सोमवार, 30 जुलाई 2012

आज आप सादर आमंत्रित हैं---मधुर गुंजन का प्रथम जन्मदिवस है !


To मधुर गुंजन



आज मधुर गुंजन एक साल का हो गया| ब्लॉगिंग करते हुए एक वर्ष कैसे बीत गया पता ही नहीं चला... ब्लॉग-जगत बहुत बड़ी दुनिया है जहाँ लोग एक दूसरे के सुख-दुख में सहभागी हैं|मेरा एक वर्ष का अनुभव सुखद रहा|मेरी नजर में बलॉग जगत का अर्थ है---
बलॉगर=वसुधैव
कॉम=कुटुम्बकम्
अर्थात् ब्लॉगर.कॉम = वसुधैव कुटुम्बकम्

मैं यहाँ पर आने वाले सभी ब्लॉगर मित्रों, इस बलॉग के फोलोअर्स एवं पाठकों का आभार व्यक्त करती हूँ | मैं उन सब की आभारी हूँ जिन्होंने अपने ब्लॉग पर मधुर गुंजन का लिंक लगाया है|

शास्त्री सर, रविकर सर, दिलबाग विर्क जी एवं राजेश कुमारी दी मेरी रचनाओं को चर्चा मंच पर सजाते रहे|
रश्मिप्रभा दी एवं रविन्द्र प्रभात जी ने मेरी रचनाओं को वटवृक्ष और ब्लॉग बुलेटिन में स्थान दिया|

यशवंत जी,संगीता दी, विभारानी श्रीवास्तव जी, यशोदा अग्रवाल जी,सदा जी मेरी रचनाओं को नयी-पुरानी हलचल का हिस्सा बनाते रहे|
सभी को शुक्रिया एवं हार्दिक आभार !!

इंटरनेट पर आने के बाद बहुत कुछ सीखा|
हिन्दी-हाइकु ब्लॉग से हाइकु, ताँका, चोका, हाइगा और माहिया लिखना सीखा|
इसके लिए रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' सर की आभारी हूँ|
ठाले बैठे ब्लॉग से छंद लिखना सीखा|
इसके लिए नवीन सी चतुर्वेदी जी की आभारी हूँ|
नेट पर ही पढ़-पढ़ कर ग़ज़ल लिखना सीखा|

मैं उन सबों की शुक्रगुजार हूँ जो टिप्पणियों के माध्यम से और इस ब्लॉग का अनुसरण कर मेरा उत्साह बढ़ाते रहे| कोशिश कर रही हूँ सबके नाम दे सकूँ...

आ०... रश्मिप्रभा दी, ,संगीता स्वरुप दी, माहेश्वरी कनेरी दी , वन्दना गुप्ता जी, रमा द्विवेदी दी,राजेश कुमारी दी, संगीता जी, मोनिका शर्मा जी, आशा जोगलेकर जी, छोटी बहन सी प्यारी अनु जी,प्रियंका जी,रचना श्रीवास्तव जी,हरदीप सन्धु जी,जेन्नी शबनम जी,अनुपमा पाठक जी,अनुपमा त्रिपाठी जी, ,सदा जी, शिखा वार्ष्णेय जी, निशा महाराणा जी, रचना दीक्षित जी, अनामिका जी, मृदुला प्रधान जी, हरकीरत हीर जी, अना जी, रीना मौर्य जी, अमृता तन्मय जी, आशा बिष्ट जी, गायत्री गुप्ता गुंजन जी, क्षितिजा जी, यशोदा अग्रवाल जी, प्रतिभा सक्सेना जी, भावना कुँअर जी, शालिनी कौशिक जी, शिखा कौशिक जी, नूतन गैरोला जी, सुशीला जी, वन्दना जी,सारस जी, सुमन कपूर मीत जी, स्वाति बल्लभराज जी, शरद सिंह जी, नन्दिता जी, तृप्ति इन्द्रनील जी, संध्या तिवारी जी, पंछी जी, नन्ही रुनझुन, मुस्कान जी, श्रेया , उषा जी,अवन्ति सिंह जी,शान्ति गर्ग जी,अलका सारवत जी, कविता रावत जी, उर्मि चक्रवर्ती जी, वामशी कृष्णा जी, अंजु (अनु) चौधरी जी, संध्या तिवारी जी, मंजु मिश्रा जी, मोनिका जैन 'मिष्टी'जी, नन्ही अक्षिता(पाखी),वाणी गीत जी, निवेदिता जी, मिनाक्षी पन्त जी, अरुणा कपूर जी, राधिका बी जी,अर्शिया अली जी...

