रविवार, 1 अप्रैल 2018

धुंध

4
धुंध
नींद खुली
नव रश्मियाँ
भोर का सौंदर्य
कलरव
प्रकृति का माधुर्य
खिड़कियाँ
आज भी खोलीं
बाहर झांकते हुए
स्पष्ट नहीं था कुछ
धुंध छायी थी।
उज्ज्वल रास्तों के लिए
करना होगा वक्त का इंतेज़ार
धूप गहराएगी
तभी दिखेंगे
दूब और फूल
कि सब कुछ
हमारे वश में नहीं होता
करना ही होता है
समय का इंतेज़ार
मन में छाए धुंध को
छंट जाने का।
-ऋता
5
समानता
*
समान चेहरा फिर भी अलग
समान दिनचर्या होते अलग
समान समस्याएं निदान अलग
समान सोच अभिव्यक्ति अलग
समान जीवन क्रम उम्र अलग
सूर्य वही दिवस विस्तार अलग
चाँद वही रूप अलग

समानता में अलगाव
फिर क्यों हम चाहते
सामने वाले का निदान
वही हो
जैसा हमने किया
वह वैसे ही जीये
जैसे हमने जीया
समझो कभी उनके मन को
जिंदगी और मौत समान
जीने की कला अलग अलग
मरने के रास्ते अलग अलग।
-ऋता

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