बुधवार, 18 सितंबर 2013

उड़हुल के फूल...


उसे
फूलों से
बहुत प्यार था
पत्ता-पत्ता
बूटा बूटा
उसके स्पर्श से
खिले रहते

नित भोर
वह और
उसकी फुलवारी
कर में खुरपी
सजाती रहती क्यारी
गुनगुनाती रहती
भूल के दुनिया सारी
गेंदा,गुलाब, जूही
चम्पा चमेली
बाग में तो
वही थीं सहेली

और एक था
उड़हुल का पेड़
उसकी डालियाँ
लचक जाती थीं
पाँच पँखुड़ी वाले
सूर्ख़ चमकदार
लाल फूलों से

हर रोज वह पेड़
फूलों से लद जाता
वह गिनती
एक दो तीन....बीस
अब वह हिसाब लगाती
इनमें दस फूल
दुर्गाजी, हनुमान जी
लक्ष्मी जी....के लिए,
बाकी बचे दस फूल
बाग की शोभा बनते
हवा में झूम झूम
सबको लुभाते

किसी दिन मिलते
एक दो...दस
पाँच ईश्वर के नाम
पाँच बाग की शोभा
फिर एक दिन दो फूल
एक प्रभु सिर माथ
दूजा बाग के साथ

समय पर
सबको जाना होता है
वह भी गई
दिन महीने वर्ष बीते
वापस आई
बगिया को निहारा
कुछ नाजुक पौधे
सूख चुके थे
उड़हुल के तने
मोटे हो चुके थे
उसपर फूल नहीं थे
उसने
पौधों पर हाथ फिराया
पानी से सींचा|

दूसरी सुबह
पूर्ववत
वह फूलों से लदा
उसने गिना
एक दो तीन...छब्बीस
आदत के मुताबिक़
उसने फिर हिसाब लगाया
तेरह पूजा में
तेरह पेड़ पर|

पूजा के समय
फूल तोड़ने गई
पर क्या...
पेड़ पुष्पविहीन थे
हैरान हुई
सभी पुष्प
भगवान पर चढ़े थे
वह
असमंजस में खड़ी रही

अचानक
उसकी तन्द्रा टूटी
वह भूल गई थी
इस घर में अब
एक नई पुजारन भी थी
बाग भी
अपने फूलों के बिना
उदास था|

वह
जिसका मन
खुली किताब था
अचानक
बन्द हो गया
वह
बताना चाहती थी
अपने मन की बात
कहने की कोशिश भी की
भीतर के अंकित शब्द
आँखों की नमी में घुलकर
धुँधला चुके थे
मिटते हुए शब्दों ने
फुसफुसा कर कहा
अब यह मंदिर
तुम्हारा नहीं|
....ऋता

घर में फूल के पौधे हैं तो
सब न तोड़ें पूजा के बहाने..
कुछ फूल बाग में भी छोड़ दें...
हवा को सुरभित करने के लिए...
भगवान खुश...बाग भी खुशः)

....................ऋता

22 टिप्‍पणियां:

  1. आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 19/09/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" पर.
    आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

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  2. bahoot sundar...

    Bachpan, gaon ka ghar aur udhal ka ped...aur aise hi kuch baatein yaad dila di aapne...:-)

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  3. पंक्ति दर पंक्ति आप यादों के झरोखे में ले गयीं .... सुन्दर भाव्पय रचना ...
    इस फूल को हम बचपन में गुड़हल का फूल कहते थे ...

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  4. उड़हुल इसे हमारी तरफ गुडहल कहते हैं अब ये इसका ही बिगड़ा नाम है या यही है पता नहीं परन्तु आपकी रचना बहुत सुन्दर लगी |

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  5. बीते कल की याद दिलाती रचना |यह शब्द गुड़हल है |क्या किसी और भाषा में उड़हल कहा जाता है |
    आशा

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    1. आशा जी...बिहार में इसे उड़हुल भी कहते हैं...वही प्रयोग किया है बोलचाल की भाषा में|

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    2. नई जान्ल्कारी के लिए धन्यवाद ऋता जी

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  6. sahmat hoon .....mai bhi yahi sochti hoon balki naye khile pushp ke bajay jo jhadne wale hain uska upyog karen to behtar hai phool to dali par hi sundar lagte hain ...

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    उत्तर
    1. बिल्कुल निशा जी...यह आपने बहुत अच्छी बात कही|

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    2. पटना में मेरी पड़ोसन चाची मैथली ब्राहमण हैं उन्हें मैं करीब 10 साल से देख रही हूँ वे गमले में फूल लगाती हैं भगवान पर चढ़ाने के लिए लेकिन जो ताज़ा फूल होता है उसे नहीं तोड़ती है जो झरने के कगार पर होता है उसे ही तोड़ कर चढ़ाती है और कोशिश करती हैं गेंदे के फूल का उपयोग करे क्यूँ कि वे एक फूल को बिखेर लेती हैं और उसे भगवान पर चढ़ाती हैं .... उनसे ही सुनी कि गेंदे के फूल में जीतने पंखुरी होते हैं वे अपने आप में एक पूरा फूल होता है
      ससुराल गेंदा फूल

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  7. देवी पुष्प , जवा कुसुम , उड़हुल कहो ,
    अड़हुल कहो गुड़हल कहो क्या फर्क पड़ता है
    विष्णु + माँ के 108 नामो की तरह
    इस रचना से जो संदेश मिल रहा है उससे सहमत हूँ
    हार्दिक शुभकामनायें

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  8. बहुत सुन्दर दी......
    कितना प्यारा सन्देश दे डाला आपने इस अनोखी कविता के माध्यम से....

    सादर
    अनु

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  9. वाकई बेहतर सन्देश ..
    शुभकामनायें !

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