पिता....पिता को याद करने के लिए फ़ादर्स डे की जरूरत नहीं...
स्थिर कदम अडिग विचार
मन निडर मधुर व्यवहार
आज अक्स बन गए पिता के
हृदय में भर लिया धैर्य अपार|
कहा पिता ने 'सच अपनाओ
झूठ को कदमों में झुकाओ'
शान से गर्दन तनी रहेगी
बेधड़क तुम जीते जाओ|
कभी सख्त और कभी नरम
कभी शीत और कभी गरम
काँटों वाले फूल पिता जी
कभी गंभीर तो कभी सुगम|
सहजता सरलता ही रहा
जिनके जीवन का आधार
उनके अमूल्य सिद्धांत अपनाए
जीतने निकले हम संसार|
........ऋता
पिता तो ह्रदय में हैं व् रहेंगे !!
जवाब देंहटाएंआभार !!
पिता के प्रति हृदय से निकले सुंदर भाव ।
जवाब देंहटाएंपिता को समर्पित सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार - 18/09/2013 को
जवाब देंहटाएंअमर' अंकल पई की ८४ वीं जयंती - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः19 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
shuqriya Darshan jangra ji.
हटाएंपिता की दी हुई सुन्दर सीख सदा साथ रहे |
जवाब देंहटाएंanubhavi vo aise jisko sab kuch pata hai
जवाब देंहटाएंaadhar jiske sahare badhti maa lata hai
nariyal se sakht sidhant hriday komal andar
jigyasha ki pyas bujhade aisi vo ghata hai
Suresh Rai
अनुभवी वो ऐसे जिनको सब कुछ पता है
जवाब देंहटाएंआधार जिसके सहारे बढ़ती माँ लता है
नारियल से सक्त सिद्धान्त ह्रदय मगर कोमल
जिज्ञासा की प्यास बुझादे ऐसी घटा है
सुरेश राय