एथेंस का सत्यार्थी
उसने जब सत्य को देखा
आँखें चौंधिया गई थीं उसकी
यह कहानी
तब सिर्फ
पढ़ने के लिए पढ़ लेती थी
गूढ़ता समझने की शक्ति नहीं थी
आखिर सत्य
इतना चमकीला हो सकता है क्या
कि कोई उसे देख न सके
देखना चाहे तो
न चाहते हुए भी
नजरें मुंद जाएँ|
कुछ अनुभव
कुछ लड़ाई थी
सच झूठ की
तब यह जाना
सत्य का तेज
वास्तव में
सूर्य का तेज है
भले ही बादलों का
झूठ का
आवरण पड़ जाए
सत्य उसके पीछे छुप जाता है
किन्तु जब भी वह झाँकेगा
प्रकाश-पुँज से परिपूर्ण
उसका तेज
आँखें चौंधिया देगा|
सूर्य पर ग्रहण लगता है
ढका है
तब तक तो ठीक है
जब वह
ग्रहण के ग्रास से निकलता है
कोई भी
उस तेज को देखने में समर्थ नहीं
तभी तो
‘एक्स
रे’प्लेट की जरूरत पड़ती है|
सत्य भी उसी शान से
चमकता हुआ
बेधड़क आता है
झूठ ने उसे
कितना भी डराया हो
डर की पराकाष्ठा
सत्य को निडर बना देती है
नजरें तो
झूठ को ही झुकानी पड़ती हैं
स्वाभिमानी सत्य
ऊँची नजर से
मुस्कुराता हुआ
परचम लहराता हुआ
वही शाश्वत गान गा उठता है
‘सत्यमेव
जयते’ !!!
ऋता शेखर ‘मधु’
सत्य का तेज .... बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी !!
हटाएं‘सत्यमेव जयते’ ……………सटीक अवलोकन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वन्दना जी !!
हटाएंनजरें तो
जवाब देंहटाएंझूठ को ही झुकानी पड़ती हैं
स्वाभिमानी सत्य
ऊँची नजर से
मुस्कुराता हुआ
परचम लहराता हुआ
वही शाश्वत गान गा उठता है
‘सत्यमेव जयते’ !!!
बहुत सुन्दर....
मोनिका जी ..आभार !!
हटाएंझूठ ने उसे
जवाब देंहटाएंकितना भी डराया हो
डर की पराकाष्ठा
सत्य को निडर बना देती है
तभी तो सदैव सत्य की जीत होती है।
यथार्थपरक कविता।
आभारी हूँ...
हटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंझूठ ने उसे
कितना भी डराया हो
डर की पराकाष्ठा
सत्य को निडर बना देती है
नजरें तो
झूठ को ही झुकानी पड़ती हैं,
बहुत अच्छी रचना
बधाई ऋता जी...
सस्नेह
अनु
Thanks Dear Anu !!
हटाएंसत्य को कोई सह नहीं पाता ... झूठ की बैसाखियों पर चनेवाले पाँव इतने लाचार होते हैं कि यथार्थ की धरती पर खड़े नहीं हो सकते . जो सच सामने आता है , उसके पीछे कई सच होते हैं - जिनको न कोई सामने लाना चाहता है , न कोई सुनना चाहता है . अपनी डफली अपना राग उत्तम है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दी !!
हटाएंझूठ ने उसे
जवाब देंहटाएंकितना भी डराया हो
डर की पराकाष्ठा
सत्य को निडर बना देती है....सही कहा..तभी तो‘सत्यमेव जयते’ !!!बहुत सुन्दर रचना...
शुक्रिया दी !!
हटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत बहुत आभार शास्त्री सर !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंसत्य को आवरण में
डाल भी तो तब भी
अनावृत हो जाता है
सत्य का तेज
कहाँ सहा जाता है
आभारी हूँ !!
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया विजय जी !!
हटाएंस्वाभिमानी सत्य
जवाब देंहटाएंऊँची नजर से
मुस्कुराता हुआ
परचम लहराता हुआ
वही शाश्वत गान गा उठता है
‘सत्यमेव जयते’ !!!
सुंदर भाव पूर्ण प्रस्तुति,,,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
आभारी हूँ !!
हटाएंझूठ ने उसे
जवाब देंहटाएंकितना भी डराया हो
डर की पराकाष्ठा
सत्य को निडर बना देती है
बेहद सशक्त भाव ... आभार
Thanks Sada Ji !!
जवाब देंहटाएंशिवम मिश्रा जी,
जवाब देंहटाएंब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक आभार...
ब्लॉग पर आपका स्वागत है|
एथेंस का सत्यार्थी
जवाब देंहटाएंउसने जब सत्य को देखा
आँखें चौंधिया गई थीं उसकी
यह कहानी
तब सिर्फ
पढ़ने के लिए पढ़ लेती थी
जरा इस कहानी के बारे में भी बताईयेगा,ऋतु जी
आपकी प्रस्तुति लाजबाब है.
सत्यमेव जयते