हमने आपको देखा नहीं
पर जानती हूँ आपको
आपकी रचनाओं के माध्यम से
समझ पाती हूँ
आपकी खुशियाँ, आपके दर्द
समझती हूँ आपके एहसास
यूँ लगता है जैसे
घूम रही हैं आप
हमारे ही आसपास
हमारे बालों को सहलाती
हमारे हताश मन को
सांत्वना की थपकियाँ देती
हमारे सपनों को पंख देती
हमें यूँ लगता है
बहुत मिलते हैं हमारे ख़यालात
लेखनी आपकी है
पर लिख जाती है हमारे जज़्बात
आपकी हर रचना लगती है
जैसे हो हमारे दिल की बात
हम मिलें न मिलें
पर हर दिन मिलते हैं
एक नई कविता के साथ
कभी खिलखिलाती
कभी गुनगुनाती
कभी सिसकती हुई
कभी बादलों पर
पंख लगाकर उड़ती
कभी हरसिंगार सी महकती
कभी अंगारों सी दहकती
कभी चिड़ियों सी चहकती
कभी नदियों सी मचलती
सूर्य-रश्मि की प्रभा बनीं
आप कितनों का
पथ आलोकित करती हैं
शायद आप भी नहीं जानतीं
दिल से दिल का कनेक्शन जोड़ती
चमकीले बिखरे मोतियों को समेट
उन्हें अभिव्यंजित करती
फूलों द्वारा दिए ज़ख्मों पर
मलहम रखती
आप न मिलकर भी
हमारा संबल बन जाती हैं
फिर कैसे कहूँ
मैं आपको नहीं जानती !!!
ऋता शेखर ‘मधु’
बहुत हमारे मिलते है,आपस में ख्यालात
जवाब देंहटाएंरचना करते हो तुम, जैसे हो मेरे जज्बात,,,,
बहुत सुंदर रचना,,,ऋता शेखर ‘मधु’ जी,,,,,बधाई
एकदम सत्य लिखा आपने...
जवाब देंहटाएंइस सत्योकती और सुंदर रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें...
बहुत ही सुंदर .....
जवाब देंहटाएंहमने तो पूरी रचना "आप" को "अनु" से रिप्लेस करके पढ़ी...
जवाब देंहटाएं:-)
मन प्रसन्न हुआ...भाव विभोर....
ढेर सा स्नेह और कुछ ऐसे ही भाव आपके लिए भी.
अनु
सूर्य-रश्मि की प्रभा बनीं
जवाब देंहटाएंआप कितनों का
पथ आलोकित करती हैं
शायद आप भी नहीं जानतीं
दिल से दिल का कनेक्शन जोड़ती
चमकीले बिखरे मोतियों को समेट
उन्हें अभिव्यंजित करती
फूलों द्वारा दिए ज़ख्मों पर...
लेखन से ही यहाँ हम एक दूसरे की भावनाओं को समझते हैं ..... बहुत खूबसूरत रचना ....
तदानुभूती हमें भी हुई ,भले लिखा आपने .हाँ होता है ऐसा ,कई बार होता है ,जब सोचतें हम हैं ,लिखता ,कोई और है ,हमारे थोट ब्रोड कास्ट हो जातें हैं कविता की समिधा बन जातें हैं .
जवाब देंहटाएंसोमवार, 6 अ
भी जुडी है आपकी रीढ़ सेविकर भाई बड़ा ही दुखद रहा है यह प्रसंग .राजनीति के आश्रय में कभी प्रेम पल्लवित नहीं हो पाता
गस्त 2012
भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत.
मन से निकली बात ही,मन छू जाती है
जवाब देंहटाएंऐसी ही रचनायें जग में अमर कहाती हैं.
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
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3. तख़लीक़-ए-नज़र
सच है अपनी रचना और अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से ही हम एक दूसरे के इतने करीब है.एक दिन भी एक दूसरे से ना मिले तो कुछ मिसिग सा लगता है .. में भाव विभोर करती बहुत खुबसूरत प्यारी सी रचना....बहुत -बहुत शुभकामनाएं ऋता...
जवाब देंहटाएंमन के कोमल भाव किसी अंजान के लिए ... और वो अंजान ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब और खूबसूरत रचना ...
अनोखा , अनजाना - फिर भी अपना ,
जवाब देंहटाएं- अनाम , पर साथ
इस परिचय में अनलिखी डायरी भी बोलती है
बहुत सुन्दरता से भावों को सहेजा है।
जवाब देंहटाएंकभी हरसिंगार सी महकती
जवाब देंहटाएंकभी अंगारों सी दहकती
कभी चिड़ियों सी चहकती
कभी नदियों सी मचलती
सूर्य-रश्मि की प्रभा बनीं
वाह! बहुत सुन्दर मधुर गुंजन
लगता है आप मेरे ब्लॉग पर आईं
और मधुर गुंजन का अहसास चुपचाप
करा गयीं.
आपको मेरी नई पोस्ट शायद नही भायी.
सूर्य-रश्मि की प्रभा बनीं
जवाब देंहटाएंआप कितनों का
पथ आलोकित करती हैं
यही इनका सबसे बड़ा सच है ... आभार आपका इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिए
क्या कहने???/
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
हृदयस्पर्शी रचना...
वाह क्या बात है अति सुन्दर , बहुत-२ बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर. इस रचना में कुछ ब्लॉग का परिचय भी शामिल है, जिसे हम सभी पढते आए हैं. हम सभी भले न मिलें पर अपनी अपनी रचनाओं के माध्यम से जुड़े रहते हैं. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंकभी खिलखिलाती
जवाब देंहटाएंकभी गुनगुनाती
कभी सिसकती हुई
कभी बादलों पर
पंख लगाकर उड़ती
कभी हरसिंगार सी महकती
कभी अंगारों सी दहकती
कभी चिड़ियों सी चहकती
कभी नदियों सी मचलती......
सचमुच बहुत सुन्दर भाव
बहुत सुंदर कविता।
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