चल के सपने कहीं तो सजाओ कभी
आसमाँ में परिंदे उड़ाओ कभी
आज है ये जमाना कहाँ से कहाँ
पाँव छूने की रस्में निभाओ कभी
बेटियों के जनम से होते हो दुखी
उनको भी तो गले से लगाओ कभी
अश्क आँखों में रखते दिखाते नहीं
रोग दिल का न यूँ तुम बढ़ाओ कभी
जान हाजिर है अपने वतन के लिए
सरहदों पर इसे आजमाओ कभी
*ऋता शेखर मधु*
बेटियों के जनम से होते हो दुखी
जवाब देंहटाएंउनको भी तो गले से लगाओ कभी
...बहुत सुन्दर ...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2144 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख हैं.. AchhiBaatein.com
जवाब देंहटाएंउम्दा
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