आ०... रामेश्वर काम्बोज सर, रूपचंद्र शास्त्री मयंक सर,रविकर सर, राजेन्द्र स्वर्णकार सर, दिगम्बर नासवा जी,अरुण कुमार निगम सर,कैलाश शर्मा सर,राकेश कुमार सर, धीरेन्द्र सर,नीरज गोस्वामी सर,नवीन सी चतुर्वेदी जी, दिलबाग विर्क जी, महेन्द्र वर्मा सर,कुँअर कुसुमेश सर,संजय मिश्रा हबीब जी, सतीश सक्सेना सर, संजय भास्कर जी,सुनील कुमार जी, सुरेन्द्र शुक्ला भ्रमर जी, एस एन शुक्ला सर, वीरुभाई सर, प्रेम सरोवर जी, मुकेश कुमार सिन्हाजी,रवि रंजन जी, मधुरेश जी, यशवंत माथुर जी, कुमार राधारमण जी, आशीष जी, उपेन्द्र नाथ जी,अरुण शर्मा जी, स्मार्ट इंडियन जी,सवाई सिंह राजपुरोहित जी, प्रसन्नवदन चतुर्वेदी जी,लोकेन्द्र सिंह राजपूत जी, अभिषेक जी (अभि), पुरुषोत्तम पाण्डेय सर, सुशील कुमार जोशी सर, आर रामकुमार सर,एस एम जी, विक्रम7 सर, बोलेतोबिंदास जी,ओंकार जी, विजय रंजन जी,बबन पाण्डेय जी,उदयवीर सिंह जी, अमरेन्द्र अमर जी, मनीष सिंह निराला जी, नवीन मणि त्रीपाठी जी, जाकिर अली रजनीश जी, विजय कुमार सप्पातीजी, अख्तर किदवई जी, सुभाष जी, सूत्रधार जी,सत्यम शिवम जी, जयंत साहू जी, सुशील कुमार जोशी जी, केशवेन्द्र जी, संजीव जी, राजपूत जी, त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी, प्रकाश जैन जी, रजनीश तिवारी जी, डॉ सत्यवानजी, वनीत नागपालजी, राजीव कुमार जी, अक्षयमन जी, क्रिमसनफ्लेम जी, राजेन्द्र शर्मा विवेक जी, रतन सिंह शेखावत जी, सुमित मदान जी, विवेक जैन जी, विजय कुमार वर्मा जी, शिवम मिश्रा जी,शिवनाथ कुमार,आशीष जी,पंडित ललित मोहन कागडियाल जी...
तहेदिल से आपलोगों का शुक्रिया !!! आप सब को हार्दिक शुभकामनाएँ !!
अब मीठा के बाद कुछ नमकीन हो जाए---

चाट चटपटी
 
दो  चीजें  सबको  हैं  भाती
चटपटी बात और चटपटी चाट
बात चटपटी अच्छी है लगती
पर वार वो तीखा भी  करती
चाट चटपटी जिह्वा को जँचती
तीखी होती  आँखों से बहती|

गोल-गोल  काबुली के दाने
आलू-टिक्की पर सज जाते
उसपर खट्टी-मीठी  इमली
फ़ैल-फै़ल  सबको  ललचाते
दही भी उसपर बहता रहता
चाट मसाला आने को कहता
लाल मिर्च की  बुकनी छींट
हरी मिर्च  भी  गाती  गीत
हल्दीराम के सेव  छिड़क दो
कटे केले की  परत जमा दो
पात धनिया उसपर सजा दो|

इस  चाट  की  कोई  सानी नहीं
खाकर जानो, बात ये बेमानी नहीं|

कई घंटे मुँह में बसी रहती
तीखी चटपटी बातें अक्सर
दिल  में  ज्यों फ़ँसी रहती
एक तीखी लगती जिह्वा को
एक तीखी लगती हृदय को
फिर भी  मन  क्यों भागता
इन चटपटों के ही पीछे-पीछे|
यह रचना पूर्व प्रकाशित है ...उस समय मैं ब्लॉग जगत में बिलकुल नई थी...इस पोस्ट की एक रोचक टिप्पणी देखिए
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

ऋता शेखर 'मधु' जी
सस्नेहाभिवादन !






