बारिश का मौसम सुहाना है
पावस ने छेड़ा तराना है
काँधे सजते झूलते काँवर
भजनों में शिव-गुण को गाना है
सुंदर पत्ते बेल के लाओ
शिवशंकर जी पर चढ़ाना है
सावन में चुनरी हरी लहरी
हाथों में लाली रचाना है
बच्चे पन्ने फाड़ते झटपट
धारा में किश्ती चलाना है
चूड़ी धानी सी खरीदे वे
परिणीता को जो लुभाना है
पानी है तालों तडागों में
मेढक को हलचल मचाना है
मंथर मंथर चल रही गंगा
तट पे शायद कारखाना है
पनपीं बेलें जात मज़हब की
सद्भावों के बीज पाना है
..........ऋता
बहुत खूबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंसुहाने मौसम की मनभावन रचना....
जवाब देंहटाएंसस्नेह
अनु
बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंमनभावन रचना !
जवाब देंहटाएंlatest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !
वारिश का मौसम परेशानियों का सबब तो बनता है परन्तु मन में जो उमंग जगाता है वह भी अदभुत होती है.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.
बहुत खूब .. बारिश आती है न सिर्फ मौसम ले कर बल्कि प्रेम की उमंग भी लाती है ....
जवाब देंहटाएंbarish ki bunde apne sang kitni tarange lati hai....bundon ki tarah sukhad abhiwyakti..
जवाब देंहटाएंbarish ki bunde apne sath kitni tarange lati hai....khubsurat abhiwyakti..
जवाब देंहटाएंसुन्दर आह्वान!
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