चाँद कलश
संजो के रखता
ढेर सारे सिक्के
रुपहले
चाँदी के सिक्के
छोटे सिक्के
बड़े सिक्के
छोटे सिक्के
बड़े सिक्के
सूरज के भय से
दिन में
नहीं दिखाता
किसी को भी
वे सिक्के !
ज्यूँ रात होती
उलट देता है
अपना रुपहला कलश
बिखर जाते हैं
सारे ही सिक्के
आसमाँ के फ़र्श पर
अगणित
चमचम करते
सारे सिक्के
सबको लुभाते !
गिनते हुए
गिनते हुए
कभी कोई सिक्का
छिटक जाता
गिरने लगता
जमीं पर
हम यहाँ भी
बाज नहीं आते
झट उस सिक्के को
टूटा सितारा कह
एक ‘विश’ खरीद लेते|
ऋता शेखर ‘मधु’
चांद तारों से सजे ...सुंदर भाव ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
अनुपमा जी...आभार !!
हटाएंक्या बात है ऋता जी.
जवाब देंहटाएंआसमान में भी सिक्के ही सिक्के
चमकते हुए,लुभाते हुए
काश! कोई भी इन सिक्कों को अपनी
मुठ्ठी में भर पाता,या चादर फैला कर
इकठ्ठा कर पाता.
वे सिर्फ़ लुभाने के लिए होते हैं:)
हटाएंसोचती हूँ कुछ इस तरह .... चाँद सूरज की अनुपस्थिति में अपनी चाँदनी के नग जड़े गहने निकाल लाता है .... सौभाग्यशालिनी के टूटे नग इच्छाओं को पूर्ण करते हैं
जवाब देंहटाएंअरे वाह दी...आप की कल्पना तो बेजोड़ है, चाँदनी के गहनेः)))
हटाएंमनभावन सुंदर प्रस्तुति,,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
धीरेन्द्र सर...आभार !!
हटाएंबहुत प्यारी सी रचना है ऋता जी...
जवाब देंहटाएंकाश एक सिक्का मेरी गुल्लक में भी होता.....
:-)
सस्नेह.
अरे हाँ! आज वटवृक्ष में आपका लिखा एक खूबसूरत छंद पढ आई हूँ......
बधाई.
स्वीट अनु...खोजिए गुल्लक में...जरूर मिल जाएँगेः)))
हटाएंछंद पसन्द करने के लिए शुक्रिया !!
ये रुपहले चमकते सिक्के रात्रि के अँधेरे में हमारा मार्ग दर्शन करते है....अनुपम प्रस्तुति...... बधाई ऋता !
जवाब देंहटाएंठीक कहा दी,...ये हमें उदास नहीं होने देते|
हटाएंवाह ... अनुपम भाव संयोजित कर दिये चाँद कलश से आपने ... बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सदा जी...
हटाएंअंजु जी,
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है...आभार !!
मन भा गयी.. सुन्दर.. :)
जवाब देंहटाएंसादर
Thanks Madhuresh.
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ...!
जवाब देंहटाएं...आभार !!
हटाएंbahut sundar rachna .............aabhar
जवाब देंहटाएंडॉ संध्या तिवारी जी,
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है| रचना पसंद करने के लिए आभार !!
बहुत सुन्दर मन भाती रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर
:-)