हरी दूब की ओस पर, बिछा स्वर्ण कालीन
कोमल तलवों ने छुआ, नयन हुए शालीन 30
छँट जाती है कालिमा, जम जाता विश्वास
जब आती है लालिमा, पूरी करने आस
ज्यों ज्यों बढ़ता सूर्य का, धरती से अनुराग
झरता हरसिंगार है, उड़ते पीत पराग
झरता हरसिंगार है, उड़ते पीत पराग
पहन लालिमा भोर की, अरुण हुआ है लाल
चार पहर को नापकर, होता रहा निहाल
चार पहर को नापकर, होता रहा निहाल
सूर्य कभी न चाँद बना, चाँद न बनता सूर्य
निज गुण के सब हैं धनी, बंसी हो या तूर्य
निज गुण के सब हैं धनी, बंसी हो या तूर्य
पर अवलम्बन स्वार्थ की, कभी न थामो डोर
निष्ठा निश्चय अरु लगन, चले गगन की ओर
निष्ठा निश्चय अरु लगन, चले गगन की ओर
सुबह धूप सहला गई, चुप से मेरे बाल
जाने क्यों ऐसा लगा, माँ ने पूछा हाल
जाने क्यों ऐसा लगा, माँ ने पूछा हाल
हवा लुटाती है महक, मगर फूल है मौन
श्रम सूर्य के साथ चला, उससे जीता कौन
श्रम सूर्य के साथ चला, उससे जीता कौन
प्रेमी तारा भोर का, गाता स्वागत गान
उतरीं रथ से रश्मियाँ, लिए मृदुल मुस्कान
उतरीं रथ से रश्मियाँ, लिए मृदुल मुस्कान
शुष्क दरारों से सुनी, मन की करुण पुकार
रवि नीरद की ओट से, देने लगे फुहार
रवि नीरद की ओट से, देने लगे फुहार
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 15 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं