प्रथम स्वेटर
बात उन दिनों की है जब मैं विद्यालय में पढ़ती थी|हमलोग सरकारी क्वार्टर में
रहते थे|
हमारा घर मेन रोड के किनारे था|मेरे घर से कुछ दूरी पर सैनिक छावनी थी|
प्रतिदिन सवेरे-सवेरे वहाँ से राइफ़ल की गोलियाँ चलने की आवाज़ें आती थीं| उसके
बाद सारे सैनिक ऊँचे-ऊँचे घोड़ों पर सवार होकर एक कतार में मेन रोड से निकलते
थे| घोड़ों की टप-टप की आवाज और घोड़े... उन्हें देखने का लोभ मैं संवरण नहीं कर पाती थी और तबतक देखती रहती थी जबतक
अन्तिम सैनिक न चले जाएँ|
उन्हीं दिनों उन्नीस सौ इकहत्तर में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया
था| सैनिक छावनी से भी सैनिकों को मोर्चे पर जाना था| एक दिन हमलोग विद्यालय में ही
थे तभी प्रचार्या महोदया की ओर से संदेश आया कि सभी छात्राओं को मोर्चे पर जाने
वाले सैनिकों को विदाई देनी है| हम सब, शिक्षक एवं शिक्षिकाओं सहित स्कूल की छत पर
चले गए| उधर से सैनिकों से भरी छह या सात खुली बसें गुजरीं|हमने हाथ हिला हिला कर
उनका अभिवादन किया| बस में से सैनिकों ने भी उत्साहपूर्वक शोर मचाते हुए अभिवादन
स्वीकार किया|हम सभी की आँखें नम थीं क्योंकि इनमें से कितने लौट कर आने वाले थे,
यह किसी को पता नहीं था|
एक सप्ताह के बाद यह ख़बर आई कि सैनिकों के लिए मोर्चे पर भेजने के लिए
स्वेटर,अचार या उपयोग की अन्य वस्तुएँ स्कूल में जमा करनी थीं| मैं ने घर आकर अपनी दादी
से अचार बनाने को कहा| स्वेटर मैं ख़ुद बुनना चाहती थी किन्तु उस समय मुझे स्वेटर
बुनना नहीं आता था|फिर भी ज़िद करके मैंने ऊन मँगवाया और दिन रात एक करके स्वेटर
बुनने लगी| देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत मैंने स्वेटर तैयार कर ही लिया| यह बात
मुझमें बहुत रोमांच पैदा कर रही थी कि मैं उनके लिए कुछ कर रही हूँ जो हमारे लिए
कड़ाके की ठंढ में मोर्चे पर डटे हैं| आज भी मैं बुनती हूँ तो उस प्रथम स्वेटर को
अवश्य याद करती हूँ|
ऋता शेखर ‘मधु’
ठंढ के मौसम में वह स्वेटर याद आ गया इसलिए...:)
भाव मयी प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंकितनी प्यारी बच्ची थीं आप ऋता जी......
जवाब देंहटाएंयाने बचपन से प्यारी थीं :-)
सुन्दर सी याद सांझा करने का शुक्रिया.
सस्नेह
अनु
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (11-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
शुक्रिया वंदना जी !!
हटाएंदेशभक्ति की भावना से ओतप्रोत मैंने स्वेटर तैयार कर ही लिया| यह बात मुझमें बहुत रोमांच पैदा कर रही थी कि मैं उनके लिए कुछ कर रही हूँ जो हमारे लिए कड़ाके की ठंढ में मोर्चे पर डटे हैं| आज भी मैं बुनती हूँ तो उस प्रथम स्वेटर को अवश्य याद करती हूँ|
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया ... स्वाभाविक है ... ऐसा होना
आभार इस संस्मरण को साझा करने के लिये
आदरणीया ऋता शेखर 'मधु' जी हेमंत ऋतु ने दस्तक दी है, आपने जो देश के प्रति अपना निःस्वार्थ प्रेम भावना प्रकट की है आपको प्रणाम
जवाब देंहटाएंअरुन शर्मा
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aap ne smrition ke dwar khol kr kayee sal piche ki taraf jhakne pr mazboor kara hi diya,sundar rachana
जवाब देंहटाएंमन को छूते अहसास...
जवाब देंहटाएंदेशभक्ति के प्रति निःस्वार्थ प्रेम भावना से बुना उपहार पहला स्वेटर,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा,लाजबाब प्रस्तुति....
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उम्दा अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजबाब भाव मयी प्रस्तुति....बहुत सुन्दर ऋता..
जवाब देंहटाएंek prerak yaad..
जवाब देंहटाएंअनुभव साझा करने के लिए आभार .........कुछ यादें दिल को छू जाती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी लगी आपकी ये बात..
जवाब देंहटाएं:-)
प्राइमरी स्कूल में छुट्टी सुबह हो जाती थी, ठंड के दिनों में मम्मी पड़ोस की महिलाओं के साथ मिलकर स्वेटर बुनती थीं और हम लोग झूला झूलते थे। उन प्यारे दिनों की स्मृतियाँ आपने ताजा कर दीं।
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