शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

माँ दुर्गा के नव-रूप के श्लोक





देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं।
नवरात्र-पूजन में हर रूप के लिए इनकी की पूजा और उपासना के मंत्र---


1.शैलपुत्री- मां दुर्गा का प्रथम रूप देवी शैलपुत्री 



वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

2. ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप



दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

3.चंद्रघंटा : मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप



पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। 
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

4. कुष्मांडा : मां दुर्गा का चौथा स्वरूप




सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।

5. स्कंदमाता : मां दुर्गा का पांचवा स्वरूप



सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

6. कात्यायनी : मां दुर्गा का छठवां स्वरूप




चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

7. कालरात्रि मां : दुर्गा का सातवां स्वरूप




एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

8. महागौरी : मां दुर्गा का आठवां स्वरूप



श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥

9.सिद्धिदात्री : मां दुर्गा का नौवां रूप





सिद्धगंधर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥

=========================================================
माँ दुर्गा के सभी चित्र गूगल से साभार लिये गए हैं|
==========================================================


प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारणी

तृतीयं चंद्रघंटेति कुष्मांनडेति चतुर्थकम

पंचमं स्कन्दमातेती षष्ठम कात्यायनीति च

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम

नवमं सिद्धि दात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः

दुर्गा के नौ रूपों की विवेचना सरल, सहज सन्दर्भ में---इन रूपों की आध्यात्मिक कथा अलग है|
1शैलपुत्री- सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहिला स्वरूप हैं पत्थर मिटटी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को महसूस करना.

2.ब्रह्मचारिणी- जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं।

3.चंद्रघंटा-भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है।

4.कुष्मांडा- अर्थात अंडे को धारण करने वाली; स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है।

5.स्कन्दमाता- पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं। 6.कात्यायनी- के रूप में वही भगवती कन्या की माता-पिता हैं। यह देवी का छटा स्वरुप है।

7.कालरात्रि- देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है। भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं| आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है।

8.महागौरी-- का आठवां स्वरूप गौर वर्ण है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मांतर की साधना से पाया जा सकता है।

9. सिद्धिदात्री--इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है।
सन्दर्भ -प्रो बसंत प्रभात जोशी के आलेख से

अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियां होती हैं। इसलिए इस देवी की सच्चे मन से विधि विधान से उपासना-आराधना करने से यह सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं|

1 टिप्पणी:

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!