शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

डमरू घनाक्षरी


डमरू घनाक्षरी - शृंगार रस

वर्णिक छंद- 8, 8, 8, 8 की एक पंक्ति

हर अठकल अमात्रिक - त्रिकल त्रिकल द्विकल से

चार समतुकांत पंक्तियाँ


अनत जगत यह, सरल सहज वह,

करत नयन नत, मदन भजन रत।1

कमल नयन लख, चरण शरण रख,

असत गरल हत, नमन करत शत।2

तपन सहन कर, हवन भवन धर,

धरम करम गत, फलत रमन तत।3

बरस सघन घन, हरष रतन मन।

बढ़त फसल सत, मगन सदन बत। 4

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द्वितीय छंद


चमक दमक कर, कनक कलश  भर,

चलत अचल हल, जनमत सिय थल।1

चहक चहक खग, नटत अयन मग,

चहल पहल ढल, मगन भवन तल।2

जनक नगर घर, लखन दरस कर,

हरष हँसत जल, नवल कँवल दल।3

सकल चयन कर, वरण रमण वर,

सरल सहज पल, झरत सरस फल।4

- ऋता शेखर

गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

महिला दिवस विशेष १- भारतीय सिनेमा के निर्माण में महिलाओं की भूमिकाएँ

 भारतीय सिनेमा के निर्माण में महिलाओं की पार्श्व भूमिकाएँ – ऋता शेखर ‘मधु’

सिनेमा को सबसे लोकप्रिय कला माध्यम के रूप में देखा जाता है।

एक वक्त था जब भारतीय सिनेमा में महिलाओं को फिल्मों में काम करना या फिर पर्दे पर

महिलाओं का दिखना अच्छा नहीं समझा जाता था लेकिन आज महिलाएं न सिर्फ फिल्मों में किरदार

निभा रही हैं बल्कि फिल्मों में निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखन, गीतकार, संगीतकार का भी काम

कर रही हैं।

इस आलेख में सिनेमा के निर्माण में पर्दे के पीछे से सहयोग देने वाली महिलाओं की चर्चा करेंगे|

१.निर्माता,निर्देशक,पटकथा लेखन २.गीतकार एवं ३.संगीतकार

१. निर्माता, निर्देशक एवं पटकथा लेखक के रूप में महिला

१.फातिमा बेगम

फातिमा बेगम का जन्म 1892 में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था।

फातिमा बेगम पहली महिला फ़िल्म निर्देशक बनीं जिन्होंने रूढ़िवादी विचारों को तोड़कर इस दुनिया में

कदम रखा था और सिनेमा जगत को नया आयाम देने का काम किया। फातिमा बेगम न सिर्फ

भारत की पहली फिल्म निर्देशक हैं बल्कि अपने दौर की प्रसिद्ध अभिनेत्री भी रही हैं। उन्होंने पटकथा

लेखक के तौर पर भी काम किया है।

1926 में पहली बार फातिमा ने ‘बुलबुल-ए-परिस्तान’ नामक फिल्म का निर्देशन किया था और सिनेमा

में निर्देशन करने वाली पहली महिला बनने का भी खिताब जीता। 1926 में इस फ़िल्म का निर्देशन

करने के बाद फातिमा को काफी कुछ झेलना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और 1928 में

फिल्म रांझा, 1929 में फिल्म शकुंतला का निर्देशन किया।

२.जोया अख्तर

जोया अख्तर एक भारतीय फिल्म निर्देशक-लेखक हैं। जोया अख्तर बहुत ही कम समय में अपनी

कड़ी मेहनत से बॉलीवुड के सफल निर्देशकों में शुमार हो चुकीं हैं।

जोया का जन्म 14 अक्टूबर 1972 को मुंबई में जावेद अख्तर के घर में हुआ था। जावेद अख्तर

बॉलीवुड के मशहूर लेखक,कवि हैं। इनकी माँ का नाम हनी ईरानी है, जोकि एक बॉलीवुड अभिनेत्री

