हम तो दिल की किताब कहते हैं
आप जिसको गुलाब कहते हैं
जो उलझते रहे अँधेरों से
हम उन्हें आफ़ताब कहते हैं
धर्म के नाम पर मिटेंगे हम
उस गली के जनाब कहते हैं
हुक्म की फ़ेहरिस्त लम्बी है
शौहरों को नवाब कहते हैं
तोड़ दो नफरतों की दीवारें
उल्फतों का हिसाब कहते हैं
मुस्कुराके नजर मिलाते हैं
क्या इसी को नकाब कहते हैं
--ऋता शेखर ‘मधु’
जवाब देंहटाएंजिस बात में दम हो
उसे ऋता शेखर कहते हैं ...
रश्मि दी, सब आपका स्नेह है...दिल से धन्यवाद :)
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2508 में दिया जाएगा ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
धन्यवाद चर्चा मंच पर लगाने के लिए !
हटाएंवाह ... बहुत खूब .
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद दी !
हटाएंवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार
बहुत उम्दा प्रस्तुति
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