ग्रीष्म गुलमोहर हुई है
मोगरे खिलने लगे
नभ अमलतासी हुआ जब
भाव गहराने लगे|
अब नवल हैं आम्रपल्लव
बौर भी अमिया बना
वीरता भी है पलाशी
शस्त्र दीवाने लगे|
तारबूजे ने दिखाया
रंग अब अपना यहाँ
दोपहर में जेठ की
स्वेदकण बहने लगे|
नीम भी करने लगे हैं
ताप से अठखेलियाँ
जी गईं उनकी शिराएँ
पात हरसाने लगे|
शौक से चढ़ने लगी हैं
मृत्तिकाएँ चाक पर
नीर घट के साथ रहकर
सौंधपन लाने लगे|
भोर की ठंडी हवाओं
ने दिया संदेश है
झूम लो क्षण भर यहा़ँ
हम फिर कहाँ अपने लगे|
-ऋता शेखर 'मधु'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-04-2017) को "ग्रीष्म गुलमोहर हुई" (चर्चा अंक-2932) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर !!!
जवाब देंहटाएंप्रकृति पर बेहद मनोहारी रचना। आम ,तरबूज, गुलमोहर, अमलतास , स्वेद , ग्रीष्म ऋतु की सभी खुशनुमा चीज़ों को आपने कविता में परोस दिया है। बहुत बहुत प्रभावशाली रचना।
जवाब देंहटाएंसादर
" सम्मानित कवयित्री ऋता जी। आपकी बानगी बहुत अच्छी है। आपके लेखन को मेरी बधाई।
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एक प्रत्याशी, एक सीट, एक बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह!!!