दोहा गीतिका
रंग बिरंगे पुष्प हैं, बगिया के आधार।
मिलजुल कर मानव रहें, सुन्दर हो संसार।।
तरह तरह की बोलियाँ, तरह तरह के लोग।
मन सबका है एक सा, सुखद यही है सार।।
मंदिर में हैं घण्टियाँ, पड़ता कहीं अजान।
धर्म मज़हब कभी कहाँ, बना यहाँ दीवार।।
दान पुण्य से है धनी, अपना भारत देश।
वीर दे रहे जान भी, जब जब लगी पुकार।।
यहाँ कृष्ण का प्रेम है, यहीं राम का धैर्य।
जगपालक जगदीश हैं, शिव करते संहार।।
चैती से ही चैत्र है , होली से है फाग।
आल्हा ऊदल ने कभी, भरी यहाँ हुंकार।।
अतिथि यहाँ पर देव हैं, पितरन पाते मान।
कोविड औषध बाँटकर, बना वतन दिलदार।।
----ऋता शेखर 'मधु'
वाह
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 15 -03 -2021 ) को राजनीति वह अँधेरा है जिसे जीभर के आलोचा गया,कोसा गया...काश! कोई दीपक भी जलाता! (चर्चा अंक 4006) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
इन गीतिका दोहों में कितना कुछ समेट लिया .. बहुत सुन्दर भारतीय संस्कृति को समेटे सुन्दर दोहे .
जवाब देंहटाएंतरह तरह की बोलियाँ, तरह तरह के लोग।
जवाब देंहटाएंमन सबका है एक सा, सुखद यही है सार।
सुंदर गीतिका...
रंग बिरंगे पुष्प हैं, बगिया के आधार।
जवाब देंहटाएंमिलजुल कर मानव रहें, सुन्दर हो संसार।।..बहुत सुन्दर।
रंग-बिरंगे पुष्प हैं, बगिया के आधार।
जवाब देंहटाएंमिलजुल कर मानव रहें, सुन्दर हो संसार।।
काश! ये दुआ कबूल हो जाती
बहुत ही सुंदर मनभावन सृजन,सादर नमस्कार
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय |
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