एक प्रेम के कई रूप हैं
कहीं छांव यह कहीं धूप है
कहीं ये भक्ति कहीं है शक्ति
कहीं विरक्ति तो कहीं आसक्ति|
चमक रही थी चपल दामिनी
अनवरत बारिशों की झड़ी थी
पुत्र-प्रेम में वासुदेव ने
यमुना में ज्यों पांव धरे थे
यमुना क्यों उपलाई थी
पग कान्हा के छूकर उसने
अपनी प्यास बुझाई थी|
वात्सल्य-प्रेम में कान्हा के
यशोदा भी हरषाई थी|
कौन सा था प्रीत कान्हा
कौन सा वह राग था
शायद मधुर सी रागिनी से
बह रहा अनुराग था
बेबस बनी थी राधा प्यारी
लोक-लाज भूली थी सारी|
भक्ति में डूबी थी मीरा
महलों की वह रानी थी
मन के ही एहसास थे उनके
बन गई कृष्ण-दीवानी थीं|
निष्ठुर बने थे मोहन प्यारे
वृंदावन को छोड़ चले
विकल गोपियाँ सुध-बुध खोईं
किस प्रेम में वे थीं रोई|
पितृ-प्रेम में रामचन्द्र ने
वनवास भी स्वीकार किया
परिणीता सीता का पति-प्रेम था
दुर्गम वन अंगीकार किया
भ्रातृ-प्रेम से लक्ष्मण न चूके
उर्मि को विरह का भार दिया|
देख पति की आसक्ति
हाड़ा-रानी विचलित हुई
देश-प्रेम की खातिर उसने
अपने सिर का उपहार दिया
मनु ने झाँसी के प्रेम में
वीरांगना-भेष धार लिया|
पेड़ों से चिपक बहुगुणा ने
वृक्ष-प्रेम का दिया परिचय
जीवों से प्रेम करने का
मनेका का था निश्चय|
संयुक्ता को ले गए स्वयंवर से
प्रेम में कई समर हुए
मन-मंदिर में बसा इक दूजे को
लैला-मजनू अमर हुए|
अमृता की कविता इमरोज
इमरोज के चित्र में अमृता
इस प्रेम का क्या नाम होगा?
नाम से परे
यह एक एहसास है
दूर रहकर भी लगे
वह हमारे पास है
रूह से महसूस करो
चल रही जब तक सांस है
प्रेम की पराकाष्ठा
बन जाता उच्छवास है
प्रभु को प्रेम है कण-कण से
हर जन से हर मन से
प्रेम की बातें मधुरतम
सिर्फ वो ही जानते
जो प्रेम से बढ़कर जगत में
और कुछ ना मानते|
ऋता शेखर ‘मधु’
[चित्र गूगल से साभार]
रश्मि दी ने इसे नीचे की लिंक पर लगाया है--
http://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/2.html
प्रेम जब पराकाष्ठा की हद पार कर लेता है,,,तो प्रेम अमर हो जाता है,,,
जवाब देंहटाएंRECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
और जो आप लिख गयीं इतना सुन्दर...ये काव्य से..शब्दों से...भावों से....ख़्वाबों ख्यालों से...लेखनी/लेखन से प्रेम ही है न...
जवाब देंहटाएं:-)
बना रहे प्रेम इस दुनिया में....
सस्नेह
अनु
सही कहा अनु, यह भी प्रेम ही है लेखनी से जो हम सब को बाँधे है|
हटाएंबहुत प्यारी बातें हैं आपकीः)
सस्नेह
प्रभु को प्रेम है कण-कण से
जवाब देंहटाएंहर जन से हर मन से
प्रेम की बातें मधुरतम
सिर्फ वो ही जानते
जो प्रेम से बढ़कर जगत में
और कुछ ना मानते|
.....सही कहा ..बहुत सुन्दर प्रेमप्रधान रचना..ऋता
प्रेम बहुत प्यारा, मीठा अहसास है..
जवाब देंहटाएंऔर उतनी ही प्यारी आपकी यह रचना...
मनभावन....
सुन्दर...
:-)
प्रेम के मनोहारी भावों की सरल और सार्थक अभिव्यक्ति को सलाम | मेरी नई पोस्ट तन्हाईयाँ पर स्वागत है |
जवाब देंहटाएंप्रेम की ...प्रेम भरी कविता
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रांकन प्रेम के विविध रूपों का.. और अंतिम पंक्तियों में तो जीवन का सच्चा सार लिखा हुआ है.. बहुत सुन्दर कविता ..
जवाब देंहटाएंसादर
मधुरेश
प्रेम-अनाम,अकथ,अविचल,अहर्निश....नाम से परे
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
प्रेम की अद्भुत अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंपोस्ट दिल को छू गयी.कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
प्रभु को प्रेम है कण-कण से
जवाब देंहटाएंहर जन से हर मन से
प्रेम की बातें मधुरतम
सिर्फ वो ही जानते
जो प्रेम से बढ़कर जगत में
और कुछ ना मानते|
भावमय करते शब्दों का संगम
आभार
जवाब देंहटाएंप्यार को प्यार ही रहने दो,कोई नाम न दो....
जवाब देंहटाएंAh.. flavours of love, thats what I call beauty. Nicely written n explained. Good work
जवाब देंहटाएंPlease keep writing..
regards
Sniel
Thanks Sneil Ji!
हटाएंउत्कृष्ट कृति
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
1. अपने ब्लॉग पर फोटो स्लाइडर लगायें
कौन सा था प्रीत कान्हा
जवाब देंहटाएंकौन सा वह राग था
शायद मधुर सी रागिनी से
बह रहा अनुराग था
madhur bhav
rachana
बहुत सुन्दर .....प्रेम के विविध रूप वाह
जवाब देंहटाएंप्रेम की सुंदर व्याख्या.
जवाब देंहटाएंप्रेम के विभिन्न रूपों की बहुत ही सुंदर व्याख्या
जवाब देंहटाएंprabhu tu hi sab kuchh hai:)
जवाब देंहटाएंprem ka itna sundar arth diya hai aapne. maine apni haal ki post me kuch swal kiye hai, jisem radha or meera ki preet ke bare me bhi hai. jarur padiyega.
जवाब देंहटाएंmy post KYUN???
http://udaari.blogspot.in