७.
बाबुल में ही जानिए, संबल का आधार,
बाबुल में ही मानिेए, अम्बर सा विस्तार|
अम्बर सा विस्तार, सहज ही हम पा जाते,
कदमों में विश्वास, निडर बन के ले आते|
हाथ सदा हो माथ, हिंद हो या हो काबुल,
बरगद जैसी छाँव, डगर पर देते बाबुल|
६.
तरुवर फूलों से लदे, झुककर दें यह ज्ञान,
जिनमें भरी विनम्रता, वही लोग विद्वान|
वही लोग विद्वान, क्रोध को जो पी लेते,
तज बदला का भाव, मान वो सबको देते|
उनके शीतल बोल, बनाते उनको प्रियवर,
सहकर आँधी धूप, फलों से लदते तरुवर|
५.
सागर की लहरें कहें, गति ही जीवन नाम,
गिरने पर फिर से उठें, करती है संग्राम|
करती हैं संग्राम , गहन उनकी गहराई,
देकर उज्जवल सीप, भाव उसने बिखराई|
मन में मूरत दिव्य, रहे नटवर नागर की,
तट पर मिलती थाह, कहें लहरें सागर की|
गिरने पर फिर से उठें, करती है संग्राम|
करती हैं संग्राम , गहन उनकी गहराई,
देकर उज्जवल सीप, भाव उसने बिखराई|
मन में मूरत दिव्य, रहे नटवर नागर की,
तट पर मिलती थाह, कहें लहरें सागर की|
४.
दामन सच का थाम कर, मन में राखो राम,
जीवन पथ होगा सरल, करते जाओ काम|
करते जाओ काम, हृदय को रखना चंगा,
मन हो निर्मल पात्र, समा जाती है गंगा|
तीन पग में त्रिलोक, नाप लेते हैं वामन,
करते जाओ काम, हृदय को रखना चंगा,
मन हो निर्मल पात्र, समा जाती है गंगा|
तीन पग में त्रिलोक, नाप लेते हैं वामन,
टाँको सच का सीप, चमक जाता है दामन|
३.
हरियाली को चूमने, चली बसंत बयार
नख से शिख श्रृंगार कर, निखरा हरसिंगार
निखरा हरसिंगार, लचक जाती हर डाली
चटके जब कचनार, चहक जाता वनमाली
कूक रही हर बौर, आज कोयलिया काली
पहन पुष्प परिधान, झूम जाए हरियाली
२.
बंजारा मन उड़ चला, सात समंदर पार|
चुन भावों की मंजरी,रच कुण्डलिया हार||
रच कुण्डलिया हार,बनाते छंद विगाथा|
कभी कृष्ण के साथ, कहें मनभावन गाथा||
घूम रहा मन खेत, लिखें सागर ध्रुवतारा|
कहता हिय की पीर, बावरा मन बंजारा||
१.
जागो जनता देश की, बदलेगी सरकार|
देखो चारो ओर है, वादों की भरमार|
वादों की भरमार, साथ हैं अनगिन नारे|
'पाओगे अधिकार', यही बोलेंगे सारे|
दे दो अपने वोट,अलस को अब तो त्यागो ,
बदलेगी सरकार, देश की जनता जागो|
देखो चारो ओर है, वादों की भरमार|
वादों की भरमार, साथ हैं अनगिन नारे|
'पाओगे अधिकार', यही बोलेंगे सारे|
दे दो अपने वोट,अलस को अब तो त्यागो ,
बदलेगी सरकार, देश की जनता जागो|
..........ऋता शेखर 'मधु'
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-06-2014) को "जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही." (चर्चा मंच-1645) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर शब्द विन्यास...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सारगर्भित प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसभी के सभी बहुत ही बढ़िया |
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