फागुन मास गुजर गया, आसमान है साफ|
धूप सुनहरी है सजी, अन्दर गए लिहाफ़|1|
सुरमई सहज सांध्य से, रातें बनीं उदार|
झिलमिल झिलमिल कर रहे, नव तारों के हार|2|
होली गई फाग गया, चैत बना अनुराग|
नव वर्ष अब आ गया, जाग मुसाफिर जाग|3|
आज खास श्रीखंड अरु, पूरणपोली, नीम|
करें निरोगी पत्तियाँ, ऐसा कहें हकीम|4|
बैठो मिल-जुल दो घड़ी, तुम अपनों के पास|
पल भर दुख-सुख बाँट लो, मन में घुलें मिठास|5|
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, मिले जगत को प्राण|
नवसंवत्सर आज है, हरषित हुए कृषाण|6|
जिमें केशरी भात अरु, बोलें मीठे बोल|
गुड़ी पड़वा कहे हमें, मिलें सदा दिल खोल|7|
गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र में, बिहार में नवरात्र|
नवसंवत्सर शुभ रहें, शुभ हों मंगल-पात्र|8|
ऋता शेखर 'मधु'
वाह !!! बहुत प्रभावी उम्दा दोहे !!!
जवाब देंहटाएंrecent post : भूल जाते है लोग,
बहुत आभार यशोदा जी !!
हटाएंबहुत ही बेहतरीन दोहे ...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनाएँ...
:-)
इस रुत के सारे रंग समेट लिए आपने नवसंवत्सर शुभ हो
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे....
जवाब देंहटाएंआपको भी नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायेँ !!
सस्नेह
अनु
होली गई फाग गया, चैत बना अनुराग|
जवाब देंहटाएंनव वर्ष अब आ गया, जाग मुसाफिर जाग ..
बहुत सुन्दर दोहे सभी ... प्राकृति के अनुपम रंग लिए ...
नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
बहुत ही सुन्दर दोहे मन को छू गए,आपका आभार.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना! बहुत-बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंआपको भी हार्दिक शुभकामनाएँ!:)
~सादर!!!
Bahut khub...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन. कैलाश गौतम की याद दिला दी आपने
जवाब देंहटाएंउजली धूप कछार की हम सरसों के फूल
जब -जब होगा सामना तब-तब होगी भूल