कह रहे इसे
नेकियों का शहर
बरपाया कौन
यहाँ पर कहर
काटे जाते
वन हरे हरे
ढोती नदिया
शव सड़े सड़े
सहमी सहमी सी चली हवा
सुबकी सुबकी सी लगी फिजा
मौन सनसनी
दिखे हर पहर
वन्य जातियाँ
खोजतीं निशाँ
भूले मयूर
मेघ आसमाँ
बुलबुल उदास शोक में समाँ
उठा सब तरफ धुआँ ही धुआँ
घुला साँस में
ज़हर ही ज़हर
बरपाया कौन
यहाँ पर कहर
कह रहे इसे
नेकियों का शहर
*ऋता शेखर 'मधु'*
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