बुजुर्गों ने कहा है...
नेकी कर दरिया में डाल
ठीक है,
बात मानने में हर्ज ही क्या है
की गई नेकियाँ
गहरे पर पैठ गईं
अचानक
दरिया उलीचने की बारी आ गई
क्यों????
कृतघ्नों की लाइन लगी थी...
नेकियाँ देखे बिना
वे मानने वाले नहीं थे***
ऋता शेखर ‘मधु’
हूँ ....जिन्होंने नेकियाँ की नहीं वे मानेंगें भी कहाँ....?
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेहनत हुई फिजूल सब, दरिया दिया उलीच |
जवाब देंहटाएंनेकी बही समुद्र में, तट पर ठाढ़ा नीच |
तट पर ठाढ़ा नीच, नीच ने थप्पड़ मारा |
रविकर आँखें मींच, बहाये अश्रु धारा |
दरिया फिर भर जाय, नहीं पर नेकी डाले |
नेकी रखके जेब, नीच को फेंका खाले ||
वाह ऋता जी.......
जवाब देंहटाएंमानव स्वभाव पर क्या तीखा कटाक्ष मारा है....
बहुत बढ़िया.
सस्नेह
ऋता जी.,,,,,.बहुत .तीखा सटीक व्यंग,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,,फुहार....: न जाने क्यों,
वाह: ऋता .....नेकी का दिखावा करने वालो पर करारा प्रहार..सटीक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंदुखद है , पर सत्य है ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... न सिर्फ देखने बल्कि उनको लूटने के लिए भी ...
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंनेकियाँ देखे बिना
जवाब देंहटाएंवे मानने वाले नहीं थे***
तीखा व्यंग्य ... बढ़िया
मेरी टिप्पणी नहीं दिख रही .... स्पैम में हो तो निकालिए उसे
जवाब देंहटाएंदरिया उलीच कर नेकियाँ दिखाने पर भी कोई मानता कहाँ है|बहुत ही उम्दा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंsahi h.....
जवाब देंहटाएंsahi kataaksh yahi to ho raha hai.bahut sundar likha.
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