गुरुवार, 22 जून 2017

यादें हरसिंगार हों

दोहे 
 1
दादी अम्मी टोकते, टोकें अब्बूजान
लगा सोलवां साल अब, आफत में है जान
2
महँगाई की मार से बिलख रहा इंसान
जीवनयापन के लिए आफत में है जान

 3
इधर उधर क्या ढूँढता, सब कुछ तेरे पास
नारियल के बीच बसी, मीठी मीठी प्यास

 4
यादें हरसिंगार हों, वादे गेंदा फूल
आस बने सूरजमुखी, कहाँ टिके फिर शूल
5
कड़ी धूप की लालिमा दिल में है आबाद
गर्मी में आती सदा गुलमोहर की याद
6
चुप रहना अद्भुत कला, जान न पाये आप
मनमोहन से सीख कर, मन में ही करिये जाप ऋता
7
 हृदय पुष्प को खोलकर, बोले अपना हाल
बिन गुलाल के मैं सखी, हुई शर्म से लाल
8 गुणीजनों के साथ हों, जब अच्छे संवाद
समझो माटी को मिला, उर्वरता का खाद
9
 नित प्रातः हरि नाम से, दिन को मिले मिठास
थाली को ज्यों गुड़ मिले, भोजन बनता खास
10
 कहो कौन किसके लिए जग में रोता यार
अपने अपने स्वार्थ में जीता है संसार
11
निज गुण के जो हैं धनी, झेलें नहीं अभाव
खुद से वह रखते परे, दूसरों का प्रभाव
-ऋता
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कुण्डलिया ...

सावन आया झूमकर, नाचे है मन मोर
नभ में बादल घूमते, खूब मचाते शोर
खूब मचाते शोर, गीत खुशियों के गाते
तितली भँवरे बाग़, हृदय को हैं हुलसाते
मीठे झरनों का राग, लगे है सुन्दर पावन
नाचे है मन मोर, झूमकर आया सावन
-ऋता

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 हाइकु-

वृक्ष सम्पदा
हर मनु के नाम
एक हो वृक्ष

अश्व लेखनी
सरकारी कागज
दौड़ते अश्व
ऋता शेखर 'मधु'


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