है।

जोया की पहली निर्देशित फिल्म ‘लक बाय चांस’ थी, जिसे दर्शकों और आलोचकों नें काफी सराहा था।

फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की| ज़ोया को पहचान फिल्म ‘जिंदगी ना मिलेगी दुबारा’

से मिली। ज़ोया को इस फिल्म के लिए फिल्म फेयर के बेस्ट डायरेक्टर अवार्ड से भी सम्मानित

किया गया।

उनकी प्रसिद्ध फ़िल्में हैं- दिल धड़कने दो, ज़िंदगी मिलेगी ना दुबारा, लक बाय चांस, बॉम्बे टॉकीज,

तलाश।

३. रीमा कागती

रीमा कागती भारतीय फिल्म निर्देशक और स्क्रीनराइटर हैं। रीमा ने हिंदी सिनेमा में बतौर निर्देशक

फिल्म ‘हनीमून ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड’ से डेब्यू किया था।


रीमा कागती का जन्म गुवाहटी, असम में हुआ था। उन्होंने मुंबई स्थित सोफिया कॉलेज से इंग्लिश

लिट्रेचेर में स्नातक की डिग्री हासिल की है। साथ ही उन्होंने सोफिया कॉलेज से ही सोशल

कम्युनिकेशन में परा-स्नातक की डिग्री ली है।

रीमा कागती ने अपने करियर की शुरुआत बतौर सहायक निर्देशक की| इस दौरान उन्होंने हिंदी

सिनेमा के कई दिग्गज निर्देशकों के साथ काम किया, जिसमे फरहान अखतर(दिल चाहता है), आशुतोष

गोविरकर (लगान)हनी इरानी (अरमान), मीरा नायर (वैनिटी फेयर) शामिल हैं।

रीमा ने हिंदी सिनेमा में बतौर फिल्म निर्देशक अपने करियर की शुरुआत वर्ष 2006 में फिल्म

‘हनीमून ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड’ से की। इसके बाद रीमा ने फिल्म ‘तलाश’ निर्देशित की| फिल्म

बॉक्स-ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई थी। वर्ष 2016 में रीमा ने फिल्म ‘गोल्ड’ पर काम करना शुरू

किया। जोया अख्तर और रीमा कागती ने मशहूर कॉमिक बुक पर आधारित नई फिल्म 'द आर्चीज' को

भारतीय दर्शकों के हिसाब से बनाया है और पर्यावरण को भी इसमें शामिल किया है। इस फिल्म के

अलावा रीमा कागती ने जोया अख्तर के साथ मिलकर फिल्म रोड ट्रिप पर आधरित फिल्म ;जी ले

जरा; लिखी है।

४. मेघना गुलजार

आज के समय की एक और उल्लेखनीय नाम मेघना गुलजार का है जो फिल्म निर्माता, निर्देशक एवं

पटकथा लेखक हैं| मेघना गुलजार का जन्म 13 दिसम्बर 1973 को मुंबई में हुआ था। वह हिंदी सिनेमा

के मशहूर संगीतकार-गीतकार गुलजार और अभिनेत्री राखी गुलजार की बेटी हैं। उन्होंने हिंदी फिल्म

इंडस्ट्री में अपने करियर की शुरुआत 1999 में 'हू तू तू'  नाम की फिल्म से की थी। उन्होंने फिल्म के

लिए पटकथा लिखी। इसके बाद कई फिल्मों का निर्देशन किया| 2015 में ;तलवार; और 2018 में

;राज़ी; जैसी फिल्मों से सफलता मिली। ;राज़ी; ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता

और मेघना को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला। मेघना गुलज़ार अपनी फिल्मों के विषय चयन

और भावनात्मक पहलू के लिए जानी जाती हैं। उनकी 2002 की फिल्म ;फिलहाल; में सरोगेसी के बारे

