शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

सखी री..........

सखी री..........

भ्रमर ने गीत जब गाया
पपीहा प्रीत ले आया
शिखी के भी कदम थिरके
सखी री, फाग अब आया |
बजी जो धुन मनोहर सी
थिरक जाए यमुन जल भी
विकल हो गा रही राधा
सखी री मोहना आया|
कली चटखी गुलाबों की
जगे अरमान ख़्वाबों के
उड़ी खुशबू फ़िजाओं में
सखी ऋतुराज है आया|
गिरे थे शूल राहों में
खिले थे फूल बाहों में
ख़ता उसकी न तेरी थी
सखी बिखराव क्यूँ आया|
झुके से थे नयन उसके
रुके से थे कदम उसके
किया उसने इबादत भी
सखी री काम ना आया|
मिला जो वह बहारों में
लगा अपना हजारों में
जहाँ देखे वहाँ वो था
सखी ढूँढे नजारों में|
....ऋता शेखर 'मधु'

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (29-11-2014) को "अच्छे दिन कैसे होते हैं?" (चर्चा-1812) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. क्या खूब लिखा है आपने ............आपके ब्लॉग पर पहली बार आया .........अच्छा लगा आपसे यहाँ मिलकर ! सधन्यवाद

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  3. हर बार क्या तारीफ करूँ, मन ही मन प्रसन्न होती जाती हूँ

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  4. सुन्दर प्रस्तुति ,समय से पहले वसंत आ गया

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  5. झुके से थे नयन उसके
    रुके से थे कदम उसके
    किया उसने इबादत भी
    सखी री काम ना आया|
    मिला जो वह बहारों में
    लगा अपना हजारों में
    जहाँ देखे वहाँ वो था
    bahut khoob
    badhai
    rachana

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