मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

हम उन्हें आफ़ताब कहते हैं-ग़ज़ल

हम तो दिल की किताब कहते हैं
आप जिसको गुलाब कहते हैं

जो उलझते रहे अँधेरों से
हम उन्हें आफ़ताब कहते हैं

धर्म के नाम पर मिटेंगे हम
उस गली के जनाब कहते हैं

हुक्म की फ़ेहरिस्त लम्बी है
शौहरों को नवाब कहते हैं

तोड़ दो नफरतों की दीवारें
उल्फतों का हिसाब कहते हैं

मुस्कुराके नजर मिलाते हैं
क्या इसी को नकाब कहते हैं

--ऋता शेखर ‘मधु’

8 टिप्‍पणियां:


  1. जिस बात में दम हो
    उसे ऋता शेखर कहते हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2508 में दिया जाएगा ।
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति

    मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!