में बात की गई थी जो उस समय काफी साहसिक विकल्प था। फिल्म ;तलवार; से आरुषि तलवार

हत्याकांड को संबोधित किया। ;छपाक; नामक फिल्म पर काम किया जो एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी

अग्रवाल के जीवन पर आधारित एक जीवनी फिल्म है।

पांच साल के लम्बे अंतराल के बाद उन्होंने फिल्म ‘जस्ट मैरिड’ और ‘दस कहानियाँ’ निर्देशित की। दोनों ही फिल्मों ने बॉक्स-ऑफिस पर ठीक-ठाक व्यापार किया था।

५. गौरी शिंदे

गौरी शिंदे आज के समय की एक और प्रमुख फिल्म निर्माता हैं, जो 'जीवन का हिस्सा' फिल्में बनाने

के लिए जानी जाती हैं, जो दर्शकों के दिल में एक संदेश, आंखों में आंसू और चेहरे पर मुस्कान छोड़

जाती हैं। उन्होंने 2012 में दिल छू लेने वाली फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' से अपनी शुरुआत की, जिसने

व्यावहारिक रूप से सभी पुरस्कार जीते। यह एक महिला द्वारा अपनी असुरक्षाओं पर काबू पाने और

अपनी एक पहचान बनाने के बारे में थी जिसे उसने अपनी माँ को समर्पित किया था। शिंदे की यह

फिल्म आलोचकों दर्शकों सबको बेहद पसंद आई, साथ ही यह फिल्म टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में भी

दिखाई गयी। शिंदे को उनकी इस फिल्म के लिए झोली भर अवार्ड्स भी मिले। उन्हें इस फिल्म के

लिए फिल्मफेयर बेस्ट डेब्यू आवर्ड से भी सम्मानित किया गया| इसके बाद उन्होंने एक और अद्भुत

फिल्म ;डियर जिंदगी; बनाई| इस फिल्म ने करियर-उन्मुख, शहरी महिलाओं द्वारा सामना किए जाने

वाले मुद्दों को संबोधित किया। गौरी शिंदे ने नारीवाद और शहरीवाद के साथ मानसिक स्वास्थ्य और

भावनात्मक मुद्दों को संभाला और एक शानदार फिल्म बनाई जिसे व्यावसायिक और समीक्षकों

द्वारा खूब सराहा गया।

उनकी शार्ट फिल्म ‘ओह मैन’ (2001) को बर्लिन फिल्म फेस्टिवल के दौरान स्क्रीनिंग के लिए चुनी

गयी थी।

६. मीरा नायर

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने वाली मीरा भारतीय समाज में गहरे तक पैठी हुई खोखली

मान्यताओं पर फिल्म बनाने के लिए जानी जाती हैं. उनकी फिल्में द नेमसेक, मॉनसून वेडिंग और

सलाम बॉम्बे आज भी एक जरूरी फिल्म के तौर पर देखी जाती हैं. उनकी ये फिल्में 'बाफ्टा' और

'गोल्डन ग्लोब' जैसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड्स के लिए भी नामित हो चुकी हैं.

७. कोंकणा सेन शर्मा

पहले से ही एक शानदार अभिनेत्री और अपनी पसंद से कुछ न कुछ कहने वाली अदाकारा के रूप में

जानी जाने वाली कोंकणा सेन शर्मा ने निर्देशक की भूमिका भी निभा ली है। उन्होंने 2006 में एक

बंगाली फिल्म से निर्देशन की शुरुआत की और 2017 में हिंदी फिल्म ;ए डेथ इन द गुंज; बनाई। इस

फिल्म को कई अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में प्रदर्शित किया गया और सर्वश्रेष्ठ फिल्म के साथ-साथ

सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के रूप में कई पुरस्कार जीते।

आगे भी कई नाम हैं जिनमें दीपा मेहता, जद्दन बाई, किरण राव, सई परांजपे, अरुणा राजे, शोभना

