पूनो की रात आती जब
समंदर क्युँ मचल जाता है
राज़े-दिल बयाँ करने को
वह भी तो उछल जाता है
खामोश चाँद ने कुछ कहा
फिर से वह बहल जाता है
कभी बहाने से सैर के
लहरों पे निकल जाता है
सुनने प्रेमी दिल की व्यथा
कूलों पर टहल आता है
करुण कहानी मुहब्बत की
सुनकर वह पिघल जाता है
समेट अश्कों की धार को
खारापन निगल जाता है
ऐ समंदर, तेरी गहराइयाँ
बेचैन बहुत करती हमें
मन मनुज का भी तो
तुझसे कम गहरा नहीं
लहरें बहुत उठतीं वहाँ भी
शांत धीर तुझसा ही वह
तेरी तरह ही तो वहाँ भी
बाँध का पहरा नहीं
पर सुनामियाँ भी कब भला
किसके रोके से रुकी हैं ???
..........ऋता..
ऐ समंदर, तेरी गहराइयाँ
जवाब देंहटाएंबेचैन बहुत करती हमें
मन मनुज का भी तो
तुझसे कम गहरा नहीं
बिलकुल सही कहा है.
मन मनुज का भी तो
जवाब देंहटाएंतुझसे कम गहरा नहीं
लहरें बहुत उठतीं वहाँ भी
शांत धीर तुझसा ही वह
तेरी तरह ही तो वहाँ भी
बाँध का पहरा नहीं
गहन बात ... सुंदर प्रस्तुति
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।...
जवाब देंहटाएंमन मनुज का भी तो
तुझसे कम गहरा नहीं
लहरें बहुत उठतीं वहाँ भी
शांत धीर तुझसा ही वह
तेरी तरह ही तो वहाँ भी
बाँध का पहरा नहीं...
जय श्री राधे
भ्रमर 5
क्या कहने, बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुर दुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंlatest post: प्रेम- पहेली
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पर सुनामियाँ भी कब भला
जवाब देंहटाएंकिसके रोके से रुकी हैं ???
....बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...
बहुत सुन्दर ....गहन रचना ऋता जी ...!!
जवाब देंहटाएंवाह.......अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंना....नहीं रुकती सुनामियाँ....न रुकता है भावनाओं का ज्वार....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दी...
सस्नेह
अनु
Bahut sundar...
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