यूँ फ़लक को चूमने की
और हवा में घूमने की
आरजू है नव उमंग की
कोशिशें हैं नव तरंग की
आगाज तुम नव उदय का
साज तुम मधुर हृदय का
ले चलो ये कश्तियाँ तुम
बनोगे इक दिन हस्तियाँ तुम
राष्ट्रगिरी को तुम उठा लो
बन कान्हा सबको बचा लो
नव सुरों में राग भर दो
शिक्षित बन नवगीत रच दो
तुम धरा के नव श्रृंगार हो
खिले बसंत के पुष्पहार हो
बाल मन है सदा ही निश्छल
चहक रहा है खग सा हर पल
भारत का नव निर्माण करो
जीने का पथ आसान करो
नव अंकुरों को मिले जो पोषण
भारत वतन बन जाएगा रौशन|
................ऋता
देश का निर्माण हो ... तो सब का कल्याण स्वत ही हो जाएगा ...
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण प्रस्तुति ...
सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बुधवार (11-09-2013) को हम बेटी के बाप, हमेशा रहते चिंतित- : चर्चा मंच 1365- में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
आप सबको गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर रचना ..
जवाब देंहटाएंआशाएं पूर्ण हों !!
राष्ट्र उत्थान के भावों से सजी धड़ी सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर और प्रेरणादायक पोस्ट |
जवाब देंहटाएंप्रभावी कविता...सच कहा ...नव अंकुरों को मिले जो पोषण---तन, मन का तो देश निर्माण स्वयं हो होजायगा...
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंHow to change blogger template
नव अंकुरों को मिले जो पोषण
जवाब देंहटाएंभारत वतन बन जाएगा रौशन|
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रेरक अभिव्यक्ति,,
RECENT POST : समझ में आया बापू .
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