जली पतीली का दर्द
ये महिलाएँ भी न
पता नहीं
क्या समझती हैं खुद को,
कभी भी धैर्यपूर्वक
चुल्हे के पास खड़े होकर
दूध नहीं उबालतीं
उन्हें बड़ा नाज है
अपनी याददाश्त पर
पतीले में दूध डाला
उसे गैस पर चढ़ाया
पर वहाँ खड़े होकर
कौन बोर होने का सरदर्द ले
या तो तेज आँच पर ही
दूध को छोड़कर
गायब हो जाती हैं
यह सोचकर
‘बन्द
कर दूँगी न’
इधर दूध बेचारा भी क्या करे
उसे आदत है
उबलकर बाहर निकल जाने की
और नतीजा बड़ा सुहाना
हँस-हँस कर गाइए
‘हम उस
घर के वासी हैं
जहाँ दूध की नदिया बहती है’J
दूसरा विकल्प
गैस की आँच धीमी करो
फिर निकल जाओ गप्पें मारने
अब दूध बेचारा
उबलता रहा
उबलता रहा
आधा हुआ
उसका भी आधा हुआ
उफ! मालकिन अब भी गायब
पतीली ने सारा दूध पी लिया
अब क्या करे
उसने जले दूध की गंध
फ़िजाओं में घोल दिया
फिर रो-रो कर गाने लगी
‘मैं
बैरन ऐसी जली
कोयला भई न राख’…J
.ऋता शेखर 'मधु'
हा हा .... यह तो पतीली से ज्यादा दूध का दर्द है :):)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
हटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-04-2013) के "साहित्य दर्पण " (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
शुक्रिया शशि जी !!
हटाएंघर-घर की कहानी :-))))
जवाब देंहटाएंगज़ब :)
जवाब देंहटाएं‘मैं बैरन ऐसी जली
जवाब देंहटाएंकोयला भई न राख’…J
............. वाह बहुत खूब
उसने जले दूध की गंध
जवाब देंहटाएंबहुत खूब फ़िजाओं में घोल दिया
फिर रो-रो कर गाने लगी
‘मैं बैरन ऐसी जली
कोयला भई न राख’…J
वाह बहुत खूब .अच्छी रचना .बेहतरीन प्रस्तुति.आभार
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत ही बेहतरीन रचना,आभार.
जवाब देंहटाएं"महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी
जवाब देंहटाएं"
:-)
जवाब देंहटाएंसंगीता दी ने सच कहा :-)
सस्नेह
अनु
जवाब देंहटाएंविचारपूर्ण
सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
सही कहा ऋता जी!
जवाब देंहटाएंहमारी सासु माँ के अनुसार: दूध बहुत घमंडी होता है...उससे ज़रा नज़र फेरी नहीं...की गुस्से में उबाल जाता है... हाहाहा :):P
~सादर!!!
वाह ..
जवाब देंहटाएंकुछ अलग सी !!
Wah...
जवाब देंहटाएंWah...Bahut khub
जवाब देंहटाएंbehatareen
जवाब देंहटाएंपतीली को ये दर्द हमेशा सहना ही पड़ता है,,,
जवाब देंहटाएंवाह !!! बहुत खूब,बेहतरीन रचना,आभार,
RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.
सही रेखांकन .....
जवाब देंहटाएंपतीली तो और रगड़ी जाएगी, साफ़ करके चढ़ा दी जाएगी दूध तो मारे ग़ुस्से को उबल गया !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... आपने दर्द बयाँ कर दिया पतीले का ...
जवाब देंहटाएंमहिला के लापरवाही पर दूध गुस्से में उबल पड़ा -बहुत खूब
जवाब देंहटाएंlatest post"मेरे विचार मेरी अनुभूति " ब्लॉग की वर्षगांठ
कल ही दूध की पतीली जली अपनी भी :( | बहुत बढ़िया |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बच्चे तरसे दूध को , पति तरसे बिन चाय
जवाब देंहटाएंगप्पा से फुरसत नहीं,नित नित दूध जलाय
नित नित दूध जलाय ,कभी टीवी में रमती
मोबाइल कर ऑन , नहीं घंटे भर थमती
हैं गेहूँ के संग , उड़े घुन के परखच्चे
पति तरसे बिन चाय ,दूध को तरसे बच्चे ||
बच्चे तरसे दूध को , पति तरसे बिन चाय
जवाब देंहटाएंगप्पा से फुरसत नहीं,नित नित दूध जलाय
नित नित दूध जलाय ,कभी टीवी में रमती
मोबाइल कर ऑन , नहीं घंटे भर थमती
हैं गेहूँ के संग , उड़े घुन के परखच्चे
पति तरसे बिन चाय ,दूध को तरसे बच्चे ||