तुस्सी ग्रेट हो
सिख सम्प्रदाय की वह लड़की दीपा अब हिन्दु धर्म के घर की प्यारी बहु थी| उसे जब पता चला था कि नानी सास के पुण्यतिथि में जाना है तो अपने हिसाब से उसने हल्के रंग के कपड़े रख लिए थे| नानी सास का स्वर्गवास पहले ही हो चुका था और उसने उन्हें देखा नहीं था|
तरह तरह के पकवान बन रहे थे| वह सब कुछ समझने की कोशिश कर रही थी|
उसने हवन के लिए सासू माँ को तैयार देखकर पूछा,''मम्मी जी, पुणयतिथि में तो सफेद या हल्के कपड़े पहनने चाहिए न| आपने तो रंगीन सजीली साड़ी पहनी है|''
''बेटा, नानी को हल्के रंग पसंद नहीं थे| इसलिए उनकी पसंद का पहना|''
दूसरे कमरे में मासी ने भी रंगीन कपड़े पहने थे| दीपा ने वही बात मासी से भी कही|
''बेटा, आज नानी की पसंद के हिसाब से खाना बनेगा और हम उनकी पसंद के अनुसार कपड़े भी पहनेंगे| वे हमेशा से चाहती थीं कि उनकी बेटी-बहु सजधज कर रहे|''
तभी मामी जी भी वहाँ पर आ गईं| उनकी तो सजधज ही निराली थी|
जब मामी अकेली पड़ी तो दीपा ने फिर से अपनी बाद दोहरा दी|
''दीपा, नानी ने हमेशा हमलोगों को सजाकर रखा| आज हम उदास कपडों में उनके लिए हवन करेंगे तो शायद वे स्वीकार न करें|''
अब दीपा के मस्तिष्क में घूमने लगा,''सासू माँ और मासी तो नानी की बेटियाँ हैं इसलिए एक सी बात दोनों ने कही| जब मामी ने भी वही कहा तो इसका अर्थ है कि नानी ने कभी बेटी-बहु में अन्तर नहीं समझा|''
अब वह भी रंगीन कपड़े पहन हवन के लिए बैठी|
प्रथम स्वाहा में उसने मन ही मन नानी सास से संवाद करते हुए कहा,''नानी, तुस्सी ग्रेट हो|''
उसे लगा, हवन कुंड से होकर गुजरती हवा ने उसके बाल हौले से सहला दिए हों|
-ऋता शेखर 'मधु'
सिख सम्प्रदाय की वह लड़की दीपा अब हिन्दु धर्म के घर की प्यारी बहु थी| उसे जब पता चला था कि नानी सास के पुण्यतिथि में जाना है तो अपने हिसाब से उसने हल्के रंग के कपड़े रख लिए थे| नानी सास का स्वर्गवास पहले ही हो चुका था और उसने उन्हें देखा नहीं था|
तरह तरह के पकवान बन रहे थे| वह सब कुछ समझने की कोशिश कर रही थी|
उसने हवन के लिए सासू माँ को तैयार देखकर पूछा,''मम्मी जी, पुणयतिथि में तो सफेद या हल्के कपड़े पहनने चाहिए न| आपने तो रंगीन सजीली साड़ी पहनी है|''
''बेटा, नानी को हल्के रंग पसंद नहीं थे| इसलिए उनकी पसंद का पहना|''
दूसरे कमरे में मासी ने भी रंगीन कपड़े पहने थे| दीपा ने वही बात मासी से भी कही|
''बेटा, आज नानी की पसंद के हिसाब से खाना बनेगा और हम उनकी पसंद के अनुसार कपड़े भी पहनेंगे| वे हमेशा से चाहती थीं कि उनकी बेटी-बहु सजधज कर रहे|''
तभी मामी जी भी वहाँ पर आ गईं| उनकी तो सजधज ही निराली थी|
जब मामी अकेली पड़ी तो दीपा ने फिर से अपनी बाद दोहरा दी|
''दीपा, नानी ने हमेशा हमलोगों को सजाकर रखा| आज हम उदास कपडों में उनके लिए हवन करेंगे तो शायद वे स्वीकार न करें|''
अब दीपा के मस्तिष्क में घूमने लगा,''सासू माँ और मासी तो नानी की बेटियाँ हैं इसलिए एक सी बात दोनों ने कही| जब मामी ने भी वही कहा तो इसका अर्थ है कि नानी ने कभी बेटी-बहु में अन्तर नहीं समझा|''
अब वह भी रंगीन कपड़े पहन हवन के लिए बैठी|
प्रथम स्वाहा में उसने मन ही मन नानी सास से संवाद करते हुए कहा,''नानी, तुस्सी ग्रेट हो|''
उसे लगा, हवन कुंड से होकर गुजरती हवा ने उसके बाल हौले से सहला दिए हों|
-ऋता शेखर 'मधु'
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21 - 09 - 2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2734 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद