ओ री सखी,
अंतस की पीर को
भावों की भीड़ को
ओढ़े हुए धीर को
फुहारों में बहाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|
ओ री सखी
आँखों के नीर को
ख्वाबों के खीर को
रिवाजों की जंजीर को
सागर में समाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|
ओ री सखी
द्रौपदी के चीर को
विष्णु के क्षीर को
ज़ख्म वाले तीर को
इतिहास में दफ़नाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|
ओ री सखी
हारी हुई तक़दीर को
मिटी हुई तहरीर को
किए गए तबदीर को
हँसकर गुनगुनाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|
ओ री सखी
वेदना के शूल को
उनकी हर भूल को
आँखों की धूल को
हवा में उड़ाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|
ऋता शेखर ‘मधु’
बहुत बहुत आभार रविकर सर !!
जवाब देंहटाएंहारी हुई तक़दीर को
जवाब देंहटाएंमिटी हुई तहरीर को
किए गए तबदीर को
हँसकर गुनगुनाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|...वाह: ऋता खुबसूरत भाव और सुन्दर शब्दो के चयन ने रचना को बहुत ही सुन्दर बना दिया...
ज़रूरी है ... बच्चे ना बनें तो मासूमियत नहीं रहेगी , न नए हौसले
जवाब देंहटाएंओ री सखी
जवाब देंहटाएंवेदना के शूल को
उनकी हर भूल को
आँखों की धूल को
हवा में उड़ाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|
गहन और उत्कृष्ट प्रस्तुति ....बहुत अच्छी लगी ...थोड़ी देर को बन ही गया मन बच्चा ...!!
बहुत सही ...
जवाब देंहटाएंअगर हम थोड़े से बच्चे बन जाएं और निश्छल हो जाएँ तो कितना अच्छा हो !
सुंदर रचना !
सादर !!
Pahli baar aayee hun aapke blogpe....ab hamesha aatee rahungi. Bahut sundar likhtee hain aap.
जवाब देंहटाएंApka hardik swagat hai Kshama Ji...
हटाएंRachnaaen pasand karne ke liye shukriya !!
बहुत सुन्दर ऋता जी.....
जवाब देंहटाएंहम थोड़े से नहीं पूरे बच्चे बन कए......ऐसा सुख और कहाँ....
बहुत प्यारी रचना
सस्नेह
अनु
बच्चे मन के सच्चे,,,,आपने सही कहा,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुती, सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
बस ये कर लें तो जीवन में नया उत्साह भर जायेगा , नयी ऊर्जा आ जाएगी..... बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव !
जवाब देंहटाएंओ री सखी
थोडे़ से नहीं पूरे
बच्चे बन जायें
बडे़ होने का लोभ
यहीं छोड़ जायें
बस खिलखिलायें !!
'भूल जाएँ दुनियादारी, भूल के सारे ग़म...
जवाब देंहटाएंआओ चलो! फिर से एक बार...बच्चे बन जाएँ हम..."~
बहुत सही कहा आपने ! काश! ऐसा गर हो जाए...
तो दुनिया की आधी बीमारी यूँ ही हो जाए ख़त्म...!
सादर !!!
शुक्रिया अनीता जी...आपका स्वागत है !!
हटाएंसहमत ... अगर बच्चे बन जाएँ तो आधी बाते तो अपने आप ही खत्म हो जाये ... जीवन आनंदित हो जाए ..
जवाब देंहटाएंओ री सखी
जवाब देंहटाएंवेदना के शूल को
उनकी हर भूल को
आँखों की धूल को
हवा में उड़ाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|
भावमय करता यह प्रयास ... अनुपम प्रस्तुति ।
आपने सही कहा.............थोड़े से बच्चे बन जाएँ|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.....
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