गौरैया
रोज़ सवेरे मेरे आँगन
आती थी इक गौरैया|
कुदक-कुदक कर,
फुदक-फुदक कर,
दाना खाती वह गौरैया|
छोटी सी आवाज़ पर
चौकन्नी होती गौरैया|
चकित नज़र चहुँ ओर डालती
चपल चंचल थी गौरैया|
चिड़ा आए दाना लेने तो
चोंच मारती गौरैया|
नन्हें से बच्चे को लाती
वात्सल्य से भरी गौरैया|
खाना डालती बच्चे के मुख में
ममता की मारी गौरैया|
क्षुधा की पूर्ति हो जाती तो
चहचहा उठती थी गौरैया|
नहीं मिलते चावल के दाने
चूँ-चूँ कर माँगती गौरैया|
निकट जाने की कोशिश की तो
उड़ जाती थी गौरैया|
एक सुबह उलझी झाड़ी में
लंगड़ी हो गई गौरैया|
पंख टूट गए उसके
लाचार हो गई गौरैया|
किसी तरह आँगन में आई
चुपचाप खड़ी थी गौरैया|
दाना डाल दिया फिर भी
उदास पड़ी थी गौरैया|
हाथ बढ़ाया चुपके से
मुट्ठी में आ गई गौरैया|
प्यार से सहलाया उसे
सिमट गई वह गौरैया|
नज़र मिली उसकी नज़रों से
कृतज्ञ थी शायद वह गौरैया|
ऋता
शेखर ‘मधु’
नज़र मिली उसकी नज़रों से
जवाब देंहटाएंकृतज्ञ थी शायद वह गौरैया|
बहुत ही बढिया ... भावमय करते शब्दों का संगम
गौरैया के दर्द को समझा
जवाब देंहटाएंधन्य हुई वह गौरैया
पहले निश् दिन दीखती,आँगन में गौरया
जवाब देंहटाएंजाने कहाँ गुम हो गई ,दिखाए न भईया,,,,,
अहसास भरी एक अच्छी प्रस्तुति,,,,
MY RECENT POST ...: जख्म,,,
जिस रफ़्तार से शहर बढ़ रहे हैं .. पेड़ कट रहे हैं .. गौरैया भी कहीं खोती जा रही है आँगन से ... भाव मय रचना है ...
जवाब देंहटाएंख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई, सादर वन्दे,,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी...हृदयस्पर्शी....
जवाब देंहटाएंसस्नेह
अनु
हृदयस्पर्शी बहुत प्यारी सी सुन्दर. रचना..ऋता
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी और मर्मस्पर्शी रचना..
जवाब देंहटाएंस्नेहमयी रचना.........
जवाब देंहटाएंdil ko chhuti kavita
जवाब देंहटाएंrachana
बेहतरीन पंक्तियाँ..... भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कोमल
जवाब देंहटाएंभाव लिए सुन्दर रचना...
:-)