रविवार, 25 नवंबर 2012

कैक्टस में भी फूल लगे



बड़े प्यार से सजाया
माली ने छोटा सा चमन
नन्हे छोटे पौध लगाए
सींचा उनको करके जतन
आशा भरी थी नैनों में
कभी खिलेगा इनमें बसंत
बगिया होगी रंगीन हसीन
सपने संजोया माली ने

दूर कहीं से उमड़ घुमड़
आया काला काला बादल
तेज तेज आँधी आई
ओला बरसाया बादल
सह न सका इस विपदा को
उजड़ गया माली का चमन

हाहाकार कर उठा ह्रदय
देख क्षत विक्षत बगिया को
टपक पड़े दो बूँद अश्रु
पीड़ा भरे नयनों से
कैसे संभाले उजड़े चमन को
असहाय इन हाथौं से
बिखर गए थे सारे पौधे
कुछ रौंदे कुछ टूटे से

ममता भरे स्पर्श मिले
उठ खड़ा हुआ माली
थके थके कदमों से उसने
रौंदे टूटे पौधे बटोरे
भले ही पौधे टूट चुके थे
फेंका उनको भारी मन से

आहत दिल से उसने
नव अंकुर क्यारी में रोपे
उग आए कुछ पौधे कटीले
फेंका उसे नहीं माली ने
चुभन झेल बचना सीखा
सींचा उनको भी माली ने

दिन बीते मौसम बीते
अँकुर बढ़ते चले गए
पौध से वे वृक्ष बने
देख देख हर्षाया माली
कैक्टस में भी फूल लगे
बगिया में खिल गया बसंत|

ऋता शेखर मधु

7 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद भावपूर्ण सुन्दर रचना, बहुत-2 बधाई स्वीकारें
    सादर, अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर भावमय रचना।
    सादर
    मधुरेश

    जवाब देंहटाएं
  3. अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. काँटों से बचते हुये जो जीना सीख ले तो ज़िंदगी मुसकाती है .... सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. लाजवाब रचना ... भावनाओं का संयोजन ...

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!