गुरुवार, 13 जून 2013

ऐ समंदर...


पूनो की रात आती जब
समंदर क्युँ मचल जाता है
राज़े-दिल बयाँ करने को
वह भी तो उछल जाता है
खामोश चाँद ने कुछ कहा
फिर से वह बहल जाता है
कभी बहाने से सैर के
लहरों पे निकल जाता है
सुनने प्रेमी दिल की व्यथा
कूलों पर टहल आता है
करुण कहानी मुहब्बत की
सुनकर वह पिघल जाता है
समेट अश्कों की धार को
खारापन निगल जाता है

ऐ समंदर, तेरी गहराइयाँ
बेचैन बहुत करती हमें
मन मनुज का भी तो
तुझसे कम गहरा नहीं
लहरें बहुत उठतीं वहाँ भी
शांत धीर तुझसा ही वह
तेरी तरह ही तो वहाँ भी
बाँध का पहरा नहीं

पर सुनामियाँ भी कब भला
किसके रोके से रुकी हैं ???
..........ऋता..

11 टिप्‍पणियां:

  1. ऐ समंदर, तेरी गहराइयाँ
    बेचैन बहुत करती हमें
    मन मनुज का भी तो
    तुझसे कम गहरा नहीं


    बिलकुल सही कहा है.

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  2. मन मनुज का भी तो
    तुझसे कम गहरा नहीं
    लहरें बहुत उठतीं वहाँ भी
    शांत धीर तुझसा ही वह
    तेरी तरह ही तो वहाँ भी
    बाँध का पहरा नहीं

    गहन बात ... सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।...

    मन मनुज का भी तो
    तुझसे कम गहरा नहीं
    लहरें बहुत उठतीं वहाँ भी
    शांत धीर तुझसा ही वह
    तेरी तरह ही तो वहाँ भी
    बाँध का पहरा नहीं...

    जय श्री राधे
    भ्रमर 5

    जवाब देंहटाएं
  4. क्या कहने, बहुत सुंदर रचना
    बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  5. पर सुनामियाँ भी कब भला
    किसके रोके से रुकी हैं ???
    ....बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर ....गहन रचना ऋता जी ...!!

    जवाब देंहटाएं
  7. ना....नहीं रुकती सुनामियाँ....न रुकता है भावनाओं का ज्वार....

    बहुत सुन्दर दी...

    सस्नेह
    अनु

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