगी जब मानसिकता ही सरकारी बनी रहेगी।"

सुधा मैम की चाल में बदलाव लाने की दृढ़ता झलक रही थी।

ऋता शेखर मधु

शनिवार, 13 मार्च 2021

मन सबका है एक सा- दोहा गीतिका


दोहा गीतिका

रंग बिरंगे पुष्प हैं, बगिया के आधार।

मिलजुल कर मानव रहें, सुन्दर हो संसार।।


तरह तरह की बोलियाँ, तरह तरह के लोग।

मन सबका है एक सा, सुखद यही है सार।।


मंदिर में हैं घण्टियाँ, पड़ता कहीं अजान।

धर्म मज़हब कभी कहाँ, बना यहाँ दीवार।।


दान पुण्य  से है धनी, अपना भारत देश।

वीर दे रहे जान भी, जब जब लगी पुकार।।


यहाँ कृष्ण का प्रेम है, यहीं राम का धैर्य।

जगपालक जगदीश हैं, शिव करते संहार।।


चैती से ही चैत्र है , होली से है फाग।

आल्हा ऊदल ने कभी, भरी यहाँ हुंकार।।


अतिथि यहाँ पर देव हैं, पितरन पाते मान।

कोविड औषध बाँटकर, बना वतन दिलदार।।

----ऋता शेखर 'मधु'

सोमवार, 8 मार्च 2021

कर्णेभिः 29-लघुकथा- आठवाँ वचन-ज्योतिर्मयी पंत, स्वर- समीक्षा व प्रस्तुति...


महिला दिवस के उपलक्ष्य में कर्णेभिः में आज लेकर आई हूँ...आठवाँ वचन|
सात वचन तो विवाह वेदी पर दिए जाते...
लघुकथा में जानिये कि आठवाँ वचन कौन सा होना चाहिए|

महिला दिवस की क्षणिकाएँ

महिला दिवस की क्षणिकाएँ शुभकामनाओं के साथ 🌹🌹

1
जो तन मन से रहे
हरदम घर में रत
तभी तो  संसार में
नाम पड़ा औ-रत।
2
चकरघिन्नी देखने को
इधर उधर न झाँको
दिख जाएगी घर में ही
नजर खोलकर ताको।
3
भोर की लालिमा में
पूजा का आलोक है
महिला के जाप में
गायत्री का श्लोक है।
4
छोड़ रहा छाप है
पाँव का आलता
बिछड़न का दुःख
बेटी को सालता।
5
महिला की महिमा
ईश्वर भी जानते
शक्ति के रूप में
दुर्गा को मानते।
6
जब जब पड़ा है
त्याग का काम
पुरुषों ने कर दिए
महिलाओं के नाम।
7
जिसके आँचल पर टिकी
इस सृष्टि की आशा
लिख  सका है कौन
नारी की परिभाषा।
8
जिसके आँचल में बँधी
दो दो कुल की मर्यादा
माप सका न धीर कोई
राजा हो या प्यादा।
9
नारी को स्वीकार नहीं
बनना चरणों की रज
वक्त की पुकार पर वह
मुट्ठी में बाँध रही सूरज।
10
शीतल छाँव को खोजने
दुनिया सारी घूम आया
खुद को अज्ञानी समझा
जब आँचल माँ का पाया।
11
जिससे घर, घर लगता है
रखते उससे गिला
महिला को भी चाहिए
काम का सिला।
🙏🙏🌹🌹
ऋता शेखर 'मधु'