मंगलवार, 19 जून 2012

नेकी कर दरिया में डाल




बुजुर्गों ने कहा है...
नेकी कर दरिया में डाल
ठीक है,
बात मानने में हर्ज ही क्या है
की गई नेकियाँ
गहरे पर पैठ गईं
अचानक
दरिया उलीचने की बारी आ गई
क्यों????
कृतघ्नों की लाइन लगी थी...
नेकियाँ देखे बिना
वे मानने वाले नहीं थे***
        ऋता शेखर मधु

14 टिप्‍पणियां:

  1. हूँ ....जिन्होंने नेकियाँ की नहीं वे मानेंगें भी कहाँ....?

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. मेहनत हुई फिजूल सब, दरिया दिया उलीच |
    नेकी बही समुद्र में, तट पर ठाढ़ा नीच |

    तट पर ठाढ़ा नीच, नीच ने थप्पड़ मारा |
    रविकर आँखें मींच, बहाये अश्रु धारा |

    दरिया फिर भर जाय, नहीं पर नेकी डाले |
    नेकी रखके जेब, नीच को फेंका खाले ||

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  4. वाह ऋता जी.......
    मानव स्वभाव पर क्या तीखा कटाक्ष मारा है....

    बहुत बढ़िया.
    सस्नेह

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  5. वाह: ऋता .....नेकी का दिखावा करने वालो पर करारा प्रहार..सटीक पोस्ट...

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  6. बहुत खूब ... न सिर्फ देखने बल्कि उनको लूटने के लिए भी ...

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  7. नेकियाँ देखे बिना
    वे मानने वाले नहीं थे***

    तीखा व्यंग्य ... बढ़िया

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  8. मेरी टिप्पणी नहीं दिख रही .... स्पैम में हो तो निकालिए उसे

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  9. दरिया उलीच कर नेकियाँ दिखाने पर भी कोई मानता कहाँ है|बहुत ही उम्दा प्रस्तुति|

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