मेरी माँ...
अभी तो उसके ही तन का हिस्सा हूँ मैं
ख्वाबों में मुझसे मिल रही है मेरी माँ
पा न जाऊँ कहीं अमावस का अंधकार
जतन से रुपहली चादर सिल रही है मेरी माँ
जहाँ भी लूँ श्वास, सुवास ही मिले सदा
पिटारे में गुलाबौं को गिन रही है मेरी माँ
शीतल समीर संग हिंडोले पर झुला सके
मधुर सरस लोरियाँ गुन रही है मेरी माँ
पाँव तले रहे हरदम मखमली गलीचा
नर्म दूब पर शबनम चुन रही है मेरी माँ
फैली रहे उजास सूरज की हमारे पास
उषा के लाल धागे बुन रही है मेरी माँ
मन मंदिर में पावनता बनी रहे सदा
कपोतो से शांति मंत्र सुन रही है मेरी माँ
न मैंने कुछ कहा, न उसने कुछ कहा
बस हमारी धड़कनें सुन रही है मेरी माँ
मेरे आने की घड़ियाँ गिन रही है मेरी माँ!!!!
..................ऋता शेखर 'मधु'
बहुत सुंदर रचना, बहुत सुंदर । वैसे बात जब भी मां की होती है तो मुझे मुनव्वर राना की दो लाइनें याद आ जाती हैं..
जवाब देंहटाएंऐ अंधेरे देख ले, मुंह तेरा काला हो गया
मां ने आंखे खोल दी, घर में उजाला हो गया।
्बहुत सुन्दर अहसास...
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (03-07-2013) के .. जीवन के भिन्न भिन्न रूप ..... तुझ पर ही वारेंगे हम .!! चर्चा मंच अंक-1295 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
मन को छूती हुई सुंदर अनुभूति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
सादर
जीवन बचा हुआ है अभी---------
बहुत खूबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना, शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.....और सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत सुन्दर शब्द चयन और उतनी ही सुन्दरता से पिरोया है आपने उन्हें माँ के प्रति अपने भावो में ..मुझे आपकी रचना बहुत पसंद आई ..कभी मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा मार्गदर्शन करें ..पसंद आने पर ब्लॉग ज्वाइन करें ...
जवाब देंहटाएंमन के अनकहे भावो को इस रचना में बहा दिया ..आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में मेरी नयी रचना Os ki boond: मन की बात ...
माँ प्रथम एहसास है जीवन का। बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
मधुरेश
बहुत अच्छा लगा। आप की इस रचना से प्रेरित हो कर मैने भी कुछ लिखा है।
जवाब देंहटाएंशून्यांश
स्वर्ग से उस गर्भ में,
प्रेम के संदर्भ में,
ले रहा श्वास जो,
पिरोये है आस जो,
तेरा ही तो माँ अंश है,
आज दीपक, कल वंश है,
तेरी आत्मा, तेरा अंग,
तेरे अश्रुओं का रँग,
माँ तेरा वह संसार है,
जीवन है, उद्धार है,
शून्यता का संहार है,
शून्यता का ही प्रकार है।
थैंक्स गीतिका..ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है
जवाब देंहटाएंशून्य में ही संसार है
शून्य ही जीवन का सार है
शून्य ही ब्रह्मांड है
प्यारा सा बाल-कांड है
माँ में समाया सुखद अहसास
जिसके भीतर पल रही है सांस...
धन्यवाद। आज शून्यता के बारे में मैने फिर बहुत सोचा। विचारों ने कुछ इस तरह कविता का रूप लिया हैः
जवाब देंहटाएंशून्यांध
सत्य-असत्य के भंवर में,
‘शून्य’ का भी स्वर है।
रिक्तता की ऊँचाई पर,
शून्यता कैसा स्तर है?
समय समय पर समय भी,
स्वयं का समर्पण करता है।
अक्सर भ्रम में कौंध कर,
शून्य-दर्शन करता है।
पर कोरे पन्नों में ही,
कल्पना खोजती चित्र है।
शून्यता संभव नहीं,
विचारों से चरित्र है।
हर क्षण गुणा होना,
हर कण की प्रकृति है।
शून्यता छल है,
बढना ही प्रवृति है।
जिस अंत से परिचय,
हम सभी का होता है,
वह शून्य का प्रयाय नहीं,
अंकों से समझौता है।
पनपता है लघु श्वासों में,
मृत्यु का भी जीवन।
देह से बिछोह है,
आत्मा से मिलन।
अतीत से आज का,
मिलना संभव नहीं।
शून्य बस क्षितिज है,
शून्य सत्य नहीं।
*पर्याय
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीतिका...आपकी रचना आपकी उत्कृष्ट सोच को दर्शा रही है...
जवाब देंहटाएंअतीत से आज का,
मिलना संभव नहीं।
शून्य बस क्षितिज है,
शून्य सत्य नहीं।...बहुत खूब...आप बहुत आगे तक जाएँगी!!
शुक्रिया। आपकी कविता पढ कर ही यह लिखने की प्रेरणा मिली। इसी तरह हमें प्रेरित करते रहिये।
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