आखर-मोती बिखरें
मधुरिम भाव सजे
मन अम्बर-सा निखरे|१|
है जग की रीत यही
मीठी वाणी से
दिल में है प्रीत बही|२|
कुछ खर्च नहीं होता
मीठा बोल सदा
स्नेहिल रिश्ते बोता|३|
ओ बादल मतवाले
प्यासी है धरती
आ, उसको अपना ले|४|
किरणें रवि की आईं
खिलखिल करता दिन
कलियाँ भी मुसकाईं|५|
दो हाथ जुड़े रहते
बल और विनय का
हैं भाव सदा कहते|६|
अंक बराबर पाते
कर्म-गणित में तो
ना होते हैं नाते|७|
तितली उड़ती जाती
फूल भरी चुनरी
धरती की लहराती|८|
चाह रखो चलने की
हारेगी बाधा
राह मिले खिलने की|९|
ऋता शेखर ‘मधु’
वाह मधु जी पढकर मन प्रसन हो गया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंचाह रखो चलने की
जवाब देंहटाएंहारेगी बाधा
राह मिले खिलने की|
बिल्कुल सच कहा ... बेहतरीन प्रस्तुति।
ऋता ! सभी बोल बहुत सुन्दर और सार्थक है..
जवाब देंहटाएंचाह रखो चलने की
जवाब देंहटाएंहारेगी बाधा
राह मिले खिलने की,,,,
बहुत बेहतरीन मधुर रचना के लिये बधाई ,,,,,मधु जी
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
बहुत ही सुंदर माहिया ...
जवाब देंहटाएंमन खुश हुअ पढ़्कर ...!
शुभकामनायें
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
वाणी हो "मधु" सी सरस, बसे हृदय में प्रीत |
जवाब देंहटाएंचलने की चाहत रखो, खूब "ऋता" की रीत |
मीठे बोल से क्यूँ परहेज ... बहुत ताकत है इसमें
जवाब देंहटाएंतितली उड़ती जाती
जवाब देंहटाएंफूल भरी चुनरी
धरती की लहराती
सभी रचनाएं बहुत अच्छी लगीं।
बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
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