हाए … क्यों पहुंचा मैं इस पोस्ट पर

गोल-गोल काबुली के दाने
आलू-टिक्की पर सज जाते
उसपर खट्टी-मीठी इमली
फ़ैल-फै़ल सबको ललचाते
दही भी उसपर बहता रहता
चाट मसाला आने को कहता
लाल मिर्च की बुकनी छींट
हरी मिर्च भी गाती गीत
हल्दीराम के सेव छिड़क दो

चटपटी चाट का मुझसे बड़ा शौक़ीन कौन होगा …
होठों पर जीभ फिराते-फिराते जैसे-तैसे पढ़ पाया हूं …
ऊऽऽऽ… यम्मी !
घरवाली से कह दिया है … शाम को चाट नहीं बनी तो भूख हड़ताल … :)
तो अपना तो बंदोबस्त हो गया … हे हेऽऽऽ… !!


चटपटी-मज़ेदार पोस्ट के लिए शुक्रिया !


…और अंत में आपको सपरिवार
बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार

8 सितम्बर 2011 6:22 pm
 


वर्षगाँठ में शामिल होने के लिए हार्दिक आभार,
शुक्रिया,धन्यवाद ,शुभकामनाएँ J)) आगे भी स्नेह-सद्भाव बनाए रखिएगा...
.                          ऋता शेखर मधु

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

पूरी प्रकृति तुममें समाहित, भस्मप्रिय तुम कान्त हो- हरिगीतिका


सावन का महीना है और सौवीं रचना लगा रही हूँ...
यह रचना महादेवाधिदेव शिवजी को समर्पित है !!!!!!!!!




नन्दीश्वर दण्डी दिवाकर,  दिव्य पालनहार हो|
सिर पर मुकुट सा शोभता है,चन्द्र-सा साकार हो||

अर्द्धांगिनी गौरी सहित तुम, ध्यान के आधार हो|
विष, कण्ठ में धारण किया है, विश्व के आभार हो|१|


पूरी प्रकृति तुममें समाहित, भस्मप्रिय तुम कान्त हो|
तेजोमयी  गोपति  बने हो,  वीतरागी   शान्त   हो||

हे दृढ़ महायोगी तमोहर,   सूर्यतापन  धर्म  हो|
संहारकारी  धूर्जटि  हो,  श्रेष्ठ  पशुपति कर्म हो|२|


पौराण पुष्कल हव्यवाहन, लोककर्ता सौम्य हो|
गुणराशि ओजस्वी जगद्गुरु, शुद्धात्मा भौम्य हो||

वीरेश वृषवाहन सुधापति, सर्वदर्शन नित्य हो|
दुर्जय ललित भावात्मा के, सारशोधन नृत्य हो|३|


कैलास के अधिपति कपाली, हो गणों के ईश तुम|
भागीरथी का मान रखने, गंग को दिए शीश तुम||

तुम्हीं महादेवा पिनाकी, ज्ञान के तुम सार हो|
हर रूप में हर हाल में तुम, सर्वदा स्वीकार हो|४|

ऋता शेखर मधु

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

सिसकी की कहानी सिसकी की जुबानी




सुख और दुख जीवन के दो पहलू हैं...खुशियों में हम नाचते हैं...गाते हैं...पर कभी कभी किसी के व्यवहार से मन आहत होता है तो हमारे अन्दर एक सिसकी फँस जाती है...वह फँसी हुई सिसकी कुछ कहना चाहती है...


