सावन का महीना है और सौवीं रचना लगा रही हूँ...
यह रचना महादेवाधिदेव शिवजी को समर्पित है !!!!!!!!!
नन्दीश्वर दण्डी दिवाकर, दिव्य पालनहार
हो|
सिर पर मुकुट सा शोभता है,चन्द्र-सा साकार हो||
अर्द्धांगिनी गौरी सहित तुम, ध्यान के आधार हो|
विष, कण्ठ में धारण किया है, विश्व के आभार हो|१|
पूरी प्रकृति तुममें समाहित, भस्मप्रिय तुम कान्त हो|
तेजोमयी गोपति बने हो,
वीतरागी शान्त हो||
हे दृढ़ महायोगी तमोहर,
सूर्यतापन धर्म हो|
संहारकारी धूर्जटि हो, श्रेष्ठ पशुपति कर्म हो|२|
पौराण पुष्कल हव्यवाहन, लोककर्ता सौम्य हो|
गुणराशि ओजस्वी जगद्गुरु, शुद्धात्मा भौम्य हो||
वीरेश वृषवाहन सुधापति, सर्वदर्शन नित्य हो|
दुर्जय ललित भावात्मा के, सारशोधन नृत्य हो|३|
कैलास के अधिपति कपाली, हो गणों के ईश तुम|
भागीरथी का मान रखने, गंग को दिए शीश तुम||
तुम्हीं महादेवा पिनाकी, ज्ञान के तुम सार हो|
हर रूप में हर हाल में तुम, सर्वदा स्वीकार हो|४|
ऋता शेखर ‘मधु’
ध्यान धरो बस ध्यान धरो ... ॐ नमः शिवाये
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति .. आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना लगाई है ..... 100 वीं पोस्ट के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर स्तुति.....
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना................
जवाब देंहटाएंसौ वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई.
ढेरों शुभकामनाएं.
सस्नेह
अनु
बहुत सुन्दर रचना है..
जवाब देंहटाएं१०० वी पोस्ट के लिए बहुत-बहुत बधाई..
और ढेर सारी शुभकामनाये
:-) :-) :-) :-) :-) :-)
उत्कृष्ट प्रस्तुति,और १००वी पोस्ट के लिए बहुत२ बधाई,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST,,,इन्तजार,,,
प्रभु को मेरा नमन, आपको प्रणाम बहुत सुन्दर रचना, बधाई
जवाब देंहटाएंसावन में शिव का गुंजन...
जवाब देंहटाएंस्नेहिल भाव...
१०० वीं रचना के लिए बधाई. सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भक्तिमय शिव स्तुति...१००वीं पोस्ट की बधाई !
जवाब देंहटाएंअर्द्धांगिनी गौरी सहित तुम, ध्यान के आधार हो|
जवाब देंहटाएंविष, कण्ठ में धारण किया है, विश्व के आभार हो|
सुन्दर स्तुति ...१०० वीं पोस्ट के लिये बहुत -२ बधाई
हरिगीतिका शिव को समर्पित, भव्य अरु सुंदर लगी।
जवाब देंहटाएंतनमन सुगंधित हो गया है, भक्ति अंतर में जगी॥
हे भाल चन्द्रम शूलपाणी, सर्प कंठम वंदना।
कैलासपति नटराज सम्मुख, शीश नत, है वंदना॥
सादर।
महादेव को समर्पित
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी सौवीं रचना आपकी ..
बधाई व शुभकामनाएँ !
सादर !
तुम्हीं महादेवा पिनाकी, ज्ञान के तुम सार हो।
जवाब देंहटाएंहर रूप में हर हाल में तुम, सर्वदा स्वीकार हो।
शिव जी का सुंदर गुणगान।
सौवीं रचना बनी महान।
बधाई एवं शुभकामनाएं।