पथ के पाहनों का स्वागत तो कीजिए
ठोकरों के डर से चलना न छोड़िए
हाँजी, हाँजी करके आज दिख रहे जो दोस्त
क्या पता, उनके नक़ाब ही उतर जाएँ
उगी हुई नागफनी का स्वागत तो कीजिए
चुभन के डर से न दामन समेटिए
तलवों से निकलेंगे जो लहू की धार
क्या पता, वह मखमली कालीन बन जाएँ
जीवन की हर लहर का स्वागत तो कीजिए
गहराई देखकर के तैरना न छोड़िए
लहरों के साथ कभी डूब भी गए अगर
क्या पता, गहरे पर मोतियाँ ही मिल जाएँ
व्यंग्य-बेधी बेरुखी का स्वागत तो कीजिए
नमी आँखों में सज भी जाए, हँसना न छोड़िए
मन-ज़मीं पर गिरेंगे असंख्य भाव-बीज
क्या पता, कविताओं में पारिजात खिल जाएँ
ऋता शेखर ‘मधु’
बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें-
मन-ज़मीं पर गिरेंगे असंख्य भाव-बीज
जवाब देंहटाएंक्या पता, कविताओं में पारिजात खिल जाएँ,,,,बहुत शानदार प्रस्तुति,,,
resent post : तड़प,,,
फिर स्वतः आपको खुशबू मिलेगी भावनाओं की
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंहाँ मगर इतना सहज,सरल और सुन्दर हो पाना आसान कहाँ होता है..
सस्नेह
अनु
वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़ियाँ रचना...
अगर ऐसा ही सोचे तो दुःख में भी
ख़ुशी ही मिलेगी..कम भी कम ना लगेगा..
गम भी गम ना लगेगा..
:-) :-)
शुक्रिया प्रदीप जी !!
जवाब देंहटाएंव्यंग्य-बेधी बेरुखी का स्वागत तो कीजिए
जवाब देंहटाएंनमी आँखों में सज भी जाए, हँसना न छोड़िए
मन-ज़मीं पर गिरेंगे असंख्य भाव-बीज
क्या पता, कविताओं में पारिजात खिल जाएँ
वाह बहुत सुंदर और प्रेरक भी .
आहा बेहद गहन अभिव्यक्ति खूबसूरती से बयां किया है आपने, बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
उगी हुई नागफनी का स्वागत तो कीजिए
चुभन के डर से न दामन समेटिए
तलवों से निकलेंगे जो लहू की धार
क्या पता, वह मखमली कालीन बन जाएँ
पारिजात महकने लगे हैं ऋता जी !
जवाब देंहटाएंमन-ज़मीं पर गिरेंगे असंख्य भाव-बीज
जवाब देंहटाएंक्या पता, कविताओं में पारिजात खिल जाएँ
बहुत खूबसूरत भाव संजोये हैं।
बहुत सुंदर !:)
जवाब देंहटाएंबहुत सहजता से इतने कोमल एहसासों में.. सीप के अंदर छिपी "सीख" रखी आपने... :))
~सादर !
बढ़िया भाव बोध की रचना .
जवाब देंहटाएंक्या पता, कविताओं में पारिजात खिल जाएँ
- ऋता शेखर मधु
@ मधुर गुंजन
बढ़िया भाव बोध की रचना .
जवाब देंहटाएंक्या पता, कविताओं में पारिजात खिल जाएँ
- ऋता शेखर मधु
@ मधुर गुंजन
उगी हुई नागफनी का स्वागत तो कीजिए
जवाब देंहटाएंचुभन के डर से न दामन समेटिए
तलवों से निकलेंगे जो लहू की धार
क्या पता, वह मखमली कालीन बन जाएँ
वाह...वाह...वाह...लाजवाब रचना...बधाई
नीरज
उगी हुई नागफनी का स्वागत तो कीजिए
जवाब देंहटाएंचुभन के डर से न दामन समेटिए
तलवों से निकलेंगे जो लहू की धार
क्या पता, वह मखमली कालीन बन जाएँ
वाह...वाह...वाह...लाजवाब रचना...बधाई
नीरज
प्रिय ब्लॉगर मित्र,
जवाब देंहटाएंहमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।
शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम
पुनश्च:
1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला।
[यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।
लाजवाब रचना.
जवाब देंहटाएंमन-ज़मीं पर गिरेंगे असंख्य भाव-बीज
जवाब देंहटाएंक्या पता, कविताओं में पारिजात खिल जाएँ
बेहद खूबसूरत
ब्लॉग पर आएं..एक योजना है अपनी राय दें...स्वागत है...
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
जवाब देंहटाएंsunder....
जवाब देंहटाएंउगी हुई नागफनी का स्वागत तो कीजिए
जवाब देंहटाएंचुभन के डर से न दामन समेटिए
तलवों से निकलेंगे जो लहू की धार
क्या पता, वह मखमली कालीन बन जाएँ ..
वाह क्या बात है ... इस नई सोच का स्वागत जरूरी है ... शावान रहना जरूरी है जीवन में ...
उगी हुई नागफनी का स्वागत तो कीजिए
जवाब देंहटाएंचुभन के डर से न दामन समेटिए
तलवों से निकलेंगे जो लहू की धार
क्या पता, वह मखमली कालीन बन जाएँ ..
वाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यक्ति में