मै हूँ,
हृदय में छुपी
एक छोटी सी सिसकी
वक्र निगाहें देख
बाहर निकलने में ठिठकी
कभी अश्रु बन टपकती
कभी नि:श्वास बन निकलती
कभी निर्विकार
सूनी आँखों से ताकती
कभी चेहरे पर
उदासी बन उभरती
कभी बेबस बन तड़पती
खुद को समझा लेती
हृदय पर ठेस लगती
दर्द महसूस करती
आह बन कराहती
अन्दर ही अन्दर
उमड़ घुमड़
रक्तचाप बढ़ाती
मैं, छोटी सी सिसकी|

छुपी छुपी उब जाती
मुस्कान की चुनर ओढ़
बाहर निकल टहलती,
महफ़िल में गर मैं होती
हंसी के फ़व्वारों में
चुपचाप बैठी रहती,
दिल में तुफ़ान लिए
कई कई सवाल लिए
मुस्कुराहटों की फुहार लिए,
अपनों की निगाहों से
छुप नहीं पाती
स्नेह- स्पर्श से
सदा पिघल जाती
मैं, छोटी सी सिसकी|

जहाँ ऐसा तलाशती
जहाँ क्रंदन कर पाती
चीख चीख कर
आर्तनाद गुंजाती
आँसुओं के सैलाब में
रुदन की नौका पर
बहकर विलीन हो जाती
बोझिल मासूम हृदय को
हल्का कर पाती,
मैं, नन्हीं सी सिसकी|

ऋता शेखर मधु

रविवार, 22 जुलाई 2012

थोड़े से बच्चे बन जाएँ...




ओ री सखी,
अंतस की पीर को
भावों की भीड़ को
ओढ़े हुए धीर को
फुहारों में बहाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|

ओ री सखी
आँखों के नीर को
ख्वाबों के खीर को
रिवाजों की जंजीर को
सागर में समाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|

ओ री सखी
द्रौपदी के चीर को
विष्णु के क्षीर को
ज़ख्म वाले तीर को
इतिहास में दफ़नाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|

ओ री सखी
हारी हुई तक़दीर को
मिटी हुई तहरीर को
किए गए तबदीर को
हँसकर गुनगुनाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|

ओ री सखी
वेदना के शूल को
उनकी हर भूल को
आँखों की धूल को
हवा में उड़ाएँ, बस
थोड़े से बच्चे बन जाएँ|

ऋता शेखर मधु

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

हाइकु में उतरी वर्षा रानी




१.
मेघ गरजा
टिप टिप बरसा
मन हरषा|
.      
पानी बरसा
सोंधी खुशबू उड़ी
धरती धुली|
३..
वन का मोर
घटाएँ घनघोर
भावविभोर|.
४.
घटा है आती
बिजली चमकाती
शोर मचाती|
५.
सह न सका
वाष्पकणों का बोझ
बरसा मेघ
६.
बहती धारा
सजाई बालकों ने
कागज़ी नाव|
७.
प्रथम बूँद
आम की डाल पर
क्यों भूले पेंगे|

८.
मेघों की कूची
आकाश केनवास
उकेरे चित्र|
९.
ऋतु सावन
शंकर सा पावन
हुलसा मन|
१०.
हरी चूड़ियाँ
खनकी कलाईयाँ
सावन आया|
११.
अम्बर धरा
बंधे एक सूत्र में
बरसात में|
१२.
छतरी तनी
नभ धरा के बीच
नया आकाश|
१३..
बारिश आती
महावर रचाती
गोरी शर्माती|
१४.
भरे पोखर
मेढक टर टर
गूंजा शहर|
१५.
बारिश रुकी
पत्तों ने टपकाए
बूँद के मोती|

१६.
दूर क्षितिज़
सतरंगी चुनर
इन्द्रधनुष|

ऋता शेखर 'मधु'

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

ऋतुराज को आना पड़ा है


ऋतुराज को आना पड़ा है हरिगीतिका छंद





फिर वाटिका चहकी खुशी से,खिल उठे परिजात हैं।
मदहोशियाँ फैलीं फ़िजाँ में, शोखियाँ दिन रात हैं।।
बारात भँवरों की सजी है, तितलियों के साथ में।
ऋतुराज को आना पड़ा है, बात है कुछ बात में ।१।  

