लघुकथा-
लंच बॉक्स
दसवीं कक्षा की क्लास लेते हुए अचानक सुधा मैम ने पूछा," बच्चों, यह बताओ कि आज सुबह का नाश्ता किये बगैर कौन कौन आया है।"
एक छात्रा ने हाथ उठाया।
" क्या घर में कुछ बन नहीं पाया था"
"बना था, पर उसे छोटी बहन के लंच बॉक्स में मम्मी ने देकर भेजा।"
"ऐसा क्यों, तुम्हें क्यों न मिला।"
"वह अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ती है न।मम्मी उसे अच्छा लंच देती है और उसके ड्रेस भी कड़क होते है।"
सुधा मैम ने ध्यान दिया कि उसने स्कूल शूज़ न पहन कर चप्पल पहन रखी था।
"सुनो, मम्मी को कहना कि वह तुम्हें भी साफ कपड़े दे और टिफिन भी"
"पर वह हमेशा कहती हैं कि सरकारी स्कूल में सब चलता है।"
सुधा मैम ने स्कूल के समापन सभा के समय कड़ाई से कहा," कल से सभी को पूरे स्कूल ड्रेस में आना है और सभी के साथ लंच बॉक्स और पानी की बोतल होनी चाहिए।"
सभा विसर्जित होने के बाद सुधा मैम की कुलीग ने पूछा, " यह अचानक इतनी कड़ाई क्यों"
" इसी कड़ाई की कमी है, तभी तो सरकारी उपेक्षित है। इसके लिए सरकार क्या करेगी जब मानसिकता ही सरकारी बनी रहेगी।"
सुधा मैम की चाल में बदलाव लाने की दृढ़ता झलक रही थी।
ऋता शेखर मधु
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसब जगह सरकारी को कुछ समझते ही नहीं । सब चलता है । यही मानसिकता है । अच्छी लघु कथा ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसरकारी स्कूल या सरकारी विभाग में केवल मानसिकता बदलने की जरूरत है। बहुत अच्छा ।
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