सुख और दुख जीवन के दो पहलू हैं...खुशियों में हम नाचते हैं...गाते हैं...पर कभी कभी किसी के व्यवहार से मन आहत होता है तो हमारे अन्दर एक सिसकी फँस जाती है...वह फँसी हुई
सिसकी कुछ कहना चाहती है...
मै हूँ,
हृदय में छुपी
एक छोटी सी सिसकी
वक्र निगाहें देख
बाहर निकलने में ठिठकी
कभी अश्रु बन टपकती
कभी नि:श्वास बन निकलती
कभी निर्विकार
सूनी आँखों से ताकती
कभी चेहरे पर
उदासी बन उभरती
कभी बेबस बन तड़पती
खुद को समझा लेती
हृदय पर ठेस लगती
दर्द महसूस करती
‘आह’ बन कराहती
अन्दर ही अन्दर
उमड़ घुमड़
रक्तचाप बढ़ाती
मैं, छोटी सी सिसकी|
छुपी छुपी उब जाती
मुस्कान की चुनर ओढ़
बाहर निकल टहलती,
महफ़िल में गर मैं होती
हंसी के फ़व्वारों में
चुपचाप बैठी रहती,
दिल में तुफ़ान लिए
कई कई सवाल लिए
मुस्कुराहटों की फुहार लिए,
अपनों की निगाहों से
छुप नहीं पाती
स्नेह- स्पर्श से
सदा पिघल जाती
मैं, छोटी सी सिसकी|
जहाँ ऐसा तलाशती
जहाँ क्रंदन कर पाती
चीख चीख कर
आर्तनाद गुंजाती
आँसुओं के सैलाब में
रुदन की नौका पर
बहकर विलीन हो जाती
बोझिल मासूम हृदय को
हल्का कर पाती,
मैं, नन्हीं सी सिसकी|
ऋता शेखर ‘मधु’
बहुत सुन्दर ऋता जी....
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना.....और खास बात ये कि सिसकी पर कविता कहना!!!
very innovative.
anu
Thanks Anu !!
हटाएंमैं नन्हीं सी सिसकी तलाशती हूँ वह चेहरा
जवाब देंहटाएंजिसके भीतर की नन्हीं सिसकी मेरी हमसफ़र बन सके
पर वक्रता की भीड़ में
वह चेहरा भी कहीं भटका खुद को सहज करता रहता है
........
....क्या बोलूँ !!
हटाएंवाह ... बहुत ही बढिया
जवाब देंहटाएंकल 25/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल ''
शुक्रिया सदा जी !!
हटाएंसिसकी पर शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वन्दना जी !!
हटाएंसिसकी की अंतर्व्यथा को दिखाती हुई सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..
आभार...
हटाएंबहुत बढ़िया अंतर्व्यथा को व्यक्त करती सुंदर प्रस्तुती,,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
शुक्रिया सर !!
हटाएंस्नेह- स्पर्श से
जवाब देंहटाएंसदा पिघल जाती
मैं, छोटी सी सिसकी|
बिलकुल अलग विषय चुना आपने ..अच्छा लगा
बहुत आभार वंदना जी !!
हटाएंमन को भिगो गयी कविता।
जवाब देंहटाएंबधाई।
............
International Bloggers Conference!
Thanks Aarshiya Ji !!
हटाएंसिसकी की कहानी
जवाब देंहटाएंवो भी
सिसकी की जुबानी
जैसे जैसे पढता गया
मन भरता गया
आहत होता गया
किसी ने किया आहत
इस लिये फंसी सिसकी
पर कडवाहट से भरी
यही है दुनियाँ की रिती
भूलें नहीं यह बात तो
निकल जाएगी सिसकी
हकीकत भरी दिल से लिखी गइ बहुत ही उम्दा और मर्मस्पर्शी कविता|
आभारी हूँ !!
हटाएंआह .... कितनी छोटी सी सिसकी .... लेकिन मन के भीतर ही अटकी ... बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता दी !!
हटाएंअति सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !!
हटाएंबेहद संवेदनशील रचना, शुभकामनाएँ.
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