मीठी बयारों की छुअन से, पल्लवित हर पात है ।
ना शीत है ना ही तपन है, बौर की शुरुआत है।।
मौसम सुहाना कह रहा है, कोकिलों, चहको जरा।
परिधान फूलों के पहनकर, ऐ धरा! महको ज़रा।२।
हुड़दंग गलियों में मचा है, टोलियों के शोर हैं।
क्या खूब होली का समाँ है, मस्तियाँ हर ओर हैं।।
पकवान थालों में सजे हैं, मालपूए संग हैं।
नव वर्ष का स्वागत करें हम,फागुनी रस रंग है।३।

:- ऋता शेखर 'मधु'

शनिवार, 14 जुलाई 2012

सत्य का तेज



एथेंस का सत्यार्थी
उसने जब सत्य को देखा
आँखें चौंधिया गई थीं उसकी
यह कहानी
तब सिर्फ
पढ़ने के लिए पढ़ लेती थी
गूढ़ता समझने की शक्ति नहीं थी
आखिर सत्य
इतना चमकीला हो सकता है क्या
कि कोई उसे देख न सके
देखना चाहे तो
न चाहते हुए भी
नजरें मुंद जाएँ|

कुछ अनुभव
कुछ लड़ाई थी
सच झूठ की
तब यह जाना
सत्य का तेज
वास्तव में
सूर्य का तेज है
भले ही बादलों का
झूठ का
आवरण पड़ जाए
सत्य उसके पीछे छुप जाता है
किन्तु जब भी वह झाँकेगा
प्रकाश-पुँज से परिपूर्ण
उसका तेज
आँखें चौंधिया देगा|
सूर्य पर ग्रहण लगता है
ढका है
तब तक तो ठीक है
जब वह
ग्रहण के ग्रास से निकलता है
कोई भी
उस तेज को देखने में समर्थ नहीं
तभी तो
एक्स रेप्लेट की जरूरत पड़ती है|

सत्य भी उसी शान से
चमकता हुआ
बेधड़क आता है
झूठ ने उसे
कितना भी डराया हो
डर की पराकाष्ठा
सत्य को निडर बना देती है
नजरें तो
झूठ को ही झुकानी पड़ती हैं
स्वाभिमानी सत्य
ऊँची नजर से
मुस्कुराता हुआ
परचम लहराता हुआ
वही शाश्वत गान गा उठता है
सत्यमेव जयते !!!

ऋता शेखर मधु

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

चाँद का सफ़र


अपनी ही धुन में वह चला जा रहा था
शम्मा बन के बस वह जला जा रहा था

छोटी सी दुनिया सितारों की बसे बस
ख्वाब इतना सा मन में पला जा रहा था

शीतल बन के वह तो बरफ़ सा रहा था
पा कर के तपिश वह गला जा रहा था

चंदा को इतना सा गुमाँ भी नहीं था
सूरज द्वारा वह तो छला जा रहा था

चंदा भला इतना मायूस क्यों है
आसमाँ को यह भी खला जा रहा था

चलते चलते जब वह निढाल हो गया
क्षितिज की आगोश में वह ढला जा रहा था


ऋता शेखर मधु

सोमवार, 9 जुलाई 2012

सावधान...कहीं कुछ चीजें चुपके से प्रवेश तो नहीं कर रहीं...



सावधान...कहीं कुछ चीजें चुपके से प्रवेश तो नहीं कर रहीं...

सहेज रही थी फूल काँटा चुभा चुपके से
आने को थी बहार पतझड़ घुसा चुपके से

खुशियाँ दामन में भर सबको देने चली थी
अँखियों से दो मोती चू पड़े थे चुपके से

जीवन की राह को समतल बनाया जतन से
चलते चलते इक खाई आ गई चुपके से

सरल सहज बातें चाशनी में पगी होती
कब किस बात पे रंजिशें आ गईं चुपके से


सहयोग सम्मान की नींव पर बसता है घर
स्वार्थ की चिड़िया ने खोदा इसे चुपके से


ऐ विषादों, हमने तुम्हें बुलाया नहीं था
किस संकरे रास्ते से घुसी तुम चुपके से

इस भवकूप में दिल बहुत घबड़ाता है प्रभु
है इन्तेज़ार कि मौत आ जाए चुपके से

ऋता शेखर मधु

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

रे मन, बरस जा...




