ओ धरती
तुम बरसी
वह तपिश थी ग्रीष्म की
जिसे तुम सहती रही
सूरज दहका
दहकी तुम
नदी ताल पोखर सागर
सब साक्षी थे
कि तुम तपती रही
भाप बन उड़ती रही
अम्बर तेरा मन
विकलता की बूँद-बूँद
जाकर वहाँ थमती रही
उमड़- घुमड़
मचलती रही
बूँद थे अनगिन
भार असह्य होना ही था
आखिर तुम
बरस ही पड़ी
मन आकाश में बदरा
कब तलक टिक पाते
कभी फुहार
कभी मुसलाधार
सबने कहा
यह है
यह है
सावन-भादो की झड़ी
रे मन
उमड़ घुमड़ कर
कुछ न पाएगा
बरस जाने दे
नयनों के रास्ते
सावन...भादो
फिर जो ठंढक मिलेगी
उस राहत
उस सुकून का
कहना ही क्या...!!!
ऋता शेखर ‘मधु’
मन जो बरस जाएगा नैनों के रास्ते तो...मन आँगन में फूल खिलेंगे ही...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ऋता जी...
सस्नेह
अनु
उन फूलों की खुश्बू ...वाह...नया आनंद देगीः)
हटाएंसस्नेह !!
रे मन
जवाब देंहटाएंउमड़ घुमड़ कर
कुछ न पाएगा
बरस जाने दे...सच अब तो बरस ही जाए..बहुत सुन्दर प्रस्तुति .ऋता शुभकामनायं
आभार दी !!
हटाएंमन बरस कर सुकून तो पा ही जायेगा.....
जवाब देंहटाएंसच कहा...शुक्रिया मोनिका जी !!
हटाएंआया सावन लग गई झड़ी
जवाब देंहटाएंथोड़ी - थोड़ी सी ठंडक बढ़ी
मूसलाधार कही बौछारे पड़ी
मौसम है, भीगने की घड़ी,,,,,,,
बहुत सार्थक प्रस्तुति,,,,
RECENT POST...: दोहे,,,,
आभारी हूँ...
हटाएंमन भी ऐसे ही बरस पड़ता है और तपिश ठंडी हो जाती है ... सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी !!
हटाएंतरह तरह की बरसात , कहीं सुखद कहीं दुखद !
जवाब देंहटाएंयही तो जीवन है !
सही कहा सर...आभार !!
हटाएंबरसकर कुछ तो सोंधे ख्याल मिलेंगे मन ... शायद कोई इन्द्रधनुष अपना हो जाए
जवाब देंहटाएंहाँ दी, मन हल्का होगा तभी इन्द्रधनुष दिखेंगे !!
हटाएंबहुत सुन्दर ऋता जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अरुण जी !!
हटाएंआभार शास्त्री सर !!!
जवाब देंहटाएंरे मनउमड़ घुमड़ करकुछ न पाएगाबरस जाने देनयनों के रास्तेसावन...भादोफिर जो ठंढक मिलेगीउस राहतउस सुकून काकहना ही क्या...!!!
जवाब देंहटाएंखुबसूरत रचना ...
शुक्रिया सर !!
हटाएं:) :)
जवाब देंहटाएं:):)
हटाएंवाह ... भावमय शब्द संयोजन ...आभार
जवाब देंहटाएंसदा जी...शुक्रिया !!
हटाएंbahut sundar panktiyan
जवाब देंहटाएंaabhar !!
हटाएंबहुत सुन्दर भावभीनी रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर... :-)
शुक्रिया रीना जी !!
हटाएंwaah bahut badhiya ...
जवाब देंहटाएंदिल को छूती खूबसूरत प्रस्तुति मन हल्का करने को काफी है.
जवाब देंहटाएंरे मन
जवाब देंहटाएंउमड़ घुमड़ कर
कुछ न पाएगा
बरस जाने दे
नयनों के रास्ते
सावन...भादो
फिर जो ठंढक मिलेगी
उस राहत
उस सुकून का
कहना ही क्या...!!!
आपकी सुन्दर प्रस्तुति दिल को छूती है.
आभार.