रसकदम
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‘’पिता जी, अपना मुँह खोलिए| मैं आपके पसंद की मिठाई लाई हूँ| एक गप्प और रसकदम मुँह के अन्दर|’’
‘’अरे, ये क्या कर रही हो स्निग्धा| तुम्हे पता है न कि पिताजी को डायबिटीज है फिर भी मिठाई...’’ सामने पिता का मुँह खुला ही रह गया और मिठाई स्निग्धा के हाथ में रह गई|
पिता की आँखों में छलक आए आँसूओं ने जाने कितना कुछ कह दिया|
‘’भइया, डायबिटीज के नाम पर किसी की क्षुधा को इस तरह कल्हटाना अच्छी बात नहीं| बीमारी एक ओर है और कठोरता एक ओर| आप दस की जगह बारह युनिट इंसुलिन दे देना...पर भइया , पिता जी को ऐसे न तरसाओ|’’
‘’अच्छा, तो अब तुम मुझे सिखाओगी|’’
‘’ठीक है, नहीं सिखाती| पिता जी को मिठाई भी नहीं देती| पर मैं आपके पसंद की पैटीज़ भी लाई हूँ| अब आप अपना मुँह खोलो|’’
‘’अरे, ये क्या कर रही स्निग्धा| तुम्हें पता है न तुम्हारे भइया का कोलेस्ट्रॉल बढ़ गया है| पैटीज खिलाकर जान लोगी उनकी,’’ भाभी ने टोका|
अचानक स्निग्धा को लगा कि आज वह सिर्फ गल्तियाँ ही कर रही|
‘’स्निग्धा, पैटीज़ दो मुझे, मैं आज रोज से ज्यादा टहल लूँगा और कुछ ज्यादा कैलोरी बर्न कर लूँगा| और वह रसकदम भी दो मुझे|’’
‘’पिता जी, मुँह खोलिए|एक गप्प और रसकदम मुँह के भीतर|’’
‘’भइया, ये क्या|’’
‘’अरे पागल, दो युनिट अधिक दे दूँगा, सब पच जाएगा|’’
भाभी मुस्कुराती हुई घर के अन्दर जा रही थीं स्निग्धा के लिए खाना लाने...आखिर पूरे दो साल पर ननदरानी भाईदूज में मायके आई थी|
--ऋता शेखर ‘मधु’