गुरुवार, 5 नवंबर 2015

बात बन गई -लघुकथा

बात बन गई 
जब भी ग्यारहवीं कक्षा का प्रथम दिन रहता, नेहा महापात्र के लिए बहुत जिज्ञासा का दिन रहता| दसवीं के बाद बहुत तरह के संस्कार और माहौल से बच्चे आते जिन्हें समझने में थोड़ा वक्त लग जाता| कुछ शरारती बच्चों से भी पाला पड़ जाता कभी कभी|
रजिस्टर लेकर नेहा ने क्लासरूम में प्रवेश किया| वह सर झुकाकर हाजिरी लेने लगी तभी सीटी की आवाज आई| नेहा ने सिर उपर उठाया किन्तु सभी भोले बनकर बैठे थे| जाहिर सी बात थी कि कुछ पूछना बेकार था| नेहा ने हाजिरी लिया| बॅाटनी का प्रथम चैप्टर पढाया और चली गई|
दूसरे दिन भी वही सीटी की आवाज और बच्चों के चेहरों पर दबी सी हँसी थी|
आज नेहा कुछ सोच कर आई थी|
उसने कहा,''बच्चों , अगले महीने स्कूल का वार्षिक महोत्सव है जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं| इसमें हम अच्छी उत्कृष्ट कला को बढ़ावा देते हैं| मैं अभी आपलोगों को अच्छी तरह से नहीं जानती पर दो दिनों में यह जान गई हूँ कि आपके बीच कोई है जो सीटियों के माध्यम से अच्छी धुन निकाल सकता है| मैं उस बच्चे का नाम सांस्कृतिक उत्सव के लिए देना चाहती हूँ|''
कुछ देर की शाति के बाद एक छात्र खड़ा हुअा|
नेहा की मुस्कान बता रही थी कि बात बन गई थी|
*ऋता शेखर मधु*

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-11-2015) को "अब भगवान भी दौरे पर" (चर्चा अंक 2152) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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