समर्थ, माधुरी दीक्षित, दुर्गा खोटे, कल्पना लाजमी, श्रीदेवी, नंदिता दास, दुर्गा खोटे, ज्योति देशपांडे

आदि प्रमुख हैं|

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2] महिला गीतकार


बॉलीवुड की टॉप 10 महिला गीतकारों में 1. कौसर मुनीर 2. अनविता दत्त 3. रानी मल्लिक 4. माया

गोविन्द 5. प्रिया सरिया 6. रश्मी सिंह 7. गरिमा वहल 8. अभिरुचि चाँद 9. सीमा सैनी 10. प्रभा

ठाकुर हैं|

इनके अतिरिक्त अमृता प्रीतम, इंदु जैन, हेमा सरदेसाई, इला अरुण, हार्ड कौर, स्नेहा खानवलकर, पद्मा

सचदेव, श्रुति पाठक को भी बॉलीवुड की गीतकार महिलाओं में गिना जा सकता है। इन सबके के बीच

माया गोविंद का नाम उल्लेखनीय है|

माया गोविंद

बतौर गीतकार माया गोविंद का करियर 1972 में शुरू हुआ । उन्होंने फिल्म ‘आरोप’ के गाने लिखे।

इस फिल्म से उनका गाना ‘नैनों में दर्पण है’ बहुत चर्चित हुआ। यहां से माया का फिल्मों में गाने

लिखने का काम शुरू हुआ। उन्होंने अपने करियर में 350 फिल्मों के लिए 750 से ज़्यादा गाने लिखे।

इसमें ‘आंखों में बसे हो तुम’, ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’ फिल्म का टाइटल ट्रैक, हम तुम्हारे हैं सनम

फिल्म का ‘गले में लाल टाई’, शीशा फिल्म का ‘यार को मैंने मुझे यार ने’ जैसे गाने शामिल हैं। जब

समय के साथ संगीत बदलने लगा तब भी माया ने पॉपुलर सिंगर फाल्गुनी के गाने ‘मैंने पायल है

छनकाई’ के बोल लिखे, जो कि बहुत बड़ा हिट गाना साबित हुआ। आरोप फ़िल्म का गीत, नैनों में

दर्पण है, को लोगों ने बहुत पसंद किया|

दूरदर्शन पर प्रसारित हुए धारावाहिक ‘महाभारत’ के लिए उन्होंने काफी गीत, दोहे और छंद लिखे।

इसके अलावा ‘विष्णु पुराण’, ‘किस्मत’, ‘द्रौपदी’, ‘आप बीती’ आदि उनके चर्चित धारावाहिक रहे।

सैटेलाइट चैनलों के दौर में भी माया गोविंद के लिखे शीर्षक गीतों की खूब धूम रही।

3] महिला संगीतकार

१. इशरत सुल्ताना

इशरत सुल्ताना का नाम बिब्बो के नाम से प्रसिद्द है। वह भारतीय फिल्म इतिहास में महिला

संगीतकारों की पहली खेप में थीं । उन्होंने भारत की स्वतंन्त्रता से पहले 1934 में फिल्म ;अदल ए

जहांगीर; फिल्म में संगीत दिया था, जोकि बॉलीवुड की प्रसिद्द अभिनेत्री नरगिस की माताजी

जद्दनबाई के भी संगीत देने के एक साल पहले की बात है। इशरत सुल्ताना ने इसके अलावा ;कागज

की लड़की; जोकि 1937 में आई थी। उसके गानों को भी संगीतबद्ध किया था।

२.जद्दनबाई

भारतीय फिल्मों में जद्दनबाई का नाम बहुत ऊँचा है। वह भारत के सिनेमा जगत तकनीकी रूप से

पहली संगीतकार थीं। उन्होंने 1935 में 'तलाशे हक' में संगीत दिया था। उन्होंने संगीत की शिक्षा

कोलकाता के श्रीमंत गणपत राव से ली थी। इसके बाद उन्होंने 1936 में आई फिल्म 'मैडम फैशन' में

