समेट लेती
टिक टिक ये
घड़ी
कई लम्हों
को
कुछ खुशी के
पल
कुछ
दर्दे-दास्ताँ
यही काल-चक्र
है|
संजो के रखा
किस्से
रामायण के
पति की
प्यारी
पतिव्रता
नारी ही
अग्नि-परीक्षा
देती
यही काल-चक्र
है|
महाभारत
लगा दिया
दाँव पे
नारी-वस्तु
को
पाँच पतियों
वाली
नहीं थी सुरक्षित
यही काल-चक्र
है|
अजातशत्रु
निन्यान्वे
भाइयों को
मौत दे दिया
बौद्ध-धर्म के
पीछे
अहिंसा
अपनाया
यही काल-चक्र
है|
गाँधी हैं गौण
अहिंसा के
देश में
हिंसा है हावी
आतंक के
शिकार
बिलख रहे घर
यही काल-चक्र
है|
धन-अर्जन
धर्म-गुरु
ने किया
सिखाया धर्म
खुद किए
अधर्म
कहीं नहीं विश्वास
यही
काल-चक्र है|
कहते रहे
बेटियाँ
होतीं लक्ष्मी
दुर्गा
सावित्री
पूजते हैं
उनको
पर आने न
देते
यही काल-चक्र
है|
ऋता शेखर ‘मधु’
सच है ऋता ये कालचक्र कब किस पर भारी पड़ जाय पता नहीं....बहुत सटीक रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ऋता जी.......
जवाब देंहटाएंगहन भाव समेटे है आपकी रचना........
बहुत बढ़िया.
सस्नेह.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-062012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आभार... शास्त्री सर !!
हटाएंबहुत सुन्दर व सटीक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकैसा है ये काल चक्र
जवाब देंहटाएंजिसकी धुरी पर ऐसे हादसे होते हैं ... किस सीख के लिए ?
कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है...फिर सीख का स्कोप कहाँ है..पता नहीं !
हटाएंवाह ... बहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया .....
जवाब देंहटाएंसुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सटीक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट .....मैं लिखता हूँ पर आपका स्वगत है
स्त्रीविमर्श पर सार्थक रचनाएं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गहन भाव समेटे रचना......
जवाब देंहटाएं:-)