बेटियों,
तुम पिता का प्यार हो
माँ के गले का हार हो
तुमसे ही तो राखियाँ हैं
तुम खुशी का आधार हो|
तुम आई तो कली मुस्काई
कभी समझो न खुद को पराई
दिल में रहती हो तुम भी हमारे
जैसे वहाँ रहता है भाई|
तुम अपरिमित संभावना हो
लेखनी की परिभावना हो
तुम से है रौशन सारा जहाँ ये
तुम एक मीठी सी भावना हो|
अब आँखों में आँसू न लाना
विद्या से जीत लेना जमाना
खुद में संचार करो शक्ति का
आततायियों को सबक है सिखाना|
जूही बन कर महका करो
चिड़ियों सी तुम चहका करो
अब धूप में कुम्हलाना नहीं
पलाश बन के दहका करो|
छल से भरा अब ये जगत है
तालाब पर बगुला भगत है
तुम भोली मछली न बनना
मगरमच्छ भी मध्यगत है|
--ऋता शेखर “मधु”
तुम पिता का प्यार हो
माँ के गले का हार हो
तुमसे ही तो राखियाँ हैं
तुम खुशी का आधार हो|
तुम आई तो कली मुस्काई
कभी समझो न खुद को पराई
दिल में रहती हो तुम भी हमारे
जैसे वहाँ रहता है भाई|
तुम अपरिमित संभावना हो
लेखनी की परिभावना हो
तुम से है रौशन सारा जहाँ ये
तुम एक मीठी सी भावना हो|
अब आँखों में आँसू न लाना
विद्या से जीत लेना जमाना
खुद में संचार करो शक्ति का
आततायियों को सबक है सिखाना|
जूही बन कर महका करो
चिड़ियों सी तुम चहका करो
अब धूप में कुम्हलाना नहीं
पलाश बन के दहका करो|
छल से भरा अब ये जगत है
तालाब पर बगुला भगत है
तुम भोली मछली न बनना
मगरमच्छ भी मध्यगत है|
--ऋता शेखर “मधु”
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-09-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2741 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत ही सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंवाह!!!!