न सिर्फ काम किया बल्कि उन्होंने फिल्म के लिए संगीत देने के साथ साथ उसका निर्देशन भी किया।

३. सरस्वती देवी

पारसी परिवार में जन्मी और उन दिनों बॉम्बे टॉकीज़ के कुछ संगीतकारों के साथ काम कर रहीं

सरस्वती बाई ने सबसे पहले अछूत कन्या के लिए ‘ मैं बन की चिड़िया ...’ गाना कम्पोज़ किया था।

४. उषा खन्ना

उषा खन्ना भारतीय फिल्म इंडस्टी की ऐसी महिला संगीकार हैं, जिनके काम को लोग कभी नहीं भूल

सकते। उनके लोकप्रिय गानों में ;छोड़ो कल की बातें;,शायद मेरी शादी का ख्याल;ज़िंदगी प्यार का

गीत है; और ;आप तो ऐसे न थे’ जैसे हिट शामिल हैं। उन्होंने 1940 में पहली बार फिल्म;दिल दे के

देखों; में संगीत दिया था, जिसमें आशा पारेख ने काम किया था और यह उनकी डेब्यू फिल्म थी और

इस फिल्म के कारण वह सुपरहिट हो गयी थी। उन्होंने करीब 40 वर्षों तक सक्रिय तौर पर गाने

बनाये। उषा खन्ना ने हवस, दिल देके देखों, साजन की सहेली और आप तो ऐसे न थे जैसी फिल्मों में

बेहतरीन संगीत दिया।

५. लता मंगेश्कर बनाम आनंद घन

लता जी ने सिर्फ गाने ही नहीं गाये बल्कि फिल्मों में और ख़ासकर मराठी फिल्मों में संगीत

दिया। उन्होंने संगीतकार के रूप में अपना असली नाम न देकर आनंद घन के नाम का

इस्तेमाल किया। लता मगेशकर ने पहली बार सन 1955 में मराठी फिल्म 'राम-राम पाऊंण'

में संगीत दिया था। जिसके बाद उन्होंने 1963 में 'मराठा टिटुका मेळावा', 1963 में 'मोत्यांची

मंजुला', 1965 में 'साधी माणसे' 1969 में उन्होंने 'ताम्बाडी माती' जैसी फिल्मों में भी संगीत

दिया है। उन्हें 1965 में आई फिल्म 'साधी माणसे' के लिए महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें बेस्ट

म्यूजिक डायरेक्टर का सम्मान दिया था। उनका संगीतबद्ध किया एक गाना ‘ऐरणीच्या देवा

तुला...’ बहुत लोकप्रिय भी हुआ है।

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रविवार, 5 फ़रवरी 2023

जब हम सीख लेते हैं

 निभ जाते हैं रिश्ते

जब हम सीख लेते हैं

दोषों को नजरअंदाज़ करना


जी लेते हैं तमाम उम्र

जब हम सीख लेते हैं

बेवज़ह ही मरना


मिलती है सफलता

जब हम सीख लेते हैं

समय पर काम करना


पा लेते हैं निदान

जब हम सीख लेते है

समस्याओं को पकड़ना


मिल जाते हैं रास्ते

जब हम सीख लेते हैं

निडरता से पग धरना


कुसुमित होती है बगिया

जब हम सीख लेते हैं

काँटों संग निखरना


निखर जाता है लेखन

जब हम सीख लेते हैं

भाव सुन्दर भरना


खिल जाते हैं चेहरे

जब हम सीख लेते हैं

मुसकानों से सँवरना


पास आती हैं खुशियाँ

जब हम सीख लेते हैं

प्रकृति के संग गुजरना


जिंदगी हो जाती खूबसूरत

जब हम सीख लेते हैं

प्रीत-डोर में ठहरना


जीत लेते हैं जमाना

जब हम सीख जाते हैं

हरसिंगार सा झरना

-- ऋता शेखर 'मधु'

