बुधवार, 10 अप्रैल 2013

जिमें केशरी भात अरु, बोलें मीठे बोल


फागुन मास गुजर गया, आसमान है साफ|
धूप सुनहरी है सजी, अन्दर गए लिहाफ़|1|

सुरमई सहज सांध्य से, रातें बनीं उदार|
झिलमिल झिलमिल कर रहे, नव तारों के हार|2|

होली गई फाग गया, चैत बना अनुराग|
नव वर्ष अब आ गया, जाग मुसाफिर जाग|3|

आज खास श्रीखंड अरु, पूरणपोली, नीम|
करें निरोगी पत्तियाँ, ऐसा कहें हकीम|4|

बैठो मिल-जुल दो घड़ी, तुम अपनों के पास|
पल भर दुख-सुख बाँट लो, मन में घुलें मिठास|5|

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, मिले जगत को प्राण|
नवसंवत्सर आज है, हरषित हुए कृषाण|6|

जिमें केशरी भात अरु, बोलें मीठे बोल|
गुड़ी पड़वा कहे हमें, मिलें सदा दिल खोल|7|

गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र में, बिहार में नवरात्र|

नवसंवत्सर शुभ रहें, शुभ हों मंगल-पात्र|8|

ऋता शेखर 'मधु'


10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेहतरीन दोहे ...
    नव वर्ष की शुभकामनाएँ...
    :-)

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  2. इस रुत के सारे रंग समेट लिए आपने नवसंवत्सर शुभ हो

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  3. बहुत सुन्दर दोहे....
    आपको भी नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायेँ !!

    सस्नेह
    अनु

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  4. होली गई फाग गया, चैत बना अनुराग|
    नव वर्ष अब आ गया, जाग मुसाफिर जाग ..

    बहुत सुन्दर दोहे सभी ... प्राकृति के अनुपम रंग लिए ...
    नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...

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  5. बहुत ही सुन्दर दोहे मन को छू गए,आपका आभार.

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  6. बेहतरीन रचना! बहुत-बहुत सुंदर!
    आपको भी हार्दिक शुभकामनाएँ!:)
    ~सादर!!!

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  7. बेहतरीन. कैलाश गौतम की याद दिला दी आपने

    उजली धूप कछार की हम सरसों के फूल
    जब -जब होगा सामना तब-तब होगी भूल

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