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गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012

ठनी लड़ाई




ठनी लड़ाई

आज मेरी गणपति की सवारी के साथ ठन गई| गणपति के सामने लड्डुओं से भरा थाल रखा था| उन लड्डुओं पर भक्त होने के नाते मैं अपना अधिकार समझ रही थी और वह मूषक अपना...आखिर गणेश का प्रिय जो था| मेहनत की कमाई से लाए लड्डुओं को लुचकने के लिए वह तैयार बैठा था| चूहों की तरह कान खडे करके गोल-गोल आँखें मटकाता दूर से ही वह सतर्क था कि मैं कब अपनी आँखें बन्द करके ध्यान में डूबूँ और वह लड्डुओं पर हाथ साफ करे| मैं भी कब दोनों आँखें बन्द करने वाली थी| एक आँख बन्द करके गणेश जी को खुश किया और दूसरी आँख खुली रखकर चूहे पर नजर रखी| किन्तु ये भी कोई पूजा हुई भला...देवता से ज्यादा ध्यान चूहे पर!
पल भर के लिए सीन बदल गया| थाल में लड्डुओं की जगह मेहनत की कमाई दिख रही थी और चूहे में वह भ्रष्टाचारी जो एरियर का बिल बनाने के लिए पैसों पर नजर जमाए बैठा था| फिर तो मैंने भी ठान लिया...उस चूहे को एक भी लड्डू नहीं लेने दूँगी|


ऋता शेखर मधु