मंगलवार, 24 जनवरी 2023

बेटियाँ वरदान हैं

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस













संसार के सुन्दर सृजन में, बेटियाँ वरदान हैं।

माता पिता की लाडली अब बन रही अभिमान हैं।।

बेटी पढ़े आगे बढ़े यह कह रही सरकार है।

उसकी खुशी सबसे जरूरी जो बनी आधार है||1


बगिया सुवासित देखकर के, गुनगुनाती बेटियाँ|

नभ में पतंगों को उड़ाकर, मुस्कुराती बेटियाँ||

अम्बर सितारे टिमटिमाए, जगमगाई बेटियाँ|

कलकल नदी की धार बनकर, खिलखिलाई बेटियाँ||2


जब बूँद बनकर बारिशों में, नाचता सावन कभी|

रुनझुन हुई है पायलों की, हँस दिए आँगन सभी||

शृंगार बालों का हुआ है, झूलती है चोटियाँ|

चकले थिरक जाते खुशी से, बेलती जब बेटियाँ||3


लगती कमलदल सी सुकोमल, धैर्य में है झील सी|

जगमगाती दीप बनकर, रोशनी कंदील सी||

प्राची हँसी पूरब दिशा में भोर की लाली बनी|

धरती सुहानी बेटियों सी खेत की बाली बनी||4


वह चाहते हैं बेटियों को, सरस्वती बसती जहाँ |

जो पूजते हैं बेटियों को, लक्ष्मी रहती वहाँ||

कुछ पर्व भारत में बने जो, बेटियों से हैं खिले|

होंगी नहीं जब बेटियाँ तब, राखियाँ कैसे मिले||5


कुछ शील्ड भारत को मिले हैं, बेटियों के काम पर।

वह हों बछेन्द्री पाल या फिर, कल्पना के नाम पर।।

वैमानिकी तकनीक हो या, हो पहाड़ी चोटियाँ।

बढ़ती गईं आगे हमेशा, हिन्द की ये बेटियाँ।।6


भारत बहादुर बेटियों से, पा रहा गौरव कई।

वह पाँच महिला हैं खिलाड़ी, जो भरें सौरभ कई।।

झूलन क्रिकेटी टीम में रह, जब बनी कप्तान थीं।

तब गेंदबाजी में रमी वह, देश में वरदान थीं।।7


जमुना मुक्केबाज ने तो, रच दिया इतिहास है।

चौवन किलो की वर्ग श्रेणी, वह उन्हीं से खास है।।

तसनीम सोलह वर्ष में ही, रैंक नम्बर वन बनी।

गुजरात की महिला खिलाड़ी, बैडमिंटन बन तनी।।8


जब खेल लंबी कूद अंजू, चैंपियन बनती रहीं|

अनगिन पदक वह नाम अपने, देश के करती रहीं||

आसाम में जनमी हिमा ने,रेस को करियर बनाया|

वह गोल्ड मेडल पाँच जीती, देश का गौरव बढ़ाया|९


माता पिता का साथ पाकर खिल उठी हैं बेटियाँ।

चाहे पढ़ाई नौकरी हो, चल पड़ी हैं बेटियाँ।।

जूडो कराटे भी सिखाएँ, आत्मविश्वासी बनाएँ।

अपनी सुरक्षा कर सकें वे, आत्मबल साहस बढायें।।10


सौन्दर्य का प्रतिमान बनकर वह बनी अभिकल्पना|

माधुर्य का अभिदान पाकर, सृष्टि की अनुरूपना||

जिसने सजाए भाव सारे, क्यों वही अनजान है?

दो-दो घरों से मान पाना, क्यों महाअभियान है??11


जो पूजते नौ देवियाँ पर, बेटियाँ भाती नहीं|

समझे पराया धन हमेशा, वंश की थाती नहीं||

बहुएँ सभी को चाहिए पर, बेटियाँ लाते नहीं|

जब हों मुखौटे इस तरह के, मान वे पाते नहीं||12

--- ऋता शेखर 'मधु'