ओ धरती
तुम बरसी
वह तपिश थी ग्रीष्म की
जिसे तुम सहती रही
सूरज दहका
दहकी तुम
नदी ताल पोखर सागर
सब साक्षी थे
कि तुम तपती रही
भाप बन उड़ती रही
अम्बर तेरा मन
विकलता की बूँद-बूँद
जाकर वहाँ थमती रही
उमड़- घुमड़
मचलती रही
बूँद थे अनगिन
भार असह्य होना ही था
आखिर तुम
बरस ही पड़ी
मन आकाश में बदरा
कब तलक टिक पाते
कभी फुहार
कभी मुसलाधार
सबने कहा
यह है
सावन-भादो की झड़ी

रे मन
उमड़ घुमड़ कर
कुछ न पाएगा
बरस जाने दे
नयनों के रास्ते
सावन...भादो
फिर जो ठंढक मिलेगी
उस राहत
उस सुकून का
कहना ही क्या...!!!

ऋता शेखर मधु

बुधवार, 4 जुलाई 2012

नम्बर का चक्कर




नम्बर का चक्कर

जन्म  तो  ले  लिया, पहचान मिली नम्बर से
नाम अभी मिला नहीं, जाने गए शिशु-नम्बर से|
यदि प्रथम सन्तान है तो कहे गए पहली
फिर  दूसरी,  तीसरी, चौथी  या  पाँचवीं|

हम  नाम  नहीं  एक नम्बर हैं
स्कूल  में  रॉल नम्बर हैं
बोर्ड  में  रजिस्ट्रेशन नम्बर  हैं
डाक्टर के पेशेंट नम्बर हैं
हास्पीटल  में  बेड का नम्बर हैं
दूर में  मोबाइल नम्बर हैं
आफिस  में  एम्पलाई नम्बर हैं
गैरेज में  गाड़ी नम्बर हैं
पोस्टऑफिस में मकान नम्बर हैं
बैंक में पासबुक नम्बर हैं
गैस-कनेक्शन में ग्राहक नम्बर हैं
रसोई में राशनकार्ड नम्बर हैं
खरीदारी में क्रेडिट कार्ड नम्बर हैं
बिज़नेस में पैन नम्बर हैं
देश  में  वोटर  नम्बर हैं;
विदेश  में  पासपोर्ट  नम्बर  हैं

नम्बरों  की  भीड़  में  घिरा  है आदमी
खो गया नम्बर अगर,तो खोया है आदमी
                 
                 ऋता शेखर मधु

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

होठों पे हँसी बनी रहे...

मेरी दीदी
                                      प्यारी बहन ऋता को सप्रेम भेंट     

बरसों पहले मुझे मिली थी
प्यारी सी इक छोटी बहन
फूलों सी वह कोमल थी
हर लेती थी सारी थकन|

रवि की ऊर्जा से भरी हुई
शीतल यूँ जैसे हो चाँदनी
मीठे बोल बिखराती हुई
धीर गंभीर जैसे मन्दाकिनी|

कहने को तो बहन है मेरी
है राज़दार जैसे हो सहेली
छोटी है पर अडिग ढाल सी
सुलझाती जाती जीवन की पहेली|

एक रीत बनाई ऋता ने
दिया जन्मदिन पर कविता उपहार
मैं भी शायद कुछ लिख पाऊँ
होगा यह तुम्हारा उपकार|

जिस चमन से तुम गुजरोगी
वहाँ बहार आ जाएगी
जिस राह पे पाँव रखोगी
खुशहाली छा जाएगी|

सितारों की झिलमिल किरणों से
सम्मान सौगात पाओगी
सोंच सागर से मोती चुन-चुन
ज्ञान जल से चमकाओगी|

ईश्वर से कामना यही है
सपने पूरे करें तुम्हारे
खुशहाल ज़िन्दगी पाओ तुम
होठों पे हँसी बनी रहे|
          तुम्हारी दीदी

मेरी दीदी लेखिका नहीं ...मेरे लिए उन्होंने लिखा है...जन्मदिन का अनमोल तोहफा है यह मेरे लिए...
Thank You Didi
Thanks Bhai & Bhabhi
ऋता शेखर 'मधु'